रविवार, 18 सितंबर 2022

आस

 1046

*आस*


खो गए निग़ाह में अहसास हो कर ।

रात के साथ दिन की आस हो कर ।

 

मैं खोजता रहा क़तरा क़तरा वो , 

 जो ग़ुम हुआ आँख से खो कर ।


  न मिल सका समंदर से वो दरिया ,

  आया था बड़ी दूर से सफ़र जो कर।


  जो चलता था उजालों के साये में ,

  खा बैठा रोशनियों से वो ठो कर ।


  हँसता ही रहा हर हाल पर जो,

  हँसता है वो आज भी रो कर ।


"निश्चल" न चल राह पर और आंगे ,

 मंजिल मिले नही राह को खो कर ।


... विवेक दुबे"निश्चल"@.

डायरी 7

ब्लॉग पोस्ट 19/9/22

आस

 1046

*आस*


खो गए निग़ाह को अहसास दे कर ।

रात के साथ दिन की आस दे कर ।

 

मैं खोजता रहा क़तरा क़तरा वो , 

 जो ग़ुम हुआ आँख से खो कर ।


  न मिल सका समंदर से वो दरिया ,

  आया था बड़ी दूर से जो तर हो कर ।


  जो चलता था उजालों के साये में ,

  खा बैठा रोशनियों से वो ठो कर ।


  हँसता ही रहा हर हाल पर जो,

  हँसता है वो आज भी रो कर ।


"निश्चल" न चल राह पर और आंगे ,

 मंजिल मिले नही राह को खो कर ।


... विवेक दुबे"निश्चल"@.

डायरी 7

ब्लॉग पोस्ट 19/9/22

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...