शनिवार, 28 नवंबर 2015

सावधान इन जय चंदों से


   ...सावधान .....
 इनको ही स्वीकार करो
 इनकी ही जय जयकार करो
 न इनका प्रतिकार करो
  तब नहीं कही कोई संकट
 बस हो गये सेक्युलर तब सब
 सहष्णुता भी सुरक्षित सिर्फ तब
  सावधान इन जयचंदो से
बगुला भक्ति के इनके फंडों से
छदम् दिखावा इनका
छल कपट धंधा जिनका
 हमने जैसे ही अपना सोचा
क्यों लगा इनको यह खोटा
 सहते ही तो आये हैं अब तक
 खूब किया छल कपट अब तक
  और नहीं अब बस अब बस
    ....विवेक..

राधिका मन सी प्यासी


राधिका मन सी मैं प्यासी ।
बन कृष्ण सखा की दासी ।
रच जाऊं मन मे ।
बस जाऊं नैनन मे।
मिल जाऊं धड़कन मे ।
छा जाऊं चितवन मे ।
न भेद रहे फिर कोई ।
इस मन मे उस मन मे ।
...विवेक...

सोमवार, 23 नवंबर 2015

बारिश का नजारा


बारिश का नजारा हो ।
खिड़की का सहारा हो ।

एक चाँद हमारा हो ।
एक सितारा तुम्हारा हो ।

दिल ने दिल को हरा हो ।
धरती अंबर हमारा हो ।।
.....विवेक...

रविवार, 22 नवंबर 2015

हाँ वक़्त बदलते देखा है



हाँ वक़्त बदलते देखा है ।
सूरज को ढ़लते देखा है ।
 चन्दा को घटते देखा है ।
 तारों को गिरते देखा है ।
 हाँ वक़्त बदलते देखा है ।
 हिमगिरि पिघलते देखा है ।
 सावन को जलते देखा है ।
 सागर को जमते देखा है ।
 नदियां को थमते देखा है ।
 हाँ वक़्त बदलते देखा है ।
 खुशियों को छिनते देखा है ।
 खुदगर्जी का मंजर देखा है ।
 अपनों को बदलते देखा है ।
 हाँ वक़्त बदलते देखा है ।
 नही कोई दस्तूर जहां ,
  ऐसा दिल भी देखा है ।
 नजरों का वो मंजर देखा है ।
 उतरता पीठ में खंजर देखा है ।
 हाँ वक़्त बदलते देखा है ।
    .....विवेक....

हम है दूव है हरी भरी ...


हम दूव है हरी भरी
जड़ से जम जाते है
नदिया सा न बह पते है
रौंधे जाते है झुक जाते है
फिर उठ जाते है
सूखे भी जो कहीं कभी
शबनम की बूंदों से ही जी जाते है
नदिया सा न बहा पाते है
हम दूव है हरी भरी .....
....विवेक®....

शब्दों की मार .....


देखो यह शब्दों की मार ,
शब्दों से होते शब्दों पर वार ।
उलट पलट कर, पलट उलट कर ,
होते नित नये तीर तैयार ।
 व्यंग धनुष पर, भाषा के तरकश से ,
 यह तीर करें , नित नये प्रहार ।
 कभी शब्द बाण चलें ऐसे ,
 मधुवन से पुष्प झड़े जैसे ।
 कभी शब्द बाण बने ऐसे ,
 सावन की बदली बरसे जैसे ।
 कभी काम बाण बन मन हरते ऐसे,
 प्रणय मिलन की बेला आई जैसे ।
कभी शब्द बाण ने किया प्रहार,
 मन कांप गया, सागर में चढ़ा ज्वार ।
 कभी व्यंग धनुष ने संधान किया,
 तीक्ष्ण शब्द को कमान किया ।
छोड़ दिया फिर साध लक्ष्य को,
कर अग्नि वर्षा,मन घायल करने को।
 यह शब्दों की माया नगरी ,
 कभी बिखरी कभी संवरी ।
 शब्दों में ही बसती दुनियां ,
हमरी तुम्हरी, तुम्हरी हमरी ।
     ....विवेक....

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...