मंगलवार, 17 नवंबर 2020

शेर 1/158 1 विवेक यह सफर विकल्प से संकल्प तक का । लगता सारा ज़ीवन "निश्चल" सफर दो पग का ।

 1

विवेक यह सफर विकल्प से संकल्प तक का ।

लगता सारा ज़ीवन "निश्चल" सफर दो पग का ।

2

डूबा न कभी मै बस तैरता रहा ।

 तिनके सा बजूद अखरता रहा ।

......3

 जुबां न कह सकी वो लफ्ज़ कह गए ।

 अल्फ़ाज़ मेरे अश्क़ से बहकर गए ।

......4

शिद्दत से पुकारा इल्म सा सराहा उसने ।

 गढ़कर निगाह से बुत कह पुकारा उसने।

.....5

 सबब परेशानियों का ,फ़क़त इतना रहा ।

   तू परेशां न रहा ,    मैं भी परेशां न रहा ।

......6

   मोल न रहा मेरा कुछ इस तरह ।

 बेमोल कहा उसने कुछ जिस तरह ।

....7

मैं तेरे इस जवाब का क्या हिसाब दूँ ।

जिंदगी तुझे जिंदगी का क्या हिसाब दूँ ।

.. 

8

उठा दिया अपने घर का ,

 रौशनी दिखाने चला था । 

  उजियारे वो अपने  ,

   यूँ मिटाने चला था ।

....9

दिए जले जो रातों को ,

                  खोजते अहसासों को ।

  जलाकर अपनी बाती ,

                    टटोलते अँधियारों को ।

....10

एक मेरा भी अंदाज़ है , राख होने का ।

 सुलग आखरी कश तक,ज़िंदा रहने का ।

  ..11

 हराकर उम्र शौक पाले थे, बड़े शौक से ।

 बुझे चिराग़ लड़ न सके,अंधेरों के दौर से।

....

   12

मैं तेरे इस सवाल का , क्या ज़वाब दूँ ।

ज़िंदगी तुझे ज़िंदगी का , क्या हिसाब दूँ ।

...13

 छुअन की उसको , दरिया की चाह थी   ।

 बहता गया बस वो , निग़ाह में उसकी ।

...14

देख संग दिली दुनियाँ की, हैरां है बुत ।

  सोचता है खड़ा वो, मैं बुत या ये बुत ।

   ....15

लोटता है वो निग़ाह भर देख मुझे ।

 क्यों बुत समझ बैठता है वो मुझे ।

  ...... 16

उजाला जब भी चला है अंधेरों ने छला है 

  ।

 रोशनी की चाह में ,सूरज तो बस जला है ।

  ....17

 मेरी प्रेरणा हो या नही ,नही जानता मैं।

 हाँ इतना पता है तुम से सीखा बहुत है ।  

 ...18

हाँ मैं कुछ कहता हूँ कुछ लिखता हूँ ।

 बात कभी कभी किताबों से आंगे कहता हूँ ।

 .......19

बस इतनी सी जुस्तजू (खोज)है ।

मुझे लफ्ज़ की आरजू (कामना)है ।

20

  लफ्ज़ बन सँग किताबों के हम हुए ।

   दफ़न किताबों में कुछ यूँ हम हुए ।

21

दूरियाँ नही दरमियाँ के,

                 अहसास खामोशियों के ।

सजती रही महफ़िल ,

                   बिन शमा रोशनियों के ।

22

  उतरे वीरानों में ,चैन की खातिर हम ।

  देखा वीरानों में बैचेनी बिखरी पड़ी है । 

23

मोहब्बत में बिका न खरीदा गया ।

दीवानगी का इतना सलीका रहा ।

24

टूटता रहा ऐतवार से,

      लड़ता रहा इख़्तियार से ।

खुलते रहे पर्त्-दर-परतों से, 

       हारते रहे शर्त-दर-शर्तो से ।

....

25

ज़माने का रिवाज , कुछ बिगड़ा बिगड़ा है ।

देख सादगी हमारी हर शख़्स उखड़ा उखड़ा है ।

    ....26

जो भागे सत्य से , वो साहित्य कैसा।

 आईना दिखाता वही , जो है जैसा।

... 27


  35

मेरे अश्क़ सामने गिरे मेरे अपनों के ही ।

 मुस्कुराहट गेरों में वफ़ा तलाशती रही ।

.36

 वो ज़मीं थी हरी भरी , मैं आसमाँ वीरान था ।

 कलरव थे दामन में उसके, मैं ख़ामोश सुनसान था ।

37

शब्दो के सफर में हम सब मुसाफ़िर है ।

तलाश मंजिल की ज़िंदगी गुजर जाती है ।

38

न समझ सका मैं वक़्त के मिजाज को ।

एक कल की खातिर भूलता आज को ।

39

 कहला सका न आदमी वो कभी ,

 वो भी तो आखिर एक इंसान था ।

40

"निश्चल" चला न चाह में   जिसकी ,

 मंजिल न थी दूर सामने जहान था ।

... 

