शुक्रवार, 4 मई 2018

यात्रा

यात्रा क्षितिज से क्षितिज की ।
यात्रा बस अंतहीन विश्वास की ।
 अनन्त यात्रा दिन प्रति दिन ,
  उदित नभ से अस्त आकाश की ।

  इच्छाएं कुछ पाने की , 
   कुछ खोने के साथ सी ।
  घूम रही धरा धूरी पर ,
  "निश्चल" देती आभास सी ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..

धूप ढली कागज़ पेहरन सी ।
 साँझ लगी मन चितवन सी । 
.... विवेक दुबे"निश्चल"@

कुछ शेर ऐसे भी

कुछ शेर मेरे ऐसे भी रह गए ।
 किसी नज्म में जो कहे न गए ।

 वो अश्कों में भींग कर मेरे ,
 वो लफ्ज़ लफ्ज़ घुलते गए ।

  अहसासों की खुशबुएँ थीं जिनमें ,
  अहसासों के वो फूल झड़ते गए ।

  जो जहां सर्द हुए थे अल्फ़ाज़ मेरे ,
  वो अल्फ़ाज़ वहां से पिघलते गए ।

 उजाले थे बहुत शहर में मेरे ,
 अंधेरे रोशनियों को निगलते गए ।

 रहा मलाल"निश्चल" को इतना,
 वो शेर आज भी मेरे ही रहे ।

  .... विवेक दुबे"निश्चल"@..

गुरुवार, 3 मई 2018

हर मुश्किल हल होगी

हर मुश्किल हल होगी ।
 आज नही तो कल होगी ।
 चमकेगा दिनकर फिर वहां ,
 निशा जहां ख़तम होगी ।
 ... विवेक दुबे"निश्चल"@..

बुधवार, 2 मई 2018

जीवन की खातिर

पाकर जिसने मुझको ,
 खुद को खोया था ।
जीवन की खातिर ,
 जीवन को खोया था ।

 सजल नयन थे कितने ,
 दृग कण भी रोया था ।
 मुस्कान भरे अधरों पर ,
 शब्द शब्द में खोया था ।

 जीवन की खातिर ,...

 छोड़ चले पग चिन्ह ही अपने ,
 चिन्हों ने कदमों को खोया था ।
 लिपटी दृष्टि बार बार यादों में ,
  वादों ने यादों को खोया था ।

 जीवन की खातिर ,...

 छूटा वो आँचल आँगन भी ,
 जिस आँचल ने उसे संजोया था ।
 बातों को अब आँगन की ,
 उसने यादों में बोया था ।

 पाकर जिसने मुझको ,
 खुद को भी खोया था ।
 जीवन की खातिर ...
.... विवेक दुबे "निश्चल"@...

मंगलवार, 1 मई 2018

यह शब्दों का बंधन

  शब्दों का बंधन कैसा ।
 भावों का जकड़न कैसा ।
  इस मन की पीड़ा का ,
  यह नेह निवेदन कैसा ।
... 
 शब्द भाव गढ़कर ।
  अश्क़ झड़ते रहे ।
  दबकर कलम तले  ,
   नम निगाह पढ़ते रहे।
.. 
ज़िस्म आज़ाद रहे ।
 रूह नही आज़ाद रही ,
 कशिश रूह की ,
 ज़िस्म के साथ रही ।
....
   कहती बहुत कुछ अक्सर,
   पर ज़िंदगी खामोश रही।
   इस खामोशी से बेहतर ,
    कहने को कुछ भी नही ,।
   
 ....
 वक़्त बे-वक़्त वो हमे , 
  अपना बनाते रहे ।
  वक़्त बे-वक़्त यूँ हमे , 
  अपना बताते रहे । 

 टूटकर कर भी कभी ,  
    टूट न सके हम ,
 निग़ाह में हम ,उनकी , 
  संग कहलाते रहे ।
.... 
 जंग लड़ता रहा, 
 अपने आप से ।
 जीतता कभी, 
 हारता जज़्बात से ।
... 
  यूँ आदतें मेरी , 
   आदत बनती गई ।
 शब्द जागते रहे, 
 कलम चलती रही।

... विवेक दुबे"निश्चल"@...

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...