ओर था न छोर था ।
हसरतो का दौर था ।
साँझ के मुक़ाम पे ,
एक नया भोर था ।
चाहतों की भीड़ में ,
हसरतों का शोर था ।
जीत की तलाश में ,
हार पे न गोर था ।
आने की आस में ,
राह पे गोर था ।
वो ठहरा न पास में ,
जो न कोई और था ।
..."निश्चल"@...
डायरी 7
कुछ खास नहीं कवि पिता की संतान हूँ । ..... निर्दलीय प्रकाशन भोपाल द्वारा बर्ष 2012 में "युवा सृजन धर्मिता अलंकरण" से अलंकृत। जन चेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति पीलीभीत द्वारा 2017 श्रेष्ठ रचनाकार से सम्मानित कव्य रंगोली त्रैमासिक पत्रिका लखीमपुर खीरी द्वारा साहित्य भूषण सम्मान 2017 से सम्मानित "निश्चल" मन से निश्छल लिखते जाओ । ..... . (रचनाये मौलिक स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित .)
ओर था न छोर था ।
हसरतो का दौर था ।
साँझ के मुक़ाम पे ,
एक नया भोर था ।
चाहतों की भीड़ में ,
हसरतों का शोर था ।
जीत की तलाश में ,
हार पे न गोर था ।
आने की आस में ,
राह पे गोर था ।
वो ठहरा न पास में ,
जो न कोई और था ।
..."निश्चल"@...
डायरी 7
हसरतो के मुक़ाम बदले है ।
काम के अंजाम बदले है ।
चाह में एक नई मंजिल के ,
चाहतों के नाम बदले है ।
देखकर होश में रिंद को ,
साक़ी के सलाम बदले है ।
न रही जब मय प्यालों में ,
तब रिंद के जाम बदले है ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 7
एक मुर्दों की बस्ती सी ।
पूछ रही अपनी हस्ती सी ।
स्वार्थ सजी दुकानों में ,
जाने बिकती सस्ती सी ।
ताल ठोक कर मैदानों में ,
करते सब नूरा कुश्ती सी ।
श्वेत सजे परिधानों में ,
अब दिखती न चुस्ती सी ।
हार गया है विनय निवेदन ,
पाई न कोई भी पुष्टि सी ।
हाथ उठा अब प्रभु के आगे ,
"निश्चल"मांगे भय से मुक्ति सी।
...विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 7
मेरा मन्दिर मेरे आंगन में ।
तेरा मन्दिर तेरे आंगन में ।
बरसे कृपा उसकी हरदम ,
जैसे बूंदे बरसें सावन में ।
वो नाप रहा है भांप रहा है ,
उतरा कितना मन वर्तन में ।
समय लगा है क्षण भर का ही,
भरने कृपा उसकी जीवन में ।
साथ चला है वो हरदम तेरे ,
न ला संसय तू कोई मन में ।
बीतेगा ये कठिन समय भी ,
"निश्चल"फूल खिलेंगे मधुवन में ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 7
उजियारो को अंधियारा रोक न पायेगा ।
भोर मुहाने पर सूरज उजियार लायेगा ।
युद्ध जीतेंगे योद्धा साहस की दम पर ,
कोरोना पे कोई बार नही खाली जायेगा ।
देव दूत से दिन रात खड़े जो रक्षा में ,
सेवा भाव मीठा फल दिखलायेगा ।
भेद नही कोई जात पात मजहब में ,
नजरो में हर रोगी मानव कहलायेगा ।
जीतेगी निश्चित ही मानवता दानवता से ,
हर योद्धा अंश प्रभु का ही कहलायेगा ।
शीश झुकाओ सब प्रभु के चरणों में ,
निवेदन प्रभु के आशीषों से भर जायेगा।
ढाल बनेगी हरदम कृपा प्रभु जी की ,
संकट हर योद्धा के सर से टल जायेगा ।
.."निश्चल"@....
डायरी 7
मैं चलता रहा ।
वो चलाता रहा ।
जीवन से बस कुछ,
इतना ही नाता रहा ।
हँसता रहा हर दम ,
दर्द होंठों पे सजाता रहा ।
बाँट के खुशियां दुनियाँ को ,
दर्द दिल में छुपाता रहा ।
होती रही निगाहें नम ,
अश्क़ दरिया बहाता रहा ।
जाता रहा दर पे रिश्तों के
पर न किसी को भाता रहा ।
हो सके न मुकम्मिल रिश्ते ,
रिश्तों को रिश्तों से मनाता रहा ।
"निश्चल" बस बास्ते दुनियाँ के ,
अपनो को अपना दिखाता रहा ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 7
...
आशाओं के एहसासों से ,
अभिलाषाओं की भोर खिली ।
स्वप्न संजोने उज्वल कल के,
साँझ किनारे रात मिली ।
गुजर चला जीवन जीवन मे से ,
"निश्चल" मन बनकर ,
दूर क्षितिज की स्वर्णिम आभा ,
नव जीवन की आस बनी ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 7
मान मिला सम्मान मिला। अपनो में स्थान मिला । खिली कलम कमल सी, शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई । शब्द जागते...