शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

पथिक एकाकी

चलता तू जिस पथ पर ।
पुष्प लगता तू उस पथ पर।

 कांटे चुनता तू उस पथ के ।
 चुनता पत्थर उस पथ पर ।

 कदम कदम सजाता तू ,
  सहज सहज पग रखता पथ पर ।


 मन्दिर कई बनाता तू ,
 वन बाग सजाता तू पथ पर ।

 कोई पथिक जो आए कभी ,
 कुछ पल बिताए इस पथ पर ।

 पा जाये कुछ विश्राम यही ,
 सफ़र आसान बने इस पथ पर ।

   है फिर भी एकाकी तू ,
  चलता अपनी धुन में तू इस पथ पर ।

 खोया खोया अपने एकाकीपन में ।
 कुछ अपनी कुछ पथ की उलझन में ।

 हाँ  एकाकी तू , बस एकाकी तू ।
  तू अपने इस जीवन पथ पर ।

      ......विवेक दुबे "विवेक"©....
 Blog 17/7/17

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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