चलता तू जिस पथ पर ।
पुष्प लगता तू उस पथ पर।
कांटे चुनता तू उस पथ के ।
चुनता पत्थर उस पथ पर ।
कदम कदम सजाता तू ,
सहज सहज पग रखता पथ पर ।
मन्दिर कई बनाता तू ,
वन बाग सजाता तू पथ पर ।
कोई पथिक जो आए कभी ,
कुछ पल बिताए इस पथ पर ।
पा जाये कुछ विश्राम यही ,
सफ़र आसान बने इस पथ पर ।
है फिर भी एकाकी तू ,
चलता अपनी धुन में तू इस पथ पर ।
खोया खोया अपने एकाकीपन में ।
कुछ अपनी कुछ पथ की उलझन में ।
हाँ एकाकी तू , बस एकाकी तू ।
तू अपने इस जीवन पथ पर ।
......विवेक दुबे "विवेक"©....
Blog 17/7/17
पुष्प लगता तू उस पथ पर।
कांटे चुनता तू उस पथ के ।
चुनता पत्थर उस पथ पर ।
कदम कदम सजाता तू ,
सहज सहज पग रखता पथ पर ।
मन्दिर कई बनाता तू ,
वन बाग सजाता तू पथ पर ।
कोई पथिक जो आए कभी ,
कुछ पल बिताए इस पथ पर ।
पा जाये कुछ विश्राम यही ,
सफ़र आसान बने इस पथ पर ।
है फिर भी एकाकी तू ,
चलता अपनी धुन में तू इस पथ पर ।
खोया खोया अपने एकाकीपन में ।
कुछ अपनी कुछ पथ की उलझन में ।
हाँ एकाकी तू , बस एकाकी तू ।
तू अपने इस जीवन पथ पर ।
......विवेक दुबे "विवेक"©....
Blog 17/7/17