करकर पूजा कर्म भाव की,
चलना था कन्टक राहों पर।
सत्य ओढ़ लिया था मैंने ,
चलकर असत्य के शूलों पर।
सत्य बार बार सिया था मैंने ,
ठोकर खाकर गिर गिरकर ।
गिरकर फिर उठ चलता मैं,
सत्य शिरोधार्य करकर ।
न हारूँगा सत्य न छोड़ूँगा मैं,
चलता बस इतना स्वीकार कर।
बस सत्य ओढ़ लिया था मैंने
बस एक यही नियम लेकर ।
..... विवेक दुबे "निश्चल"©......
चलना था कन्टक राहों पर।
सत्य ओढ़ लिया था मैंने ,
चलकर असत्य के शूलों पर।
सत्य बार बार सिया था मैंने ,
ठोकर खाकर गिर गिरकर ।
गिरकर फिर उठ चलता मैं,
सत्य शिरोधार्य करकर ।
न हारूँगा सत्य न छोड़ूँगा मैं,
चलता बस इतना स्वीकार कर।
बस सत्य ओढ़ लिया था मैंने
बस एक यही नियम लेकर ।
..... विवेक दुबे "निश्चल"©......