.... *जिंदगी*....
आशाओं संग अभिलाषाओं से हारी है ।
नित् नए स्वप्न सजा दुल्हन सी साजी है ।
हो रहे पग घायल , पग घुंघरू बाँधे बाँधे ,
घुँघरू की थिरकन पर घुँघरू सी बाजी है ।
नित नव श्रृंगार सजाकर यह ज़िंदगी ,
आशाओं संग रक्कासा सी नाची है।
....
लुटती है घुटती है यह हर थिरकन पर ,
अपनी थिरकन से फिर भी न हारी है ।
रूप रंग भर नव चेतन का तन मन में ,
प्रणय निवेदन सी पल पल जागी है ।
टूट रहीं छूट रही है डोरे सांसों की ,
फिर भी चाहों में जीवन बाँकी है ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
आशाओं संग अभिलाषाओं से हारी है ।
नित् नए स्वप्न सजा दुल्हन सी साजी है ।
हो रहे पग घायल , पग घुंघरू बाँधे बाँधे ,
घुँघरू की थिरकन पर घुँघरू सी बाजी है ।
नित नव श्रृंगार सजाकर यह ज़िंदगी ,
आशाओं संग रक्कासा सी नाची है।
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लुटती है घुटती है यह हर थिरकन पर ,
अपनी थिरकन से फिर भी न हारी है ।
रूप रंग भर नव चेतन का तन मन में ,
प्रणय निवेदन सी पल पल जागी है ।
टूट रहीं छूट रही है डोरे सांसों की ,
फिर भी चाहों में जीवन बाँकी है ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...