शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

नमामि देवी नर्मदे


 

उजली साँझ भी



1009

उजली साँझ भी , गुम होते मुक़ाम सी।

चाहते ज़ाम भी, हसरते पैगाम सी ।


 सितारों की चाह भी, चाँद पैगाम सी ।

 सफ़र रोशनी भी , स्याह मुक़ाम सी।


 आहटें कदमों की, खोजतीं निशान सी ।

  हसरतें मुक़ाम की ,रहीं बे-निशान सी ।


  चाहतें इंसान की , काँटे बियावान सी ।

  ज़िंदगी नाम की, लगती बे-अंज़ाम सी ।

 

  ठौर बस रात की ,भोर नए मुक़ाम सी

   उजली साँझ भी , गुम होते मुक़ाम सी।

.... विवेक दुबे ''निश्चल"@.....

डायरी 7

आजाद करो ख्यालो को



 


1007

जो छूट गया वो पाना होगा ।

पथ एक नया बनाना होगा ।

दिनकर के ढलने ने से पहले,

संकल्पों को दोहराना होगा ।

...."निश्चल"@...

1008

आज़ाद करो आज ख़यालों को ।

न उलझाओ और सवालों को ।


गहन निशा तम के ढलते ही तुम ,

लेकर साथ चलो भोर उजालों को ।


ढूंढ रहा कोई राह पथिक पथ पर ,

सहलाता अपने पाँव के छालों को ।


भाया न कल जब कोई किसी को 

देते है वो क्यों आज मिशालों को ।

...."निश्चल"@...

डायरी 7


खत्म हुआ अब सब

 


खत्म हुआ अब सब , 

बस फ़र्ज निभाना बाँकी है ।


जीवन के मयखाने में तू , 

खुद ही खुद का साकी है ।


मदहोश नही है रिंद यहाँ  ,

फिर भी उसको होश नही ,


 सुध खोई रिश्तों की मय पीकर ,

 बस इतना ही ग़ाफ़िल काफी है ।


सोमपान सा रिश्तों का रस ,

जिस मद के अपने ही साथी है ।


 आती मयख़ाने में रूह रात बिताने को,

 लगती जिस्मों में रिश्ते नातों की झाँकी है ।


...विवेक दुबे"निश्चल"@....


1006

प्यार का इज़हार कर न सका ।

दर्द का व्यापार कर न सका ।

हारता रहा हालात से हरदम,

झूँठ पे इख्तियार कर न सका ।

......विवेक दुबे"निश्चल"@...


डायरी 7

Blog post 20/2/21

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021

कुछ शेर

 


जितना तू बे-ज़िक्र रहेगा ।

 उतना तू बे-फ़िक्र रहेगा ।


चल छोड़ दे फिक्रें कल की ।

न छीन खुशियाँ इस पल की ।


न कर रश्क़ अपने रंज-ओ-मलाल से ।

कर तर खुदी को ख़ुशी के गुलाल से ।


दर्या हूँ वह जाऊँगा समंदर की चाह में ।

मिलेगा बजूद मेरा कही किसी निगाह में ।

.....

सहारे गर्दिश-ऐ-फ़रियाद में ,

रिश्तों की बुनियाद हुआ करते हैं ।

....


ज़ीवन की संभावनाएं ,

 पल प्रतिपल शेष हैं ।

ज़ीवन के रहते मिटता नही ,

 कुछ भी विशेष है ।


....विवेक दुबे"निश्चल"@..


वक़्त कब कहाँ मेरा रहा ।

इतना ही जहां मेरा रहा ।

..."निश्चल"...

डायरी 7

बुधवार, 17 फ़रवरी 2021

माँ ज्ञानदा

 



हे माँ ज्ञानदा ,हे माँ ज्ञानदा ।

ज्ञान दे माँ , हे ज्ञान दा माँ ।


 हर तिमिर अज्ञान माँ ।

 दे ज्ञान प्रभा वरदान माँ ।


 है ब्रम्हाणी सकल ब्रम्हांड माँ ,

 भर शब्द सकल भंडार माँ ।


 नित नव लेखनी शृंगार माँ ।

 दे वाणी का  पुरुस्कार माँ ।



वंदना .


  हे माँ ज्ञानदा ज्ञान दो ,

   शब्दों का वरदान दो ।


   दूर रहूँ अभिमान से ,

  लेखन का स्वाभिमान दो ।


  चलता रहूँ सत्य के पथ पर ,

  एक ऐसा पथ भान दो ।।


 हे माँ ज्ञानदा ज्ञान दो ।

 शब्दों का वरदान दो ।


.... विवेक दुबे"निश्चल"@..

