कुछ खास नहीं कवि पिता की संतान हूँ । ..... निर्दलीय प्रकाशन भोपाल द्वारा बर्ष 2012 में "युवा सृजन धर्मिता अलंकरण" से अलंकृत। जन चेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति पीलीभीत द्वारा 2017 श्रेष्ठ रचनाकार से सम्मानित कव्य रंगोली त्रैमासिक पत्रिका लखीमपुर खीरी द्वारा साहित्य भूषण सम्मान 2017 से सम्मानित "निश्चल" मन से निश्छल लिखते जाओ । ..... . (रचनाये मौलिक स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित .)
बुधवार, 8 जून 2016
सोमवार, 6 जून 2016
इंसानो में भगवान ढूँढता हूँ
1--
इंसानो में भगवान ढूँढता हूँ ।
दुनियाँ में ईमान ढूँढता हूँ ।
लूटाकर में खुशियाँ सब अपनी ,
चेहरों पर मुस्कान ढूँढता हूँ ।
.... विवेक ....
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2--
छूट रहा है कुछ साँझ ढले ।
भूल रहा हूँ कुछ भोर तले ।
जीवन की इस आपाधापी में ,
कैसे इस मन को ठौर मिले ।
.... विवेक .......
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3---
हम वो किताब ढूँढते रहे ।
रिश्तों के हिसाब ढूँढते रहे ।
मुक़द्दर में नहीं थे जो रिश्ते ,
उन रिश्तों के नक़ाब ढूँढते रहे ।
.... विवेक ...
रविवार, 5 जून 2016
सामने है सर्व नाश फिर भी नही आती तनिक भी लाज
कट रहे वन जन हुए सघन ।
थम गया जल ,
बहता था जो कल कल , कल ।
कहता है मानव विकास हुआ ,
पर प्रकृति का तो सर्व नाश हुआ ।
माना मानव ने गगन को छुआ ,
पर धरा को धूल धुएं से भर दिया ।
क्या पाया था क्या देकर जाओगे ,
इस महा विनाश से सोचो कैसे बच पाओगे ।
जब वसुंधरा को श्रृंगार रहित कर ,
विधवा सा कर जाओगे ।
..... विवेक .....
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विश्व पर्यावरण दिवस पर दो शब्द ....
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कलम चलती है शब्द जागते हैं।
सम्मान पत्र
मान मिला सम्मान मिला। अपनो में स्थान मिला । खिली कलम कमल सी, शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई । शब्द जागते...