कुछ खास नहीं कवि पिता की संतान हूँ । ..... निर्दलीय प्रकाशन भोपाल द्वारा बर्ष 2012 में "युवा सृजन धर्मिता अलंकरण" से अलंकृत। जन चेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति पीलीभीत द्वारा 2017 श्रेष्ठ रचनाकार से सम्मानित कव्य रंगोली त्रैमासिक पत्रिका लखीमपुर खीरी द्वारा साहित्य भूषण सम्मान 2017 से सम्मानित "निश्चल" मन से निश्छल लिखते जाओ । ..... . (रचनाये मौलिक स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित .)
शनिवार, 20 फ़रवरी 2021
उजली साँझ भी
1009
उजली साँझ भी , गुम होते मुक़ाम सी।
चाहते ज़ाम भी, हसरते पैगाम सी ।
सितारों की चाह भी, चाँद पैगाम सी ।
सफ़र रोशनी भी , स्याह मुक़ाम सी।
आहटें कदमों की, खोजतीं निशान सी ।
हसरतें मुक़ाम की ,रहीं बे-निशान सी ।
चाहतें इंसान की , काँटे बियावान सी ।
ज़िंदगी नाम की, लगती बे-अंज़ाम सी ।
ठौर बस रात की ,भोर नए मुक़ाम सी
उजली साँझ भी , गुम होते मुक़ाम सी।
.... विवेक दुबे ''निश्चल"@.....
डायरी 7
आजाद करो ख्यालो को
1007
जो छूट गया वो पाना होगा ।
पथ एक नया बनाना होगा ।
दिनकर के ढलने ने से पहले,
संकल्पों को दोहराना होगा ।
...."निश्चल"@...
1008
आज़ाद करो आज ख़यालों को ।
न उलझाओ और सवालों को ।
गहन निशा तम के ढलते ही तुम ,
लेकर साथ चलो भोर उजालों को ।
ढूंढ रहा कोई राह पथिक पथ पर ,
सहलाता अपने पाँव के छालों को ।
भाया न कल जब कोई किसी को
देते है वो क्यों आज मिशालों को ।
...."निश्चल"@...
डायरी 7
खत्म हुआ अब सब
खत्म हुआ अब सब ,
बस फ़र्ज निभाना बाँकी है ।
जीवन के मयखाने में तू ,
खुद ही खुद का साकी है ।
मदहोश नही है रिंद यहाँ ,
फिर भी उसको होश नही ,
सुध खोई रिश्तों की मय पीकर ,
बस इतना ही ग़ाफ़िल काफी है ।
सोमपान सा रिश्तों का रस ,
जिस मद के अपने ही साथी है ।
आती मयख़ाने में रूह रात बिताने को,
लगती जिस्मों में रिश्ते नातों की झाँकी है ।
...विवेक दुबे"निश्चल"@....
1006
प्यार का इज़हार कर न सका ।
दर्द का व्यापार कर न सका ।
हारता रहा हालात से हरदम,
झूँठ पे इख्तियार कर न सका ।
......विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 7
Blog post 20/2/21
गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021
कुछ शेर
जितना तू बे-ज़िक्र रहेगा ।
उतना तू बे-फ़िक्र रहेगा ।
चल छोड़ दे फिक्रें कल की ।
न छीन खुशियाँ इस पल की ।
न कर रश्क़ अपने रंज-ओ-मलाल से ।
कर तर खुदी को ख़ुशी के गुलाल से ।
दर्या हूँ वह जाऊँगा समंदर की चाह में ।
मिलेगा बजूद मेरा कही किसी निगाह में ।
.....
सहारे गर्दिश-ऐ-फ़रियाद में ,
रिश्तों की बुनियाद हुआ करते हैं ।
....
ज़ीवन की संभावनाएं ,
पल प्रतिपल शेष हैं ।
ज़ीवन के रहते मिटता नही ,
कुछ भी विशेष है ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@..
वक़्त कब कहाँ मेरा रहा ।
इतना ही जहां मेरा रहा ।
..."निश्चल"...
डायरी 7
बुधवार, 17 फ़रवरी 2021
माँ ज्ञानदा
हे माँ ज्ञानदा ,हे माँ ज्ञानदा ।
ज्ञान दे माँ , हे ज्ञान दा माँ ।
हर तिमिर अज्ञान माँ ।
दे ज्ञान प्रभा वरदान माँ ।
है ब्रम्हाणी सकल ब्रम्हांड माँ ,
भर शब्द सकल भंडार माँ ।
नित नव लेखनी शृंगार माँ ।
दे वाणी का पुरुस्कार माँ ।
वंदना .
हे माँ ज्ञानदा ज्ञान दो ,
शब्दों का वरदान दो ।
दूर रहूँ अभिमान से ,
लेखन का स्वाभिमान दो ।
चलता रहूँ सत्य के पथ पर ,
एक ऐसा पथ भान दो ।।
हे माँ ज्ञानदा ज्ञान दो ।
शब्दों का वरदान दो ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 7
हो दूर तम अभिमान माँ ।
पाऊँ दीप्ती स्वाभिमान माँ
ज्ञान दे माँ , हे ज्ञानदा माँ ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
हे परम् पिता
हेआदि अनादि जगत नियंता ।
हे महादेव हर संकट हंता ।
प्रलय यहीं फिर उत्पत्ति ।
है यही श्री हरि की शक्ति ।
जब कांपी सृष्टि असुरो के भय से,
तब देता जगत पिता तू ही शक्ति ।
शेष कही जब कोई आस नही ,
साहस देती है तब तेरी भक्ति ।
मिलता हल हर संकट का,
परम पिता सुझाते तुम युक्ति ।
करुण पुकार सुनो "निश्चल"की,
पा जाऊँ में हर संकट से मुक्ति ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@....
