गुरुवार, 8 मार्च 2018

ले आया कुछ यदों को


ले आया कुछ यादों को ।
 वादों के रंग लगाने को ।

 टेसू सा मन आँगन में ,
 केसरिया छा जाने को ।

  प्रीत मिलन नयनों से ,
   अबीर फुहार उड़ाने को । 

  अपने सतरंगी सपनो से ,
 तुझको तर कर जाने को ।

    ले आया कुछ यादों को ।
  .... विवेक दुबे"निश्चल"@...,...


दृग जल नैनन से ,,,



दृग जल नैनन से ,
 ठहरा अधरन पे ।
 व्यकुल नैनन से ,
 मचला चितवन में ।
  दग्ध हृदय आधीर शब्द,
  व्यथा बसी उस मन में ।
   बिरह व्याकुल वो ,
 रोक रही मन मन से ।
  सिंगर खड़ी द्वारे ,
 मिलने आतुर प्रियतम से ।
 आएंगे इस फ़ागुन में ,
 मिलने रंग अपने रंग से ।
  रच जाऊँ उसके रंग में ,
भाव लिए सोचे चितवन में ।
दृग जल नैनन से,
 ठहरा अधरन पे ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

बुधवार, 7 मार्च 2018

कलम काव्य रचती

 चित्कार उठी वो अन्तर्मन से ।
  दृष्टि सृष्टी के कण कण पर।
 सम्मोहित कलम काव्य रचती ,
 चलती मोहित कागज़ पथ पर ।

  सिंचित नभ जल सम वो  ,
  सृजित प्राण क्षिति नीचे ।
 शुष्क नही मरु भूमि वो ,
 तपता ''निश्चल" जल नीचे ।

..... विवेक दुबे"निश्चल"@.......
क्षिति - धरा




7 मार्च

    ---7 मार्च है बहुत खास ----
  ====================
 मैं प्रणय गीत फिर गाता हूँ ।
यादों को जगाता हूँ ।
सुर्ख गुलाबी हाथों को ,
छूते हुए शर्माता हूँ ।
अध् खुले नैनों से, 
नयन मिलाता हूँ ।
अधरों के कम्पन से,
 हृदय भाव रचाता हूँ ।
 मैं प्रणय गीत गाता हूँ ।
साँसों से साँसे मिलाता हूँ ।
दो धड़कन एक बनाता हूँ ।
मैं प्रणय गीत फिर गाता हूँ ..... 
 मृग नयनी कस्तूरी सा पाता हूँ ।
 मधुवन भवरें सा मंडराता हूँ ।
मैं प्रणय गीत फिर गाता हूँ ..... 
प्रणय मिलन की बेला में,
आज तुझे सजाता हूँ ।
 पल अनमोल बनाता हूँ ।
मैं प्रणय गीत फिर गाता हूँ ..... 
तू ही मैं ,मैं ही तू ,
यह अहसास दिलाता हूँ ।
अहसासों के बंधन बंध जाता हूँ ।
 मैं प्रणय गीत फिर गाता हूँ ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@.....

मंगलवार, 6 मार्च 2018

ज़ीवन संगनी तू

   

   रागनी तू अनुगामनी तू।
   राग तू अनुरागनी तू ।
          चारणी तू सहचारणी तू।
          शुभ तू शुभगामनी तू।
  नैया तू पतवार तू ।
  सागर तू किनार तू ।
             प्रणय प्रेम फुहार तू ।
            प्रकृति सा आधार तू ।              
 प्रीत का प्रसाद तू ।
 सुखद सा प्रकाश तू ।     
           खुशियों का आकाश तू।
          "विवेक" का विश्वास तू ।
   सँग तू साथ तू ,साँस साँस तू ।
   हृदय भरा "निश्चल" उल्लास तू ।
          सजीव ज़ीवन संगनी तू ।
          सुखी ज़ीवन आधार तू।
       .. विवेक दुबे "निश्चल"©,...

