इतिहास लिखें न हम कल का।
इतिहास लिखें हम कल का।
राह बदल दें हम सरिता की,
सत्य लिखें हम पल पल का।
...
सत्य की सुगंध हो, होंसले बुलंद हों।
जीत लें असत्य सभी,इतना सा द्वंद हो ।
....
सीखता है वो अपनी हर भूल से।
खिलता फूल मिट्टी की धूल से।
....
बिकती है कलम भी,
सत्ता के गलियारों में ।
जय चंद समाये है ,
इन पहरे दारों में ।
बाँट दिए है दिल से दिल,
इनके जज़्बाती नारों ने ।
घात लगा हमले होते,
सीमा के पहरे दारों पे।
देश नही दुनियाँ दिखती,
इनको अपने यारों में।
भूख बेवसी बेकारी सब,
मिट रही बस नारों से ।
बिकती है कलम भी,
सत्ता के गलियारों में।
.... "निश्चल" विवेक दुबे..
इतिहास लिखें हम कल का।
राह बदल दें हम सरिता की,
सत्य लिखें हम पल पल का।
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सत्य की सुगंध हो, होंसले बुलंद हों।
जीत लें असत्य सभी,इतना सा द्वंद हो ।
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सीखता है वो अपनी हर भूल से।
खिलता फूल मिट्टी की धूल से।
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बिकती है कलम भी,
सत्ता के गलियारों में ।
जय चंद समाये है ,
इन पहरे दारों में ।
बाँट दिए है दिल से दिल,
इनके जज़्बाती नारों ने ।
घात लगा हमले होते,
सीमा के पहरे दारों पे।
देश नही दुनियाँ दिखती,
इनको अपने यारों में।
भूख बेवसी बेकारी सब,
मिट रही बस नारों से ।
बिकती है कलम भी,
सत्ता के गलियारों में।
.... "निश्चल" विवेक दुबे..