गुरुवार, 24 मार्च 2016

यहाँ फ़ागुन की वो बयार नही


यहाँ फ़ागुन की वो बयार नही ।
बरसते रंगो से कोई प्यार नही।
देख हुरियारे करते हंसी ठिठोली,
सखियों की टोली नजर आती नही ।
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सजनी साथ नही भौजी पास नही ।
हम बसे बिदेश घर की आस नही ।
किस संग कैसे खेले होली अब,
सूना यहाँ सब रंगो का मधुमास नही।
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यहाँ तो नया जमाना नया चलन ।
रंगो से होती सबको बड़ी जलन ।
मिला हाथ से हाथ कहा हेल्लो ,
आत्मीयता से गले लगाने का नही चलन ।
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...... विवेक ......

बुधवार, 23 मार्च 2016

होली


अब की होली,तब की होली ,
  जब की होली,याद नहीं अब ।
 कब खेली थी, हमने तुम संग होली ?
भूल गए अब तुम,ओ हमजोली
इस होली तुम, किस की हो...लीं .
   ....विवेक..
ब्लॉग पोस्ट 23,/3/16
,

डोले मन कुछ बोले मन
श्याम संग झूमें राधा मन
भर पिचकारी मारें श्याम जी
तर होत राधा तन मन
.. विवेक ...
.
उस मौके को गवां न देना
रंग देना चाहे न रंग देना
जो आयें सामने होली पर हम
 बस जरा सा तुम मुस्कुरा देना

अपने ही रंग में मोहे रंग देना
 तू मुझे मुस्कुराते नयन देना
 जज़्ब कर लूंगा मुस्कुराहट को
 बस अपने अधरों पर थिरकन देना
 .
  जा होली जैसे ही हमने
 भौजी गाल गुलाल लगाई
 वो कुछ कुछ शरमाई
 यादो से आँख मिलाई
  हमसे आंख चुराई
.
न रहे ख़लिश कोई
अब की ऐसी होली हो
रंग भले न बरसें पानी संग
मन से मन की होली हो
रंग जाएँ फिर प्रेम रंग संग
प्रेम प्रीत संग होली हो
रंग भले न बरसें पानी संग
स्नेह रंग संग होली हो
 .
गोरे गोरे गाल .....
आज हुए लाल गुलाबी.....
ऐसी छाई खुमारी ......
झूम रही दुनिया सारी.....
आप सभी को ...
शुभ कामनाये ढेर सारी ...
हमारी .........
 

मौन निमंत्रण


मौन निमन्त्रण देती बाला को
रूप सलोनी सी हाला को
पूरी की पूरी मधुशाला को
जाम रंग सा पी जाऊँ
हो कर मदहोश आज मैं
कुछ पल और जी जाऊँ
... विवेक ...
,

ज़र्रा ज़र्रा गुलाब हो
 हर सितारा आफताब हो
 छू ले जो एक नजर तेरी
  ज़िन्दगी तुझ पे निसार हो
,
, ... विवेक ...


प्रेम रंग के रंग सजा दे ।
 सजनी मोहे अंग लगा दे ।
 रंग दे मोहे अपने रंग में ,
 खुद को तू बिसरा दे ।
     .... विवेक ..

,

होली संग तर तन मन



 नयन बिलोकत खिलत कमल  ।
 नयनाभिराम वो सुखद पल ।
 अधर धरें मदमाती थिरकन ,
 याद रहें वो पल हर पल ।
,
 मृग नैना वो चंचल चंचल ।
 पुलकित पुष्पित कोमल तन ।
 फूले टेसू अंग अंग रची सुगन्ध ,
 अहसासों के महकत मकरन्द ।
,
यह पल हर पल पल पल ।
सज गया जो ज़ीवन पल ।
 रंग गया मन तन तन मन ,
 इस होली संग तर तन मन ।
.
   ...... विवेक ....
  ,

होरी खेलन आये तोरे द्वार


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गोरी होरी खेलन आये तोरे द्वार ,
 खोल मन नैनों के तू द्वार ।
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अंग भर दे गाल गुलाल रंग से ,
नयनों की चितवन से ,
 रंगों की कर तू बौछार ।
 होरी खेलन आए तोरे द्वार ।
-----,
 रंग दे अपने गाल गुलाबी रंग से ,
 तर कर दे नैनों के काजल से ,
 इस सूने सूने से मन में ,
 कुछ रंग प्रीत के तू डार ।
 होरी खेलन आए तोरे द्वार ।
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 तू मेरे हाथों में भी कुछ रंग दे ,
 मैं भी मल दूँ तेरे गालन पे ,
 चन्दा से रूप सलोने तन पे ,
 इन हाथो पे कर दे उपकार ।
 होरी खेलन आये तोरे द्वार ।
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चितचोर मोहनी चितवन के ,
 मन से मन के मिलन से ,
 होरी के इस मौसम में ,
 टेसू सा केसरिया कर दूं श्रृंगार ।
 होरी खेलन आये तोरे द्वार ।
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 उतरे न रंग इस तन मन से ,
 कर दे गौरी तू उपकार ,
 मन सा मन से कर के श्रृंगार ।
 होरी खेलन आये तोरे द्वार ।
  .... विवेक ....


होली बिशेष


---- सुबह होली विशेष ----
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उस मौके को गवां न देना ।
रंग देना चाहे न रंग देना ।
जो आयें सामने होली पर हम ,
बस जरा सी तुम मुस्कान देना।
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अपने ही रंग में मोहे रंग देना ।
तूम मुझे मुस्कुराते नयन देना ।
जज़्ब कर लूंगा मुस्कुराहट को,
बस अपने अधरों पर थिरकन देना ।
.... विवेक .....

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...