शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

ज़ीवन की संभावनाएं ,

जितना तू बे-ज़िक्र रहेगा ।
 उतना तू बे-फ़िक्र रहेगा ।

चल छोड़ दे फिक्रें कल की ।
न छीन खुशियाँ इस पल की ।

न कर रश्क़ अपने रंज-ओ-मलाल से ।
कर तर खुदी को ख़ुशी के गुलाल से ।

दर्या हूँ वह जाऊँगा समंदर की चाह में ।
मिलेगा बजूद मेरा कही किसी आह में ।
.....
सहारे गर्दिश-ऐ-फ़रियाद में ,
रिश्तों की बुनियाद हुआ करते हैं ।
....

ज़ीवन की संभावनाएं ,
 पल प्रतिपल शेष हैं ।
ज़ीवन के रहते मिटता नही ,
 कुछ भी विशेष है ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@..

वक़्त कब कहाँ मेरा रहा ।
इतना ही जहां मेरा रहा ।
..."निश्चल"..

जब इसी राह से गुजरना है ।
तब हालात से क्या डरना है ।
आयेगी मंजिल तभी हाथ में ,
जब हालात हाथ में करना है ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...

माँ

माँ कैसी है तू ,इतना तो पूछा जा सकता है ।
इस दुनियाँ में, इतना वक़्त तो पा सकता है ।
स्वर्थ भरी दुनियाँ में,साथ रहे न जब कोई ,
माँ के आँचल में,जब चाहे तब आ सकता है ।
......विवेक दुबे"निश्चल"@...
माँ
...1
मोल नही कुछ मात का, मातु मनुष का मूल ।
मातु आशीष जो मिले , चुभत न कोई शूल ।
....2
न्यारा माँ का नाम है, माँ जग का उजियार ।
माँ के आँचल छाँव से, शीतल मनस संसार ।
....3
साथ दुआ हो मातु की, कभी न होत हताश ।
सर मातु आशीष धरे ,कदम बिछे आकाश ।
....4
स्मृतियाँ ही शेष हैं,   उसके ये अवशेष ।
उसके बारे में लिखे ,पास नही शब्द शेष ।
..5
 सुध खो दे मेरे लिये, दुख की न रहे घूप ।
 ये विधना भी जग में , माँ का ही है रूप।

     ... विवेक दुबे"निश्चल"@..

लक्ष्य उसी ने बस पाया है ।

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लक्ष्य उसी ने बस पाया है ।
जो आगे आगे चल पाया है ।
 देखो हर भोर मुहाने पर ,
दिनकर ही पहले आया है ।

 निशि के आँचल में छुपने से पहले ,
 संध्या को भी ललचाया है ।
 जो चँदा आता कुछ चलकर ,
 सूरज का हम साया कहलाया है ।

लक्ष्य उसी ने बस पाया है ।
 आगे आगे जो चल पाया है ।

 पवन चली तरल बन के ,
 खुशबू का झोंका आया है ।
 मदमस्त मकरंद सुगंध भरा,
 वो फ़ूल बाद नजर आया है ।

 अंबर बून्द चली मिलने धरती को ,
 रजः कण ने श्रृंगार उठाया है ।
 है पोषित कण कण जिससे ,
 गर्भ धरा ने तो फिर पाया है ।

 लक्ष्य उसी ने बस पाया है ।
 आगे आगे जो चल पाया है ।

 ना सोच जरा तनिक विश्राम नही ,
 दिनकर तो हर दिन ही आया  है ।
  ठहर नही चलता चल राहों पर ,
  तूने खुद को क्यों बिसराया है ।

लक्ष्य उसी ने बस पाया है ।
जो आगे आगे चल पाया है ।
 देखो हर भोर मुहाने पर ,
दिनकर ही पहले आया है ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@.
डायरी 7
Blog post 10/4/20

सवाल आज ज़िंदगी खास का है

सवाल आज ज़िंदगी खास का है ।
समय बंदगी और अरदास का है ।
पुकार ले हृदय से आज उसको ,
जो भी ईस्वर तेरे विश्वास का है ।
रच डाली वो प्रलय तू ने ही ,
जो अधिकार उसके पास का है ।
माँग कर क्षमा अब भी सुधर जा,
निर्णय स्वयं के अहसास का है ।
हर दम है दयालू वो बड़ा ,
हृदय उसका अंनत आकाश का है ।
कर देगा क्षमा एक पल में तुझे ,
कर शपथ तू प्रकृति के साथ का है ।
न बदलूँगा अब तेरे नियम को,
हर नियम जो प्रभु तेरे हाथ का है ।
कर जोड़कर प्रण प्राण से कर प्रार्थना,
हृदय स्थान प्रभु के "निश्चल"निवास का है।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...