सोमवार, 15 फ़रवरी 2021
994/1000
994
एक चित्र उभार ले ।
हृदय राम उतार ले ।
सहज सब हो जायेगा ,
प्रीत राम निखार ले ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@..
995
तृष्णा हो हरि नाम की ,ऐसा हो मन का भाव ।
पा जायेगा सब आप ही, हरि हो जब साथ ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
रायसेन
996
माँ कैसी है तू ,इतना तो पूछा जा सकता है ।
इस दुनियाँ में, इतना वक़्त तो पा सकता है ।
स्वर्थ भरी दुनियाँ में,साथ रहे न जब कोई ,
माँ के आँचल में,जब चाहे तब आ सकता है ।
......विवेक दुबे"निश्चल"@....
997
कुछ कब होता है ।
कुछ कब होना है ।
छूट रहे कुछ प्रश्नों में ,
एक प्रश्न यही संजोना है ।
गूढ़ नही कुछ कोई ,
रजः को रजः पे सोना है ।
-----
998
हे अज्ञान ज्ञान के बासी ।
तू खोज रहा मथुरा काशी ।
तुझे श्याम मिलेंगे मन भीतर ,
तेरा मन देखे जिसकी झांकी ।
.
... विवेक दुबे"निश्चल"@.
डायरी 7
999
चन्द्रिका छंद
विधान-111, 111, 221, 221, 2
सुमिरन मन से राम का कीजिये ।
सहज कर सभी श्याम पे रीझिये ।
सजल नयन राधा रटे श्याम को ।
सरल बन मिला मोहना राम सो ।
.. विवेक दुबे"निश्चल"@...
1000
चंद्रिका छंद
111 111 2 21 221 2
नटखट मुरली ,श्याम तेरी बड़ी ।
सरल मन सखी ,राधिका से डरी ।
सजल नयन से , श्याम राधा यहीं ।
चित बिसरत सो, आज ढूंढे कहीं ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
मुक्तक 971/92
971
मूल्य न हो जहाँ मूल्यों का ,
वहाँ नैतिकता क्या खास करें ।
बदल रहे हो जब अपने ही ,
गैरों से तब क्या आस करें ।
..."निश्चल"@..
972
सुरमई रोशनी के उजालों को ।
खोजती है निगाहें ख्यालों को ।
दूर तक बिखरा है आसमां ,
लिए साँझ के सवालों को ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@...
973
सुरमई रोशनी के उजालों में ।
खोजती है निगाहें ख्यालों में।
दूर तक बिखरा है आसमां ,
लिए साँझ को सवालों में ।
...विवेक दुबे"निश्चल"@ ..
974
दर्ज खामोशी में सवाल से ।
छुपे निग़ाह में मलाल से ।
बयाँ न कर सकी जुवां ,
अल्फ़ाज़ को *जमाल* से ।
...."निश्चल"@...
*जमाल(खूबसूरती)*
975
हम जुवां से जितने साफ़ हो गये ।
निगाहों में उतने न-ख़ास हो गये ।
खटक गये नजरों में दुनियां की,
चुभती कलेजे में फंसा हो गये ।
...."निश्चल"@....
976
हर्फ़ हर्फ़ कहानी लिखता गया ।
जिंदगी तुझे दीवानी लिखता गया।
कर न सका इजहार प्यार का तुझसे ,
बस तुझे उम्र निशानी लिखता गया ।
....."निश्चल"@....
977
कोई नुक़्स निकाला न गया ।
इश्क़ हम से सम्हाला न गया ।
डूबता रहा वो उफ़्क के तले,
आफताब से पर उजाला न गया ।
...."निश्चल"@...
978
चाल चरित्र और चेहरे कब बदल जाएंगे ।
वक़्त के मुरशिद भी यह कह नही पाएंगे ।
चलेगी चूनर ओढ़कर धूप में भी चाँदनी ,
सितारे तपिश आफ़ताब में पिघल जाएंगे ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@...
979
अपनो की अब नज़र यही है ।
हिज़्र की कोई फिकर नही है ।
हो गये खुदगर्ज़ हम अब इतने ,
के गैरो में अपनो का जिकर नही है ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@.....
980
छलकायेगा पीयूष सोम गगन से,
जैसे जैसे साँझ ढलेगी ।
बिखरेगी किरणे निशिकर की ,
वसुधा मधुकर सँग रास रचेगी ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
981
मेरा नशा तो हल्का हल्का सा है ।
जाने क्यों शहर में तहलका सा है ।
देख कर नशा निगाह में साक़ी की,
हर जाम पैमाने से छलका सा है ।
वो दे गये हिसाब मेरे अहसानों का ,
दस्तूर दुनियाँ का यूँ बदला सा है ।
हँसता ही रह सहकर ज़ुल्म जमाने के,
दर्द मेरे चेहरे से नही झलका सा है ।
.... *विवेक दुबे"निश्चल"* ....
982
सीखना खत्म हुआ कब है ।
सीखाता रहता हर दम रब है ।
चलता मुसलसल मुसाफ़िर ,
मंजिल पर पहुँचता तब है ।
...."निश्चल"@...
983
न खत्म कर इरादों को कभी ,
एक जंग जीतने के बाद ।
जिंदगी में जंग और भी है अभी,
एक जंग जीतने के बाद ।
...."निश्चल"@...
984
जब इसी राह से गुजरना है ।
तब हालात से क्या डरना है ।
आयेगी मंजिल तभी हाथ में ,
जब हालात हाथ में करना है ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
कलम चलती है शब्द जागते हैं।
सम्मान पत्र
मान मिला सम्मान मिला। अपनो में स्थान मिला । खिली कलम कमल सी, शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई । शब्द जागते...