डायरी 7


 हो दूर तम अभिमान माँ ।

पाऊँ दीप्ती स्वाभिमान माँ


 ज्ञान दे माँ , हे ज्ञानदा माँ ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...



हे परम् पिता


हेआदि अनादि जगत नियंता ।

हे महादेव हर संकट हंता ।


प्रलय यहीं फिर उत्पत्ति ।

है यही श्री हरि की शक्ति ।


जब कांपी सृष्टि असुरो के भय से,

तब देता जगत पिता तू ही शक्ति ।


शेष कही जब कोई आस नही ,

साहस देती है तब तेरी भक्ति ।


मिलता हल हर संकट का,

परम पिता सुझाते तुम युक्ति ।


करुण पुकार सुनो "निश्चल"की,

पा जाऊँ में हर संकट से मुक्ति ।


....विवेक दुबे"निश्चल"@....

सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

994/1000

 994

एक चित्र उभार ले ।

हृदय राम उतार ले ।

सहज सब हो जायेगा ,

 प्रीत राम निखार ले ।

..... विवेक दुबे"निश्चल"@..

995

तृष्णा हो हरि नाम की ,ऐसा हो मन का भाव ।

पा जायेगा सब आप ही, हरि हो जब साथ ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

रायसेन

996

माँ कैसी है तू ,इतना तो पूछा जा सकता है ।

इस दुनियाँ में, इतना वक़्त तो पा सकता है ।

स्वर्थ भरी दुनियाँ में,साथ रहे न जब कोई ,

माँ के आँचल में,जब चाहे तब आ सकता है ।

......विवेक दुबे"निश्चल"@....

997

कुछ कब होता है ।

कुछ कब होना है ।

छूट रहे कुछ प्रश्नों में ,

एक प्रश्न यही संजोना है ।

गूढ़ नही कुछ कोई ,

रजः को रजः पे सोना है ।

-----

998

हे अज्ञान ज्ञान के बासी ।

तू खोज रहा मथुरा काशी ।

तुझे श्याम मिलेंगे मन भीतर ,

तेरा मन देखे जिसकी झांकी ।

.

... विवेक दुबे"निश्चल"@.

डायरी 7

999

चन्द्रिका  छंद

विधान-111, 111, 221, 221, 2

सुमिरन मन से राम का कीजिये ।

सहज कर सभी श्याम पे रीझिये ।


सजल नयन राधा रटे श्याम को ।

सरल बन मिला मोहना राम सो ।


   .. विवेक दुबे"निश्चल"@...

1000

चंद्रिका छंद

111 111   2   21 221 2

नटखट मुरली ,श्याम तेरी बड़ी ।

सरल मन सखी ,राधिका से डरी ।


सजल नयन से , श्याम राधा यहीं ।

चित बिसरत सो, आज ढूंढे कहीं ।


... विवेक दुबे"निश्चल"@...



मुक्तक 971/92

 971

मूल्य न हो जहाँ मूल्यों का ,

 वहाँ नैतिकता क्या खास करें ।

बदल रहे हो जब अपने ही ,

 गैरों से तब क्या आस करें ।

 ..."निश्चल"@..

972

सुरमई रोशनी के उजालों को । 

खोजती है निगाहें ख्यालों को ।

दूर तक बिखरा है आसमां ,

लिए साँझ के सवालों को ।

.....विवेक दुबे"निश्चल"@...

973

सुरमई रोशनी के उजालों में । 

खोजती है निगाहें ख्यालों में।

दूर तक बिखरा है आसमां ,

लिए साँझ को सवालों में ।

...विवेक दुबे"निश्चल"@  ..

974

दर्ज खामोशी में सवाल से ।

 छुपे निग़ाह में मलाल से ।

 बयाँ न कर सकी जुवां ,

  अल्फ़ाज़ को *जमाल* से ।

...."निश्चल"@...

*जमाल(खूबसूरती)*

975

हम जुवां से जितने साफ़ हो गये ।

निगाहों में उतने न-ख़ास हो गये ।

खटक गये नजरों में दुनियां की,

चुभती कलेजे में फंसा हो गये ।

...."निश्चल"@....

976

हर्फ़ हर्फ़ कहानी लिखता गया ।

जिंदगी तुझे दीवानी लिखता गया। 

कर न सका इजहार प्यार का तुझसे ,

बस तुझे उम्र निशानी लिखता गया ।

....."निश्चल"@....

