रुठ रहे है शब्द नये सभी ,
यादों को साझा करता हूँ ।
तपिश बड़ी है अहसासों की ,
वादों की छायाँ करता हूँ ।
चल कर एकाकी पथ पर ,
मंजिल को जाया करता हूँ ।
भोर मिलन की आशा में ,
मैं साँझ तले आया करता हूँ ।
कट जायेगी ये रात अंधेरी ,
आशाओं की आभा करता हूँ ।
ठहरा हूँ मैं एक साँझ तले ,
भोर मिलन का वादा करता हूँ ।
"निश्चल"जीतूंगा हर मुश्किल से ,
संकल्पों से मंजिल पाया करता हूँ ।
...."निश्चल"@....