मधु मास आया है

 मधु मास आया है ।
 कलियों पर यौवन छाया है।
  भंवरों से मिलने को ,
  कलियों की आतुर काया है ।
-- 
  भंवरों ने प्रणय गान गया है ।
   मन आज बौराया है ।
   वसुधा सजी दुल्हन सी ,
  देख व्योम भी शरमाया है ।
----
   देख श्रृंगार उर्वी का ,
   विधु ने खुद को पिघलाया है ।
   पुष्पित सुरभित आज उर्वी ,
    विधु ने प्रणय रस बरसाया है ।
    ---
   ..... विवेक दुबे©.....

उलझती सुलझती ज़िंदगी

उलझती है सुलझती है ज़िन्दगी ।
 रुकती कहाँ चलती है ज़िन्दगी ।

स्याह रंग समेट भटकती है जिंदगी ।
 चटक रंग लपेट दमकती है जिंदगी ।

  निराशा आँचल दुबकती है जिंदगी । 
  आशा आँचल  चहकती है जिंदगी ।
  
 दामन में साँझ सिमटती है जिंदगी ।
  गोद में सुबह किलकती है जिंदगी ।

 रुकना नही चलना नाम ज़िंदगी ।
 हर पल एक नया मुक़ाम ज़िंदगी ।

 उलझती है सुलझती है ज़िन्दगी ।
 रुकती कहाँ चलती है ज़िन्दगी ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
  

वक़्त मिले तब तुम आना

सुमधुर कामनाएं होली की ।
 स्नेहिल रंगों की बोली की । 
 सजी हुई है थाल हृदय रंग ,
 अहसासों की हमजोली सी ।
.... 
वक़्त मिले तब आना तुम ।
 यादों को रंग जाना तुम ।
   इन अहसासों के रंगों से ,
   मुझको तर कर जाना तुम ।
.....
 रंगोत्सव मङ्गलमय हो ।
 हर रंग ज़ीवन खिला हो ।
 बरसे गुलाल खुशियों की ,
 स्नेहिल सुगंध भरा हो ।
..
...विवेक दुबे "निश्चल"@..

अब की होली

अब की होली ।
 तब की होली ।
 अब याद नही ,
  तुम सँग ,
  कब खेली होली ।
  ओ हमजोली ,
  अब की होली ,
  तुम किसकी होली ।
 . विवेक दुबे"निश्चल"@..

क्या खेलें हम होली

सीमा पर चलतीं हर दिन गोली ,
क्या खेलें हम एक दिन होली ।
 रंग चढ़े उन पे वतन परस्ती के,
 वो खेलें अपने लहू सँग होली ।

 डूब रहे हम अपनी मस्ती में,
 भूल रहे जो सीने खाते गोली ।
 सीमा पर अनचाही चलती गोली ।
 खेल रहे वीर राष्ट्र प्रेम की होली ।
क्या खेलें हम होली ।
 ...विवेक दुबे"निश्चल"@..

श्याम सँग सखी खेलत होरी

श्याम सँग सखी खेलत होरी ।
तर भई तन मन श्याम रंग से ,
 सुकचत लरजत थोरी थोरी ।
 ओढे जो सँसार चुनरिया ,
 धर दीनी कोरी की कोरी ।
 श्याम सँग सखी खेलत होरी ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...

सोमवार, 5 मार्च 2018

आज का परिदृश्य

आज का परिदृश्य

आज फिर राम राज्य लाना होगा।
 लँका जला रावण नाभि सुखाना होगा ।
 हे राम तुम्हे फिर वापस आना होगा ।
 अब रावण फैले कदम कदम ,
 एक कमान कई तीर चढ़ाना होगा।
आज बहुत हुए आतताई ।
 नही सुरक्षित बहने और माई ।
  कैकई को आँगे आना होगा ।
 सीता को फिर वन जाना होगा ।
 
हे राम तुम्हे फिर .....
 ....विवेक दुबे"निश्चल"@....