41

तारा टूटा फ़लक से जमीं नसीब न थी ।

ख़ाक हुआ हवा में मुफ़लिसी केसी थी ।।

..42

सितारे की चाह है ,चाँद से इक़रार है ।

 चाँदनी आई साँझ ढले,शबनम बेकरार है ।

....43

  खामोशी ओढ़कर इजहार रहा ।

  बे-इंतहां  उसका कुछ प्यार रहा ।

....44

कोई खामोशी अपनी भी बयां करो ।

 कुछ लफ्ज़ अपने ज़िगर जुदा करो ।

...45

खोजते सभी  रास्ते यहीं कही हैं ।

चूकती निग़ाह,फासला दो पग नही है ।

... 45

 कैसे छोड़ दूँ मै शहर अपना ।

 अभी शहर में अजनबी बहुत है ।

....46

ख़ातिर खुशी की ,हँसता रहा बार बार ।

  मेरा आईना भी ,मुझसे रहा बे-ऐतवार ।

.....

47

वक़्त ने यूँ आजमाया मुझे ।

वक़्त पे ही अपनाया मुझे ।

....48

बदलता ही रहा वक़्त से वक़्त भी ।

 बे-वफा ही रहा वक़्त से वक़्त भी ।

----49

तदवीर से न बदल वक़्त की फितरत को ।

बदल वक़्त क्या कहेगा तू  किस्मत को ।

..50

लफ्ज़ लिखता मिटाता रहा मैं ।

 यूँ वक़्त अपना बिताता रहा मैं ।

...51

 जाने वो क्या वक़्त की, अधूरी चाह रही ।

 कलम चलती रही,  ख़ामोश निग़ाह रही ।

..52

हौंसलो से हुनर,  मुक़ाम पता है ।

मुसाफ़िर अकेला , थक जाता है ।

..53

घोर निराशा जब तिमिर गहराती है ।

सूरज की आभा छाया गढ़ जाती है ।

.... 54

साहिल को ही सागर हांसिल है ।

सहता जो सागर की हलचल है ।

 ...55

देते रहे साथ मेरा वक़्त वक़्त पर वो ।

 साथ चले थे लफ्ज़ किताबो से जो

...

...56

तपते रहे अल्फ़ाज़ तपिश अहसास से ।

 आते रहे जाते रहे ,वो अपने अंदाज से ।

.... 57

 हर जवाब से सवाल निकालता रहा।

 वो इस तरह मुझे खुद में ढालता रहा ।

.....58

 हक़ीम था वो कुरेद गया  जख्मों को ।

 उधेड़ गया वो कुछ याद जख्मों को ।

....59

सिया जब भी जिगर को अपने ।

 निशां रहे पैबंद दिखे जिगर पे ।

...60

  सवाल उठते रहे निग़ाह में ,

  निग़ाह से गुजरते हर शख्स के ।

.... 

...61

बैचेनियाँ दिल निगाह झलक लाए हैं ।

लफ्ज़ बेजुवां आँख छलक आए हैं ।

..62

 माँगकर अश्क़ मेरे हँसी बाँटने आए है ।

 वो हमें खुद से खुद यूँ काटने आए हैं ।

  ...63

ले हाथ रंग गुलाल ,

            निग़ाह मलाल लाए हैं।

  रहे बेचैन आज हम ,

             वो बहुत सवाल लाए हैं ।

...64

 धुल जाएगी रंगत शूलों की ,

                         टीस साथ निभाएगी ।

आती होली साल-दर-साल ,

                         होली फिर आएगी ।

....65

बेताब कदम मंजिल छूने को ।

जमीं बैचेन आसमां होने को ।

..... 

66

तू मेरा हक़ीम हुआ ,

           होंसला-ऐ-यक़ीन हुआ ।

 थामकर नब्ज़ सफ़र-ऐ-ज़िंदगी ,

                  तू मेरा मतीन हुआ ।

(मतीन/निर्धारित/ ठोस)

