बुधवार, 8 जून 2016

जहाँ धरती अम्बर मिलते हैं


दूर क्षितिज पर जहाँ धरती अम्बर मिलते हैं ।
 जहाँ सूरज चन्दा ढलते और निकलते हैं ।
  उस मिलन बिंदु पर एक नीली रेखा है,
 ले चलूँ तुझे वहाँ जहाँ न कोई सीमा रेखा है ।
     ..... विवेक © .....

हाथों के अंज़ाम बदलते हैं


वक़्त नही बदलता इंसान बदलते हैं ।
पाषाण वही रहता भगवान बदलते हैं ।
होतीं हैं लकीरें ----- हाथों में सबके ,
फिर भी हाथों के अंजाम बदलते हैं ।
... v विवेक © ....

सोमवार, 6 जून 2016

इंसानो में भगवान ढूँढता हूँ


1--
इंसानो में भगवान ढूँढता हूँ ।
 दुनियाँ में ईमान ढूँढता हूँ ।
 लूटाकर में खुशियाँ सब अपनी ,
 चेहरों पर मुस्कान ढूँढता हूँ ।
    .... विवेक ....
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2--
छूट रहा है कुछ साँझ ढले ।
भूल रहा हूँ कुछ भोर तले ।
जीवन की इस आपाधापी में ,
कैसे इस मन को ठौर मिले ।
.... विवेक .......
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3---
हम वो किताब ढूँढते रहे ।
रिश्तों के हिसाब ढूँढते रहे ।
मुक़द्दर में नहीं थे जो रिश्ते ,
उन रिश्तों के नक़ाब ढूँढते रहे ।
    .... विवेक ...

रविवार, 5 जून 2016

सामने है सर्व नाश फिर भी नही आती तनिक भी लाज


कट रहे वन जन हुए सघन ।
 थम गया जल ,
बहता था जो कल कल , कल  ।
 कहता है मानव विकास हुआ ,
 पर प्रकृति का तो सर्व नाश हुआ ।
 माना मानव ने गगन को छुआ ,
 पर धरा को धूल धुएं से भर दिया ।
 क्या पाया था क्या देकर जाओगे ,
 इस महा विनाश से सोचो कैसे बच पाओगे ।
 जब वसुंधरा को श्रृंगार रहित कर ,
 विधवा सा कर जाओगे ।
    ..... विवेक .....
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विश्व पर्यावरण दिवस पर दो शब्द ....

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...