न चले जब शास्त्र से काम

न चले जब शास्त्र से काम,
 तब शस्त्र उठाने होता है ।
 देश बचाना होता है,
 धर्म बचाना होता है।
 गीता को अपनाना होता है।
 चाणक्य को जागना होता है।
 बन राम धनुष उठाना होता है।
 वीर शिवा सा बन जाना होता है।
 परवाह नही तब प्राण की,
 हर शत्रु से टकराना होता है।
   ....  विवेक दुबे"निश्चल"@ .......

हे मातृ भूमि तुझे प्रणाम

 हे मातृभूमि तुझे प्रणाम ।
वीर शहीदों सा हो मेरा नाम ।
मैं आऊँ एक दिन तेरे काम ।
तेरी सीमाओं का ,
रक्त से अपने अभिषेक करूँ ।
तेरी माटी को में शीश धरूँ ।
प्रण प्राणों से हो तेरी रक्षा ,
 ऐसा एक काम करूँ ।
 तुझे ताकती बुरी नजर के ,
 सीने में मैं बारूद भरूँ ।
हे मातृ भूमि तुझे प्रणाम करूँ । 
वीर शहीदों जैसे मैं भी काम करूँ ।
 तेरे कदमो में अपने प्रण प्राण धरूँ । 
       .....जय हिन्द ....
         .....विवेक दुबे "निश्चल"@......

देखो उस माटी को

देखो उस माटी को ।
 फूलों की उस घाँटी को ।
 देवो की उस थाती को ।
खिलते थे गुलशन कदम कदम ।
 अब चलतीं गोली दन दन दन ।
 उजड़ी बगिया सूने आँगन ।
  बेघर हुए सारे जन । (ब्रम्हाण )
 आँखे मूंदे सारे दल ।
  काठ की हांड़ी दाल चढ़ी ।
  स्वार्थ की रोटी खूब पकी ।
  अब न जागे ,
 फिर कब जागोगे ।
  हे गण जन का हक़ ,
  तुम न दिलवा पाओगे ?
 आँखों पर पट्टी बाँधे ,
 मूक खड़े रह जाओगे  ।
  देखो देखो कुछ तो देखो ।
  बेघर कश्मीरी जन  को ,
  अब तुम वापस घर भेजो ।
   ... विवेक दुबे"निश्चल"@.....

जहाँ देखो वहाँ

जहाँ देखो वहाँ जंग छिड़ी है ।
 तलवारें तलवारों से भिड़ी हैं ।

 कलमें भी आ मैदान गढ़ि हैं ।
  शब्दों की तीखी धार चढ़ी हैं।

 
 कलम कलम ने घात गढ़ि है ।
  शब्द शब्द की काट मची है ।

  शमशीरों के आघातों से,
 शब्दों की प्रतिघात बड़ी है ।

 जहाँ देखो वहाँ....
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....

तिरँगा भी रोता होगा

तिरंगा भी अब रोता होगा ।
अपने लाल जब खोता होगा ।
 लिपटकर फ़क्र नही होता होगा ।
 मातम में ग़मज़दा होता होगा ।
    यूँ देकर बेवजह कुर्बानियाँ ,
     अपने ही लाडले लालों की ,
    तिरंगे का खूँ खोलता होगा ।
  करते हैं जो बातें मेरी आन की ,
 क्या खूँ उनका स्याह हुआ होगा ।
  बस तिरंगा यही सोचता होगा ।
 बस तिरंगा यही सोचता होगा ।
  ....विवेक दुबे "निश्चल"@.....

सुलग रही चिंगारी

सुलग रहीं हैं आज हर और चिंगारी ।
 कहीं भाषा कहीं मज़हब है भारी ।
  कहीं हो न जाएँ चिंगारियाँ प्रचण्ड ।
 कहीं फिर हो न जाए खण्ड खण्ड ।
    .... विवेक दुबे "निश्चल"@..

