कुछ खास नहीं कवि पिता की संतान हूँ । ..... निर्दलीय प्रकाशन भोपाल द्वारा बर्ष 2012 में "युवा सृजन धर्मिता अलंकरण" से अलंकृत। जन चेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति पीलीभीत द्वारा 2017 श्रेष्ठ रचनाकार से सम्मानित कव्य रंगोली त्रैमासिक पत्रिका लखीमपुर खीरी द्वारा साहित्य भूषण सम्मान 2017 से सम्मानित "निश्चल" मन से निश्छल लिखते जाओ । ..... . (रचनाये मौलिक स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित .)
बुधवार, 21 अगस्त 2019
सफ़र डगर
748
रुककर सफ़र डगर पर ,
डगर सफ़र फ़िर चलता है ।
जो तूफानों से लड़कर ,
हालातों से जा भिड़ता है ।
तपकर संघर्षो की अग्नि में ,
कुंदन सा होकर ढ़लता है ।
अथक चला ज़ीवन पथ पर ,
पग पग पथ डग धरता है ।
तब दूर क्षितिज पर तारा कोई ,
सदूर क्षितिज तक मंजिल गढता है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6
रुककर सफ़र डगर पर ,
डगर सफ़र फ़िर चलता है ।
जो तूफानों से लड़कर ,
हालातों से जा भिड़ता है ।
तपकर संघर्षो की अग्नि में ,
कुंदन सा होकर ढ़लता है ।
अथक चला ज़ीवन पथ पर ,
पग पग पथ डग धरता है ।
तब दूर क्षितिज पर तारा कोई ,
सदूर क्षितिज तक मंजिल गढता है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6
राखी
750
रिश्तों का हो अंजन ।
प्यार का हो बंधन ।
विश्वास के दर्पण में ,
सागर सा हो मन ।
यह राखी ही मेरे ,
शृंगार का हो साधन ।
कभी न हो जो पूरा ,
मुझसे तेरा यह ऋण ।
इस राखी के धागे में ,
यह तन मन हो अर्पण ।
बहना यह जीवन ,
हो बस तुझे समर्पण । ...
।। शुभ राखी ।।
....विवेक दुबे"निश्चल"@....
दायरी 6
रिश्तों का हो अंजन ।
प्यार का हो बंधन ।
विश्वास के दर्पण में ,
सागर सा हो मन ।
यह राखी ही मेरे ,
शृंगार का हो साधन ।
कभी न हो जो पूरा ,
मुझसे तेरा यह ऋण ।
इस राखी के धागे में ,
यह तन मन हो अर्पण ।
बहना यह जीवन ,
हो बस तुझे समर्पण । ...
।। शुभ राखी ।।
....विवेक दुबे"निश्चल"@....
दायरी 6
मंगलवार, 20 अगस्त 2019
मेरे होने की कहानी
मेरे होने की , कहानी लिख दूँ ।
फिर कोई अपनी, निशानी लिख दूँ ।
खो गए हालात , जिन हाथों से ,
उन हाथों की, जख्म सुहानी लिख दूँ ।
न हो चैन मयस्सर, जिस जिस्म रूह को ,
कशिश उस रूह की, रूहानी लिख दूँ ।
गुजरता गया दिन , शोहरतों में ,
रात की फिर , वीरानी लिख दूँ ।
बदलती रही रंग , मौसम की तरह ,
ये जिंदगी , फिर भी दीवानी लिख दूँ।
सिमेटकर कुछ , हंसी खयालों को ,
उनवान नया ,नज़्म पुरानी लिख दूँ ।
ले आया यहां, सफर उम्र का चलते चलते ,
"निश्चल"पड़ाव पे, उम्र की नादानी लिख दूँ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
फिर कोई अपनी, निशानी लिख दूँ ।
खो गए हालात , जिन हाथों से ,
उन हाथों की, जख्म सुहानी लिख दूँ ।
न हो चैन मयस्सर, जिस जिस्म रूह को ,
कशिश उस रूह की, रूहानी लिख दूँ ।
गुजरता गया दिन , शोहरतों में ,
रात की फिर , वीरानी लिख दूँ ।
बदलती रही रंग , मौसम की तरह ,
ये जिंदगी , फिर भी दीवानी लिख दूँ।
सिमेटकर कुछ , हंसी खयालों को ,
उनवान नया ,नज़्म पुरानी लिख दूँ ।
ले आया यहां, सफर उम्र का चलते चलते ,
"निश्चल"पड़ाव पे, उम्र की नादानी लिख दूँ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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कलम चलती है शब्द जागते हैं।
सम्मान पत्र
मान मिला सम्मान मिला। अपनो में स्थान मिला । खिली कलम कमल सी, शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई । शब्द जागते...