977

कोई नुक़्स निकाला न गया ।

 इश्क़ हम से सम्हाला न गया ।

डूबता रहा वो  उफ़्क के तले,

आफताब से पर उजाला न गया ।

...."निश्चल"@...

978

चाल चरित्र और चेहरे कब बदल जाएंगे ।

वक़्त के मुरशिद भी यह कह नही पाएंगे ।

चलेगी चूनर ओढ़कर धूप में भी चाँदनी ,

सितारे तपिश आफ़ताब में पिघल जाएंगे ।

.....विवेक दुबे"निश्चल"@...

979

अपनो की अब नज़र यही है ।

हिज़्र की कोई फिकर नही है ।

हो गये खुदगर्ज़ हम अब इतने ,

के गैरो में अपनो का जिकर नही है ।

.....विवेक दुबे"निश्चल"@.....

980

छलकायेगा पीयूष सोम गगन से, 

 जैसे जैसे साँझ ढलेगी ।

बिखरेगी किरणे निशिकर की , 

वसुधा मधुकर सँग रास रचेगी ।

  ....विवेक दुबे"निश्चल"@...

  981

मेरा नशा तो हल्का हल्का सा है ।

  जाने क्यों शहर में तहलका सा है ।

    देख कर नशा निगाह में साक़ी की,

    हर जाम पैमाने से छलका सा है ।

   वो दे गये हिसाब मेरे अहसानों का ,

  दस्तूर दुनियाँ का यूँ बदला सा है ।

 हँसता ही रह सहकर ज़ुल्म जमाने के,

  दर्द मेरे चेहरे से नही झलका सा है ।

      .... *विवेक दुबे"निश्चल"* ....

982

सीखना खत्म हुआ कब है ।

सीखाता रहता हर दम रब है ।

चलता मुसलसल मुसाफ़िर ,

  मंजिल पर पहुँचता तब है ।

...."निश्चल"@...

983

 न खत्म कर इरादों को कभी ,

एक जंग जीतने के बाद  ।

जिंदगी में जंग और भी है अभी,

 एक जंग जीतने के बाद ।

...."निश्चल"@...

984

जब इसी राह से गुजरना है ।

तब हालात से क्या डरना है ।

आयेगी मंजिल तभी हाथ में , 

जब हालात हाथ में करना है ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

985
भाग्य से आगे चल सकते नही ।
किस्मत को बदल सकते नही ।
लिख दिया रेखाओं में जो उसने ,
उससे कभी निकल सकते नही ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@....
986
मेरी कमियाँ जो उछालते रहे ।
हम उन्हें हरदम सम्हालते रहे ।
मनाते रहे जश्न ख़ामोशी का मेरी ,
जाने किस बात के मुग़ालते रहे ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@....
987
देखूँ मैं मेरे मुक़द्दर  में क्या है ।
मेरे सवालों के पीछे एक हांसिया है ।
वक़्त के काँटो में उलझा दामन मेरा ,
अपना दामन खुद ने ही सियां है ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@.....
988
क्यो चैन लूटता है कोई ।
क्यो हाल पूछता है कोई ।
है बेचैनियो से यारी यूँ ही ,
 अपना कब छूटता है कोई ।
...विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 7
Blogpost 22/2/21
989
वर्ष , हर वर्ष बदल जाते हो तुम ।
खामोशी से ,निकल जाते हो तुम ,
बदलकर , दुनियाँ को दुनियाँ से ,
ख़ुद ही ख़ुद में ,ढल जाते हो तुम ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@ ....
990
 शहीदों की बस इतनी सी कहानी है ।
 कुर्बान हो वतन पर जिंदगी लुटानी है ।
 शत शत नमन है सभी शहीदों को ,
 मिटकर भी मिटती नही निशानी है ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@.
991
  रोशनी दियों पर भी सवाल उछाले है ।
 देखो कैसे ये वतन को चाहने बाले है ।
 हो होंसला जीतने ज़िंदगी की जंग को ,
 जुगनुओं ने अंधेरो में उजाले निकाले है ।
    ..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
992
अपनो का ही न साथ मिला ।
इतना ही तो हमे घात मिला ।
जयचन्द सी सत्ता की चाहत ,
पृथ्वी राज को कपट पास मिला ।
..."निश्चल"@...
डायरी 7
Blogpost 21/2/21

Pic पोस्ट

 











Pic पोस्ट



































 

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...