मंगलवार, 4 फ़रवरी 2020

हालतों से डरकर क्या होगा

763
हालतों से डरकर क्या होगा ।
घुट घुट के मरकर क्या होगा ।

लड़ जा ले साहस को अपने ,
देखें तो लड़कर क्या होगा ।

हार हुई हरदम हालातों की ,
साहस से बढ़कर क्या होगा ।

चलता चल दूर क्षितिज तक ,
कुंठाओं में घुटकर क्या होगा ।

 सहज सुहानी यादें मन भीतर ,
 चिंता मन में धरकर क्या होगा ।

"निश्चल" आज यही है साथ यही है ,
कल की चिंता करकर क्या होगा ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 7

वचपन

762
वो अंजान सा बचपन ।
वो नादान सा बचपन ।

उम्र के कच्चे मकां में ,
वो मेहमान सा बचपन ।

 इस ज़िंदगी के सफ़र में ,
 एक पहचान सा बचपन ।

 खोजता ख़ुद को ख़यालों में ,
  रहा अहसान सा बचपन ।
 ...विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 7

आओ कान्हा

 758
आओ कान्हा,
        दया दिखाओ कान्हा ।

छाओ चित में,
        मोहे न बिसराओ कान्हा ।

करुण पुकार सुनो मेरी,
      तुम कृपा बरसाओ कान्हा ।

हार रहा मन मन के हाथों,
       राह तुम दिखलाओ कान्हा ।

 जीत सकूँ स्वयं स्वयं के आगे ,
    स्वयं को हर ले जाओ कान्हा ।

 नयन बिलोकत पल छिन पल छिन ,
    सखी सी प्रीत निभाओ कान्हा ।

भाव भरे यह मन भीतर गहरे ,
    गोपी सा रास रचाओ कान्हा ।

 गीत गढूं नित नित तेरे ,
    अधरन प्यास बुझाओ कान्हा ।

 विनय यही बस लाज रखो मेरी ,
"निश्चल"को न बिसराओ कान्हा ।

आओ कान्हा, दया दिखाओ कान्हा ।
छाओ चित में,मोहे न बिसराओ कान्हा ।

..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 7
Blog post 4/2/2)

प्रचण्ड चंड नन्दनी

758
प्रचण्ड चंड नंदनी ।
 असुर शीश खंडनी ।
     महा पाप भंजनी ।
      महा देव वंदनी । 

 सहस्त्र कोटि भानु सम ,
 दिव्य तेज धरणी ।
       पाप के विनाश को ,
      महा माया रजनी ।

श्वेत वस्त्र धार के ,
 अशेष ज्ञान प्रदायनी ,
     महा ज्ञान प्रकाशनी  ।
     नमामि देवी नमोस्तुते ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 7

गजल

757
- राज़-ऐ-वक़्त ---

2122 , 12 12 ,22

दूर कितना रहा , ज़माने में ।
कर सफ़र मैं तन्हा,वीराने में ।

 छूटता सा चला कहीं मैं ही ,
 यूँ नया सा शहर ,बसाने में ।

ढूँढ़ती है नज़र निशां कोई ,
क्यूँ मुक़ा तक ,चलके आने में ।

खोजता ही रहा कमी गोई ,
नुक़्स मिलता नही ,फ़साने में ।

रोकता चाह राह के वास्ते ,
चाँद भी हिज़्र तले,ढल जाने में ।

जूझती है युं रूह उम्र सारी ,
जिंदगी के रिश्ते निभाने में ।

राज़ है वक़्त में छुपा कोई   आज"निश्चल"मुझे,बनाने में ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@....

डायरी 7

रोकती चाह चाँद के वास्ते ,
चाँदनीं हिज़्र तले,ढल जाने में ।

छोड़ती राह चाँद के वास्ते ,
चाँदनी हिज़्र तले ढल जाने में ।

यूँ ही तुम मुझसे वात करते हो ।

गजल



ग़ज़ल प्रतियोगिता

बहारों ने तुझको पुकारा भी होगा ।
मिलाने निग़ाहें संवारा भी होगा ।
झुकाकर निग़ाहें बड़ी ही अदा से ,
इशारों में दिल को हारा भी होगा ।
चढ़ा इश्क़ परवाज़ राहे ख़ुदा में ।
हुस्न आइने में उतारा भी होगा ।
चला हूँ डगर पे तुझे साथ ले के ,
कहीं तो मुक़द्दर हमारा भी होगा ।
नही है सफर पे मुसाफ़िर अकेला,
मुक़ा मंजिल पे इक हमारा भी होगा ।
रहेंगे जहाँ पे सफर में अकेले ,
वहाँ पे दुआ का सहारा भी होगा ।
बहा है सदा साथ "निश्चल" दर्या के ,
कही तो युं मेरा किनारा भी होगा ।


     ....विवेक दुबे"निश्चल"@....




कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...