राम नाम का भजन करो

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्   ।।

 मैं इस संसार के प्रिय एवं सुन्दर , 
भगवान् राम को,बार-बार नमन करता हूं ।
 जो सभी आपदाओं को दूर करने वाले
 तथा सुख-सम्पति प्रदान करनेवाले हैं।




नित सब नमन करो ।
पल छिन मनन करो ।
 दूर हो संकट शृष्टि का,
 राम नाम का भजन करो ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@..



मानव रचित प्रलय के प्रत्यक्ष हम होंगे ।
पाप धरा से शायद अब यूँ ही कम होंगे ।
 ...विवेक दुबे"निश्चल"@....

वीरों के जयकारे

न गलियों में थूंका न मीनारों से पत्थर फैका मैंने ।
न भद्दी भाषा बोली न नियमों को तोड़ा मैंने ।
जगमग जग में गहराये अंधियारों  में ,
 दीपों के उजियारे से, अँधियारे में देखा मैंने ।
......विवेक दुबे"निश्चल"@...


 गुंजित कर दे आज गगन ,
 इन वीरों के जयकारों से ।
 जो जूझ रहे सतत निरन्तर,
 प्रकृति के क्रूर प्रहारों से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

कर्तव्य निष्ठा की पराकाष्ठा ।
नमन इस समर्पण भाव को ।

भारतमाता के सच्चे सपूत ।
जय हो जय हो शत शत नमन ।


3
झालर खनकी शंख गरजते ।
ढोल बजे कही तासे बजते ।
दिन रात लगे हैं जो सेवा में ,
उनका हम सम्मान सहजते ।
...विवेक दुबे"निश्चल"@....


बस अब इतना ही करो ना ।
सीमा में ही अपनी रहो ना ।
 सिमट जाओ दायरे में अपने,
 टूट जाये ये श्रृंखला कोरोना ।
लेकर साहस संकल्प हृदय से ,
सिवा प्रभु के किसी से डरो ना ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@...

छा रहा है कोरोना ।
अब कुछ करो-ना ।
न लगो गले किसी के,
आस पास अब रहो ना ।
...विवेक दुबे"निश्चल"@...

 जान बचाने जो आये ,
उन पे पत्थर बरसाते है ।
 बेक़सूर है हम फिर भी,
  वो बेशर्म फ़रमाते है ।
   ...."निश्चल"@....
फ़र्क नही पड़ता,समस्या चाहे कितनी संगीन हो जाये ।
बे-असर है बो ,आसमां भले ही ज़मीन हो जाये ।
बो मुसलसल कायम है अपनी ही रूढ़ियों पर ,
संक्रमण से पीढित एक से भले तीन हो जायें ।
...."निश्चल"@....
आज इम्तेहान की घड़ी हमारी है ।
भूक लाचार निरीह की बेचारी है ।
बांटे हम सब कुछ थोड़ा थोड़ा ,
एक रोटी में से आधी तुम्हारी है ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@....

ताक़त दिये कि

एक चिराग अंधेरो पर कितना भारी है ।
रात चरागों ने ताक़त अपनी दिखा दी है ।

 जलकर कर दिए जगमग दियों ने दिये ,
 ताक़त एकता की अपनी उजियारी  है ।

 न जात आई न धर्म आड़े आया कहीं ,
 भारत देश ने समर की की तैयारी है ।

 रहें दूर हम सब बस कुछ समय लिए ,
 संकल्प ढाल से हारती हर बीमारी है ।

 "निश्चल" करें संघर्ष नाम लेकर प्रभु का ,
 आज की ये दुनियाँ कल भी हमारी है ।

     ..... विवेक दुबे"निश्चल"@....

तम हरने की आशा में

 तम हरने की आशा में ,
 नित एक दीप जलाता मैं ।
 चाहे न हो उजियारा भानू सा ,
 किरणों से आशा पाता मैं ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...


  तम हरने की आशा में ,
  एक दीप जलाऊंगा मैं ।
 चाहे न हो उजियारा भानू सा ,
 किरणों से आशा पाऊंगा मैं ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...

  रोशनी दियों पर भी सवाल उछाले है ।
 देखो कैसे ये वतन को चाहने बाले है ।
 हो होंसला जीतने ज़िंदगी की जंग को ,
 जुगनुओं ने अंधेरो में उजाले निकाले है ।

    ..... विवेक दुबे"निश्चल"@...

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...