कास गंज की घटना

कास गंज की घटना

उतार दिया लोहा उसके सीने में,
निकला नाम वन्देमातरम जिस सीने से। 

 हाय गणतंत्र हाय हाय री आजादी ,
 गली गली घूम रहे आज जिहादी ।
  चलते आज बेख़ौफ़ देश मे ,
   राष्ट्र प्रेम की लिए सुपारी ।

 आज़ादी अभिव्यक्ति को लेकर ,
 करते थे कल जो बातें बड़ी बड़ी ।
  चुप क्यों है वो सारे बुद्धि धारी ।
 माना बंदेमातरम उनका एजेंडा है,
 पर हाथ लिए तो वो तिरंगा हैं ।

 उठा रहे वो उस ध्वजा ध्वज को,
 जिसकी खातिर वीरों ने जान लगा दी ।
 आज़ाद हिंद की यह कैसी आज़ादी ,
 आज़ादी आज बनी लाचारी ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....

चमक नही इन तलवारों में भी

चमक नहीं इन तलवारो में भी ,
 इन तलवारों की भी धार पुरानी है ।
 फड़क रहीं यह जिन म्यानों में ,
 वो म्यान पुरानी है ।
 सौंपी थी सरहद जिनको ,
शेर जानकर ,उनकी भी दहाड़ पुरानी है ।
 होते हर दिन हमले घात लगाकर ,
 इन नज़रों की भी निग़ाह पुरानी है ।
 कब तक यूँ शीश कटेंगे लालों के ,
 कब तक सिंदूर पुछेंगे बहनों के भालों के ,
 इनकी भी आदत बही पुरानी है।
न सुनने की इनने भी ठानी है ।
 कह दो बस एक बार वीरों से ,
 कर लो तुम अपने मन की,
 प्यास बुझाओ शमशीरों से ।
 वीरों ने तो बस, आर पार की ठानी है । 
  चमक नहीं इन तलवारो में भी  ...
    ..... विवेक दुबे "निश्चल"@...

वो देव दूत

देव दूत वो आया था ।
शांति सन्देश संग लाया था ।
 गौरवशाली अतीत,
 आर्य सभ्यता का ,
 वर्तमान में लाया था ।
 देकर व्याख्या शून्य की ,
सत्य जगत को दिखाया था ।
परम हंस का शिष्य वो नरेंद्र ,
विवेकानन्द कहलाया था ।
    शत शत नमन 
युग पुरुष विवेकानन्द।
.
स्वामी विवेकानंद जी के
१५४ वें जन्मदिवस पर
समर्पित कुछ शब्द 
....विवेक दुबे"निश्चल"@...

नेता जी

नेता जी को समर्पित श्रद्धा शब्द सुमन

 वो अमर बलिदानी  ।
 आजादी एक कहानी । 
 झुके नही कभी कहीं ,
 स्वाभिमानी अभिमानी  ।

 स्वतंत्रता के सैनानी ।
 धूल चटाई ग़ौरो को ।
  अखंड भारत की,
  वो एक निशानी  । 

  आजादी पाने की 
  नेता जी ने ऐसी ठानी ।
  एक आवाज़ जुड़े,
  हजारों वीर सैनानी ।
   भये फिरंगी वापस,
   जिनके भय से ,
   आज़ाद हिंद सेना के,
   थे वो वीर सैनानी । 

  जनगण है जिनका ऋणी ,
  अमर हुए वो बलिदानी ।
  कृतार्थ राष्ट्र स्वतंत्रता तले,
   जिनकी बस यही निशानी ।
  बस यही निशानी .....
    ..... विवेक दुबे "निश्चल"@..

आजादी


आजादी अब ,
70 के पास पहुच रही ।
पर नादान बच्चे सी ,
आज भी रो रही।
ओ आजादी चुप हो जा,
 न आँसू बहा ।
शायद तेरी,मेरी ,
 हम सबकी,नियति यही ।
 वारिस आज तक ,
  मिला नही कोई।
 जो वारिस बन आया,
 उसने अपना ही ,
 कानून चलाया।
न तेरा कुछ हो पाया,
 न मेरा कुछ हो पाया ।
       .....विवेक दुबे"निश्चल"@...