...67

तलाश-ए-ज़िंदगी में गुम हुआ।

 कुछ यूँ ज़िंदगी का मैं हुआ ।

...68

 अर्श पे अना लिए चलता रहा ।

 गैरत-ऐ-अहसास चुभता रहा ।

...69

आइना तू सवार दे मुझे ।

  मैं कुछ निहार लूँ तुझे ।।

  ....70

तहज़ीब ही हुनर-ए-तमीज़ है ।

 यूँ तो इंसान बहुत बदतमीज है ।

...71

खबर नही के तू बेखबर सा है ।

कदम कदम तू हम सफर सा है।

....72

 समझते हैं समझौता जिसे एक हार है वो ।

 टूटता सामने "निश्चल"जिसके प्यार है वो ।

......73

  तेरी हर दुआ , रज़ा खुदा हो जाए ।

 भटकी कश्ती का, तू नाख़ुदा हो जाए।

...74

 दुआ के ताबीज को तरकीब बना लूँ मैं ।

 उस तरकीब से तक़दीर सजा लूँ मैं ।

...75

हुनर वो नही ,   जो लेना जाने ।

हुनर वो है ,      जो देना जाने ।

---76

तक़दीर ही तकदीरें तय किया करती हैं ।

 रास्ते वही मंज़िले बदल दिया करती हैं ।

..77

जज़्ब कर उस अस्र अक़्स को ,

   जो कहूँ मैं दुआ तुझको ।

अस्र .. समय

...78

वो यूँ दुआ का करम फ़रमाती है ।

बद्दुआएं अब बेरुखी फ़रमाती है ।

....79

अहसान जिंदगी का इतना मुझ पर ।

करम फरमाया हर अहसान का मुझ पर ।

...80

कैसी अदावत है आज महफ़िल की ।

खिड़कियां खुलती नही अब दिल की ।

... ..

..81

पढ़ता जो नजर सा ,लफ्ज़ रूठ जाते ।

 पढ़ता जो लफ्ज़ सा ,इशारे रूठ जाते ।

..82

 किताब खुली खुली जो बन्द सा मगर ।

  सफ़े सफ़े पर क्यु चिलमन सा असर ।

.... 83

अक़्स पर अक़्स चढ़ाया उसने।

 खुद को बा-खूब सजाया उसने ।          

...84

 एक मुख़्तसर ग़जल कही मैंने ।

 एक निग़ाह नजर कही मैंने ।

 ....

 ...85

नजर का खेल , बड़ा अजीब है ।

 नज़र अंदाज़ वही , जो अज़ीज है ।

.... 86

इल्म वो नही जो ख़ामोश रह गया ।

 इल्म वो जो में दुनियाँ बयां हो गया ।

...87

बदले मेरे शहर के हालात हैं ।

 संग निग़ाह खँजर हाथ है ।

....88

 सैय्यदों के शहर में,  हैं परिंदे कहर में ।

 उड़ें तो उड़ें कैसे,  हैं फंदे हर नजर में ।

...

 89

शेर ज़िंदगी ऐ दख़ल होते रहे ।

लफ्ज़ लफ्ज़ ग़जल होते रहे ।

...90

मस्त है ज़िंदगी पस्त है ज़िंदगी ।

 अक्षर अक्षर बिखरी है ज़िंदगी ।

....91

रहा गाफ़िल ज़िंदगी के इख़्तियार में ।

 ले डूबी मौत इंसा को अपने प्यार में ।

.....92

इस सच को मान न मानो अपनी हार ।

 यह जोश ज़िंदगी का ही दौलत अपार ।

...93

  टूटता रहा ऐतबार ऐतबार से ।

  लड़ता रहा   यूँ इख़्तियार से ।

...94

   मुस्कुरा ऐतबार इजहार किया उसने ।

   लगा ठहाका बे-ऐतबार किया उसने ।

.... 

  .95

ज़िंदगी भी , एक किताब है ।

   दो लाइन का, बस हिसाब है ।

...96

कुछ लिखें अपना , कुछ कहें अपना।

 सत्य नही ज़ीवन , ज़ीवन एक सपना।

...97

   ज़ीवन की बस , इतनी परिभाषा है। 

    ज़ीवन तो बस , कटता ही जाता है। 

....98

पतझड़ नही वसंत हो ज़िंदगी ।

 अन्त नही आरम्भ हो ज़िंदगी ।

---99

लाभ हानि के खाते , लिखते सब ।

 लोग नही मिलते ,  बे-मतलब अब ।

---100

होता रहता हरदम , कुछ न कुछ।

 वक़्त सीखाता हरदम , कुछ न कुछ।

101

भर गया दामन , दुआओं के फूलों से ।

खुशबू दुआओं की,जा मिली रसूलों से ।

....102

 निगाह नजारों की भी न चाहत रही  ।

 जहां साँसों की भी न आहट रही ।

 ...103

रोशन रहे शमा सुबह के उजालों तक ।

  आ जाएं वो आने के किए वादों तक ।

...104

 चाहत रात की , खातिर उजाले की ।

 मयकदा रिंद की ,  मय प्याले की ।

.....105

जिंदगी न समझ सकी हालात को ।

 बुझती गई प्यास फिर प्यास को ।

... 106

न मिला निग़ाह जमाने से ख़ातिर अपनी ।

चल नजर बचा जमाने से ख़ातिर अपनी ।

 ..107

  निग़ाह शक से देखता है जमाना अक़्सर ,

   भुलाकर वो तेरा   मेहनतकश मुक़द्दार ।

..108

 तपता रहा उम्र भर , कुंदन सा हो गया ।

 भाया न दुनियाँ को , खुद भी खो गया ।

..109

पथिक थक जाएगा ,मंजिल पा जाएगा ।

 छोड़े पद चिन्हों का,इतिहास बनाएगा ।

....

