यात्रा क्षितिज से क्षितिज की ।
यात्रा बस अंतहीन विश्वास की ।
अनन्त यात्रा दिन प्रति दिन ,
उदित नभ से अस्त आकाश की ।
इच्छाएं कुछ पाने की ,
कुछ खोने के साथ सी ।
घूम रही धरा धूरी पर ,
"निश्चल" देती आभास सी ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
धूप ढली कागज़ पेहरन सी ।
साँझ लगी मन चितवन सी ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@
यात्रा बस अंतहीन विश्वास की ।
अनन्त यात्रा दिन प्रति दिन ,
उदित नभ से अस्त आकाश की ।
इच्छाएं कुछ पाने की ,
कुछ खोने के साथ सी ।
घूम रही धरा धूरी पर ,
"निश्चल" देती आभास सी ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
धूप ढली कागज़ पेहरन सी ।
साँझ लगी मन चितवन सी ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@