वो पास्ता कद

वो पस्ता कद हृदय बड़ा विशाल ।
 वो माता का लालबहादुर लाल।
 65 में जा पहुँचा जो लाहौर सियकोट,
 बस कुछ दूर ही थी रही कराँची ।

      जय जवान जय किसान के नारे ने ,
      दुश्मन की थी तब चूल हिला दी।
       पलटा दृश्य विश्व पटल पर जिसने।
      जाने क्यों वो याद आज भुला दी ।
    ....... विवेक दुबे"निश्चल"@....


ताशकंद भारत का लाल जो गया ।
लौट न सका वापस वो बही सो गया ।
जीत कर भी जीत का अफ़सोस रह गया ।
काश जीत के हालात क़ायम होते।
आज हालत-ऐ-हिन्द कुछ और होते। आज यूँ बेबजह गोलियां न चल रही होती ।
जो चलती गोलियां तो उनकी कोई बजह होती।

   ....विवेक दुबे "विवेक"©....

सैनिक छाती ही खाती क्यों गोली

देश पर मिटना मेरा काम न था।
 यूँ शहीदों में मेरा नाम न था ।
 मैं जीता खुदगर्ज़ी के आलम में,
 मैं शहीदों सा बदनाम न था । 
     .... विवेक दुबे"निश्चल"@...

सिंदूर उजड़ते , सूनी राखी ।
 सूनी कोख , छाया की लाचारी ।
 कुटिल नीतियाँ सत्ता की ।
 सैनिक की छाती गोली खाती ।

 .... विवेक दुबे "निश्चल"@ .....

सिंदूर उजड़ते , सूनी राखी ।
 सूनी कोख , छाया की लाचारी ।
 कुटिल नीतियाँ सत्ता की ।
 सैनिक की छाती गोली खाती ।

 .... विवेक दुबे "निश्चल"@ .....

 वो सुहाग चूड़ीयाँ नई नवेली थीं।
 अलबेले साजन की सहेली थीं ।
  बिखर गईं पल भर में सीमा पर ,
  सीमा पे साजन ने खेली होली थी।

  कर रक्षा भारत माँ के सुहाग की ,
  एक सुहागन बिधवा हो ली थी।
  कोटि कोटि चूड़ियों की खातिर,
  अपनी चूड़ियाँ उसने खो दीं थीं ।

   .... विवेक दुबे "निश्चल" © ....

 मरते रहे लाल भारत के भाल पे ।
 बस एक मातृ भूमि के सवाल पे ।
 भला क्या जाने वो आन देश की ,
 चलते रहे हैं जो थैले सम्हाल के ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@......

  

वो दौर

 
    वहाँ ख़लीश-ऐ-दौर था,
           यहाँ कशिश-ऐ-दौर है ।
    वहाँ नही कोई और था ,
            यहाँ नहीं कोई और है।
  वहाँ अदावतें इंकार थीं ,
           यहाँ नवाज़िशें इकरार हैं ।
  वहाँ रंजिशे बेशुमार थीं ,
              यहाँ प्यार बेशुमार है ।        
   वहाँ  दिल-ऐ-बेहाल था,
         यहाँ दिल-ऐ-बेहाल है ।
                ....विवेक दुबे"निश्चल"@......

प्रेत अभिलाषाओं का

  प्रेत जगा एक अभिलाषाओं का ।
 कुछ मृत आस पिपासाओं का ।
 आ कर बैठा है जो कांधों पर ,
 प्रश्न पूछता आधे छूटे वादों का ।

 ले मौन , चला मंज़िल अपनी ,
 हृदय मन फ़ौलाद इरादों सा । 
 मार दिए जो सपने उसने अपने ,
 ठोकर कदमों से ख़ाक उड़ाता सा ।
...

आशाएँ ले अभिलाषाओं सँग जगा सा।
 लेकर ज़िंदगी को "निश्चल" वो भागा सा  । 
 ठहरी नही कभी जो "निश्चल" रहकर ,
 जीवन को जीवन से वो देता काँधा सा ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...







आशाएँ अभिलाषाएँ ही जागतीं हैं ।
यह ज़िंदगी तो "निश्चल" भागती है । 
 ठहरती नही कभी निश्चल रहकर ,
 ज़िंदगी को ज़िंदगी कब बांधती है ।

..

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...