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वो ये जानते है कि हम नादान से है ।
उनकी साजिशों से हम अंजान से है ।
रिवाज़ नही बेहूदगी का मेरी दुनीयाँ में,
उस्ताद साजिशों के हम भी ईमान से है।
लगते साजिशों में वो बड़े मुकम्मिल,
इरादे उनके नजर आते शैतान से है ।
करते है बातें वो दिलो में फाँसले की,
न जाने किस बात के उन्हें गुमान से है।
कायम है वो ज़ख्म तीर जुवान के ,
ये लफ़्ज़ लफ़्ज़ दिल में निशान से है ।
आये है तेरे घर में एक उम्र के वास्ते,
अब नही हम यहाँ तेरे मेहमान से है ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@....
ब्लॉग स्पॉट 24/9/22
डायरी 7