110

लकीरें मुक़द्दार की बदलती नही ।

 लोग फिर भी तक़दीर गढ़ा करते है ।

111

मेरी यह आदतें आदत बनती गई।

शब्द जागते रहे कलम चलती रही ।

112

हम छपते रहे अखवारों में कभी कभी ।

यूँ बिकते रहे शहर शहर कभी कभी ।

113

मैं कौन हूँ जमाना तय क्या करेगा ।

मेरा हुनर ही तो मेरा आईना होगा ।

114

बाद मेरे याद रहे मेरे अल्फ़ाज़ में ।

बस यही दौलत कमाना चाहता हूँ ।

115

खुलते रहे पर्त्-दर-परतों में ।

हारते रहे शर्त-दर-शर्तो में ।

116

कुछ नुक़्स भी नायाब होते है ।

रुख़सार चाँद पर दाग होते है ।

... 

117

ज्यों ज्यों ज़ीवन की साँझ ढली ।

त्यों त्यों तुझसे मिलने चाह बड़ी ।

118

कदम बेताब मंजिल छूने को ।

जमीं बैचेन असमां होने को ।

119

वक़्त छीन रहा बहुत कुछ ।

हँसी ले दे रहा सब कुछ ।

120

तमाशा ही है आज हर जिंदगी ।

करता नही कोई किसी से बंदगी ।

121

लो टूटकर फ़लक से वो चला ।

गुमां था जिसे असमां पे चमकने का ।

122

रूह से रूह जहां मिल जाती है ।

ज़िस्म वहां ख़ुदा हो जाते है ।

123

जिंदगी कटती अपने ही तरीके से ।

हारते हम हर बार अपनो के तरीकों से ।

124

तक़दीरें ही तक़दीर तय किया करती है ।

रास्ते वही मंजिल बदल दिया करती है ।

.....

125

मिले तेरे मुकद्दर से वो सब तुझे ।

मिला न मेरे मुक़द्दर से जो मुझे ।

126

हूँ होश में , मैं मदहोश हूँ मगर ।

जिंदगी तेरे अंदाज़ से,हैरां हूँ मगर ।

127

लाभ हानि के खाते लिखते सब ।

मिलते नही लोग बे-मतलब अब ।

128

ख़्वाब सहेजे कुछ ख़्वाब समेटे ।

कुछ संग उठ खड़े कुछ अध लेटे ।

129

नियति ने कुछ तो तय किया होगा ।

जो घट रहा है वो तेरे लिए सही होगा ।

130

हुनर वो नही जो लेना जाने ।

हुनर वो है जो देना जाने ।

131

भीड़ बहुत थी पास मेरे मुस्कुराने बालो की 

मेरी हर शिकस्त पर जश्न मनाने बालो की 

132

कोशिश की हार कहाँ ।

प्रयास है प्रतिसाद जहाँ ।

133

ख्वाहिशें न बने "विवेक"सज़ा ।

खुशियों की हो इतनी सी बजह।

134

समंदर में तूफान छुपे होते है ।

साहिल अक्सर खामोश होते है ।

..136

वो यूँ दुआ का करम फरमातीं है।

  वद्दुआएँ अब बेरुखी फरमातीं हैं।

 

136

अहसान ज़िंदगी का इतना सा मुझ पर ।

करम फ़रमाया हर अहसास का मुझ पर ।


 137

  कैसी अदावत है आज मेहफिल की ।

 खिड़कियाँ खुलती नही अब दिल की।

...

155

अभिलाषा अम्बर की धरती को छूने की ।

एक धुंधली साँझ तले स्वप्न संजोने की ।

 ... 156

घोर निराशा जब तिमिर गहराती है ।

सूरज की आभा छाया गढ़ जाती है।

 ... 156

  आवाज में मेरी कोई कशिश तो नही ।

 फिर भी गुनगुनाया,करता हूँ कभी कभी ।

.... 157

    साहिल को ही सागर हाँसिल है ।

    सहता जो सागर की हलचल है ।

........158

 लकीरें मुक्कदर की बदलती नहीं।

फिर भी लोग तक़दीर गड़ा करते हैं ।

...

  .... विवेक दुबे "निश्चल"©.....

Blog post 17/11/20

डायरी 3




दीवाली pic post







 

कुछ तस्वीरे 30 pic post































 

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...