शुक्रवार, 6 जुलाई 2018

निग़ाह राह ताकता

मनहरण घनाक्षरी
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निग़ाह राह ताकता,
रहा वक़्त गुजारता ।
हँस सँग दुनियाँ के ,
दर्द मैं बिसारता ।

 जी कर खुशियों को भी ,
 खुशी रहा निहारता ।
 मैं एक दर्द के वास्ते ,
 खुशी को पुकारता  ।

बदलेगा आज कल ,
कल को क्यों पुकारता । 
बीत कर ही आज से ,
कल को निहारता ।

होगा आज कल फिर ,
आज क्यों कल टालता ।
रुका नही वक़्त कभी ,
 बात को दुलारता ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

गुरुवार, 5 जुलाई 2018

सावन के ये बादल


मनहरण घनाक्षरी
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 सावन के ये बदल ,
 पिया मन भावन से ।
 छलकत रिम झिम  ,
  रस पिया मन से ।

थिरकन होंठो पर , 
मद है चितवन में ।
वो प्रणय निवेदन, 
 चाहत साजन से ।
  

 भींगी अंगिया तन पे , 
 दमका श्रृंगार सभी ,
  लरज़त है वा गोरी, 
 सखी ज्यों साजन से ।

 नैनन में आस जगी ,
आएंगे साजन मेरे
 अबकी जा सावन में , 
 ताप बुझे तन से ।
               
 .... विवेक दुबे"निश्चल"@...


सोमवार, 2 जुलाई 2018

वक़्त को यूँ बनाना पड़ा है

हमे भी वक़्त को यूँ बनाना पड़ा है।
हाथ सबसे हमें भी मिलाना पड़ा है।

 छुपा कर रंज दिल में अपने सारे ।
 सामने दुनियाँ के मुस्कुराना पड़ा है।

 बाहर-ऐ-चमन सामने नहीं कोई ,
सूखे फूलों से गजरा सजाना पड़ा है ।

 घटाएँ सावन की वो बरसी नहीं  ,
 निगाहों को सावन बनाना पड़ा है ।

 हम सफ़र कोई नही राह में मेरा ,
 रास्तों को हम सफ़र बताना पड़ा है।

 क़ुसूर रहा नही कभी कोई मेरा ,
 हर बार उसको मनाना पड़ा है ।

 वो बुत न रहे निगाहों में दुनियाँ की ,
"निश्चल" को चलना सिखाना पड़ा है।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
Blog post 2/7/18

नश्तर चुभोते रहे

यूँ अहसास नश्तर चुभोते रहे ।
खामोश लफ्ज़ जज़्बात रोते रहे ।

डूबकर दरिया भी समंदर में ,
 अपने आप को भिंगोते रहे ।

 तिश्निगी न चाही कभी मगर ,
 उजाले हर के साँझ खोते रहे ।

 डूबकर उभर जाएंगे हम कहीं ,
 इस ख्याल से खुद को डुबोते रहे ।

 उस साँझ की निशानी को ,
  सुबह तक हम संजोते रहे ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

क्यों नहीं देते

 हालात दिलों के तुम दिखा क्यों नही देते ।
येअश्क़ निगाहों से तुम गिरा क्यों नही देते ।

उठता है समंदर में तूफान जो कोई ,
साहिल से उसे तुम मिला क्यों नही देते ।

अरमान उठा जो आज उस दिल में ,
इस ज़िस्म में तुम गला क्यों नही देते ।

छेड़कर नग़मे प्यार के फिर कोई ,
जज़्बात दिलों के तुम जगा क्यों नही देते ।

ठहरा हूँ साहिल पर समंदर की चाह में ,
आँखों से अपनी दरिया पिला क्यों नही देते ।
आज बरस जाऊँ बून्द बून्द सा मैं ,
बारिश सा तुम मुझे सिला क्यों नही देते ।

"निश्चल" ही रहा हूँ अब तलक मैं ,
 मुसाफ़िर तुम मुझे बना क्यों नही देते ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....

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चेहरे से खुशियाँ बेगानी है

मेरे चेहरे से खुशियाँ बेगानी है यारो ।
 ये रंजिशें तो मेरी दिवानी है यारो ।

 गुजरता हुँ वक़्त के हालात के ,
 मंजिल एक दिन आनी है यारो ।

 अपने ही आप से क्यों रूठता हूँ ,
 यह मुश्किलें तो पहचानी है यारो ।

 नही रंज किसी के वास्ते दिल में ,
 ये उम्र तो आनी जानी है यारो ।

 मुश्किल यह दौर है कैसा ,
 ग़ुरबत ही निशानी है यारो । (विवशता)

 उठाता रहा कदम जीत के वास्ते ,
 एक हार भी नही पुरानी है यारो ।

चला चल "निश्चल" राह अपनी ,
 तुझे राह खुद बनानी है यारो ।

  ..... विवेक दुबे"निश्चल"@...

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...