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(एक मुसल्सल ग़जल)
रास्ते मंजिल-ए-जिंदगी, जो दूर नही होते ।
ये सफ़र जिंदगी , इतने मजबूर नही होते ।
खोजते नही , रास्ते अपनी मंजिल को ,
जंग-ए-जिंदगी के,ये दस्तूर नही होते ।
साथ मिल जाता गर, कदम खुशियों का ,
ये अश्क़ पहलू-ए-ग़म ,मशहूर नही होते ।
जो बंट जाते रिश्ते भी, जमीं की तरह ,
रिश्ते अदावत के, ये मंजूर नही होते ।
"निश्चल" न करता , यूँ कलम से बगावत ,
ये अहसास दिलों से, जो काफूर नही होते ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6(137)
(एक मुसल्सल ग़जल)
रास्ते मंजिल-ए-जिंदगी, जो दूर नही होते ।
ये सफ़र जिंदगी , इतने मजबूर नही होते ।
खोजते नही , रास्ते अपनी मंजिल को ,
जंग-ए-जिंदगी के,ये दस्तूर नही होते ।
साथ मिल जाता गर, कदम खुशियों का ,
ये अश्क़ पहलू-ए-ग़म ,मशहूर नही होते ।
जो बंट जाते रिश्ते भी, जमीं की तरह ,
रिश्ते अदावत के, ये मंजूर नही होते ।
"निश्चल" न करता , यूँ कलम से बगावत ,
ये अहसास दिलों से, जो काफूर नही होते ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6(137)