मैं शोर नही मंचो का ,
नही कही मैं बजती ताली हूँ ।
फूल नही मैं मधुवन का,
नही कही मैं कोई माली हूँ ।
मैं शब्दों के इस उपवन का,
छोटा सा मैं एक हाली हूँ ।
मैं प्याला हूँ शब्दों का,
नही कभी भावो से खाली हूँ ।
सहज रहा हूँ शब्द शब्द को ,
अन्तर्मन की भरता प्याली हूँ ।
-----
चल कलम तले कागज़ पर ,
मैं मौन सदा कहलाता हूँ ।
भरकर भाव भरे मन को,
भावों को मैं जीता जाता हूँ ।
टीस उठे जब मन में कोई ,
मैं शब्दों से मन बहलाता हूँ ।
घाव मिले व्यंगों के बाणों से ,
शब्दो से घावों को सहलाता हूँ ।
गरल भरे इस जीवन पथ पर ,
"निश्चल"शब्द सुधा पीता जाता हूँ ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
नही कही मैं बजती ताली हूँ ।
फूल नही मैं मधुवन का,
नही कही मैं कोई माली हूँ ।
मैं शब्दों के इस उपवन का,
छोटा सा मैं एक हाली हूँ ।
मैं प्याला हूँ शब्दों का,
नही कभी भावो से खाली हूँ ।
सहज रहा हूँ शब्द शब्द को ,
अन्तर्मन की भरता प्याली हूँ ।
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चल कलम तले कागज़ पर ,
मैं मौन सदा कहलाता हूँ ।
भरकर भाव भरे मन को,
भावों को मैं जीता जाता हूँ ।
टीस उठे जब मन में कोई ,
मैं शब्दों से मन बहलाता हूँ ।
घाव मिले व्यंगों के बाणों से ,
शब्दो से घावों को सहलाता हूँ ।
गरल भरे इस जीवन पथ पर ,
"निश्चल"शब्द सुधा पीता जाता हूँ ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....