रविवार, 6 दिसंबर 2020

एक नया भोर था ।

 ओर था न छोर था ।

हसरतो का दौर था ।

साँझ के मुक़ाम पे ,

एक नया भोर था ।

चाहतों की भीड़ में ,

हसरतों का शोर था ।

जीत की तलाश में ,

हार पे न गोर था ।

आने की आस में ,

 राह पे गोर था ।

वो ठहरा न पास में ,

जो न कोई और था ।

..."निश्चल"@...

डायरी 7

हसरतो के मुक़ाम बदले

हसरतो के मुक़ाम बदले है ।

काम के अंजाम बदले है ।

चाह में एक नई मंजिल के ,

चाहतों के नाम बदले है ।

देखकर होश में रिंद को ,

साक़ी के सलाम बदले है ।

 न रही जब मय प्यालों में ,

 तब रिंद के जाम बदले है ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

डायरी 7

नूरा कुश्ती

 एक मुर्दों की बस्ती सी ।

पूछ रही अपनी हस्ती सी ।


स्वार्थ सजी दुकानों में ,

जाने बिकती सस्ती सी ।


ताल ठोक कर मैदानों में ,

करते सब नूरा कुश्ती सी ।


श्वेत सजे परिधानों में ,

अब दिखती न चुस्ती सी ।


हार गया है विनय निवेदन ,

पाई न कोई भी पुष्टि सी ।


हाथ उठा अब प्रभु के आगे ,

"निश्चल"मांगे भय से मुक्ति सी।


...विवेक दुबे"निश्चल"@..

डायरी 7

मेरा मंदिर

 मेरा मन्दिर मेरे आंगन में ।

तेरा मन्दिर तेरे आंगन में ।

बरसे कृपा उसकी हरदम ,

जैसे बूंदे बरसें सावन में ।


वो नाप रहा है भांप रहा है ,

उतरा कितना मन वर्तन में ।

समय लगा है क्षण भर का ही,

भरने कृपा उसकी जीवन में ।


साथ चला है वो हरदम तेरे ,

न ला संसय तू कोई मन में ।

बीतेगा ये कठिन समय भी ,

"निश्चल"फूल खिलेंगे मधुवन में ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@..

डायरी 7

कोरोना

 


 उजियारो को अंधियारा रोक न पायेगा ।

भोर मुहाने पर सूरज उजियार लायेगा ।


युद्ध जीतेंगे योद्धा साहस की दम पर ,

कोरोना पे कोई बार नही खाली जायेगा ।


 देव दूत से दिन रात खड़े जो रक्षा में ,

 सेवा भाव मीठा फल दिखलायेगा ।


भेद नही कोई जात पात मजहब में ,

 नजरो में हर रोगी मानव कहलायेगा ।


 जीतेगी निश्चित ही मानवता दानवता से ,

 हर योद्धा अंश प्रभु का ही कहलायेगा ।


  शीश झुकाओ सब प्रभु के चरणों में ,

 निवेदन प्रभु के आशीषों से भर जायेगा।


 ढाल बनेगी हरदम कृपा प्रभु जी की ,

संकट हर योद्धा के सर से टल जायेगा ।


          .."निश्चल"@....

डायरी 7


मैं चलता रहा

मैं चलता रहा ।

वो चलाता रहा ।

जीवन से बस कुछ,

इतना ही नाता रहा ।

हँसता रहा हर दम ,

 दर्द होंठों पे सजाता रहा ।

 बाँट के खुशियां दुनियाँ को ,

दर्द दिल में छुपाता रहा ।

होती रही निगाहें नम ,

अश्क़ दरिया बहाता रहा ।

 जाता रहा दर पे रिश्तों के 

पर न किसी को भाता रहा ।

हो सके न मुकम्मिल रिश्ते ,

रिश्तों को रिश्तों से मनाता रहा ।

"निश्चल" बस बास्ते  दुनियाँ के ,

अपनो को अपना दिखाता रहा ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@..

डायरी 7


...

अभिलाषाओं की भोर

 आशाओं के एहसासों से ,

 अभिलाषाओं की भोर खिली ।

स्वप्न संजोने उज्वल कल के,

    साँझ किनारे रात मिली ।

गुजर चला जीवन जीवन मे से , 

"निश्चल" मन बनकर ,

दूर क्षितिज की स्वर्णिम आभा ,

 नव जीवन की आस बनी ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

डायरी 7

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...