शनिवार, 18 मई 2019

ईस्वर





कुछ तस्वीरे

















रूह-ए-तिश्निगी




रूबरू ज़िंदगी ,घूमती रही ।
 रूह की तिश्नगी, ढूँढती रही ।
रहा सफ़र दर्या का, दर्या तक,
मौज साहिल को ,चूमती रही ।
....
कुछ यूँ सूरत-ऐ-हाल से रहे ।
कुछ उम्र के ही ख़्याल से रहे।
ख़ामोश से किनारे दर्या के ,
औऱ नज़्र के मलाल से रहे।
.....
रूह जहाँ मिल जातीं है ।
ज़िस्म खुदा हो जाते है ।
न रहे चाहते हसरत कोई,
अल्फ़ाज़ दुआ हो जाते हैं ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
Blog post 18/5/19

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...