रविवार, 13 जनवरी 2019

मैं शोर नही मंचो का ,

मैं शोर नही मंचो का , 
   नही कही मैं बजती ताली हूँ ।

फूल नही मैं मधुवन का,
       नही कही मैं कोई माली हूँ ।

मैं शब्दों के इस उपवन का,
       छोटा सा मैं एक हाली हूँ ।

मैं प्याला हूँ शब्दों का,
    नही कभी भावो से खाली हूँ ।
      
सहज रहा हूँ शब्द शब्द को ,
     अन्तर्मन की भरता प्याली हूँ ।
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चल कलम तले कागज़ पर ,
          मैं मौन सदा कहलाता हूँ ।

भरकर भाव भरे मन को,
       भावों को मैं जीता जाता हूँ ।

टीस उठे जब मन में कोई ,
      मैं शब्दों से मन बहलाता हूँ ।

घाव मिले व्यंगों के बाणों से ,
     शब्दो से घावों को सहलाता हूँ ।

गरल भरे इस जीवन पथ पर ,
        "निश्चल"शब्द सुधा पीता जाता हूँ ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@....


बैठे हैं मुझ पर लोग हँसने को ।

704

बैठे हैं मुझ पर लोग हँसने को ।
मै चला हुँ पूरा करने सपने को ।
देखा है एक सपना सुहाना सा ।
सुनहरी धूप का एक मुहाना सा ।

ले चला थामकर उन हाथों को ।
करेंगे जो पूरा  मेरे इरादों को ।
चल पड़े वो कदम साहस लेकर ।
साथ अपने कुछ वादों को लेकर ।

एक शपथ प्रण प्राण में भरकर ।
के वो आएगें मंजिल गढ़ कर ।
डगमगाने न देंगे कदम कभी ।
राह में रोड़े आयें जो भी कही ।

जीतकर अपने ही आप को ।
सहकर हर तपते ताप को ।
भूलकर भी भूल हो न कही ।
न देंगे हंसने वालो को हंसी ।

हंसूगा मै ही उस हँसी रात को ।
छूकर मै अपने ही आकाश को ।
वो सितारो में कही हँस रहा होगा ।
तेरे वास्ते स्वप्न जिसने गडा होगा ।

चुप रहेंगी सब जुबाने वो ।
हंसना चाहती थी निगाहे जो ।

•••••विवेक दुबे"निश्चल"@••
डायरी 6(115). Blog post 13/1/19

ये क्या है ,जो ये क्या है ।

703

ये क्या है ,जो ये क्या है ।
वो क्या है ,जो वो क्या है ।

सब सत्य नही जीवन के ,
नही कहीं कुछ तो क्या है ।

खोज यही नित मन की ,
मन पार चलें जो क्या है ।

जीत रहा मन जीवन को ,
जीव ढ़ले होता सो क्या है ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6(113)

जो भी क़ाबिल तेरे होगा ।

702

जो क़ाबिल तेरे होगा ।
वो ही तो तेरा होगा   ।

ठहरेगा वो साथ तेरे ,
उफ़्क तक डेरा होगा ।

न टूटे धारें दरिया की ,
समंदर सा सेहरा होगा ।

न दीवारें शक सुवा कोई,
न निग़ाहों का पहरा होगा ।

जो पहचान बने अपनी  ,
वो अपना ही चेहरा होगा ।

एक ठहरे से गहरे दरिया से ,
रिश्ता रूह का गहरा होगा ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@....

जो भी क़ाबिल तेरे होगा ।
एक वो ही तो तेरा होगा   ।
ठहरेगा हर हाल साथ तेरे ,
उफ़्क तक साथ गहरा होगा ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(113)

थम गया क्युं

693
कुछ कहुँ अब मैं भी तेरे वास्ते ।
अब साथ नही है तू मेरे रास्ते ।

थम गया तू क्युं दिन गिनकर ।
दे चला अब अपना दिनकर ।

मैं चलूँगा कल उसे साथ लेकर ।
ठहर यही अलविदा साथ लेकर ।

होंगी यादें तेरी शख़्त कुछ बेहतर  ।
कल तक तूने दी थी मेरी कहकर ।

चलूँगा यादें अब दिल में रखकर ।
बन सके आज कल से भी बेहतर ।
... निश्चल....
डायरी 6(104)

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...