शनिवार, 17 फ़रवरी 2018

उम्र ज्यों पकती है

 उम्र ज्यों पकती है,तन तपिश घटती है।
  हाँ इस पड़ाव पर, ठंड तो लगती है ।
 ....
   उम्र पकती रही रौनकें घटती रहीं।
   तजुर्बा-ऐ-ताव में हयात तपती रही। 
         
हयात (जीवन ज़िन्दगी)
...
  उम्र के इस पड़ाव पर।
  इश्क़ के अलाव पर।
      सिकतीं यादें प्यार की,
      अहसास के कड़ाव पर ।
....
  यादों में बिखर जाते हैं ।
  रिश्ते यूँ निखर जाते हैं ।
         कटती उम्र ख़यालों सँग ,
          जो आगोश भर जाते हैं ।
 ....
  इस काँटिल छाँव तले ।
  सोचूं कुछ सुबह तले ।
       क्या खोया क्या पाया,
       जीवन की साँझ ढले।
..
    हिचकिचाहट की भी आहट है।
     "निश्चल" यूँ मुझे इसकी आदत है।
   ... विवेक दुबे "निश्चल"@.....

क्यों चाँद जमीं को मचलता है

  वक़्त कुछ यूँ भी बदलता है ।
  जो साथ उसके चलता है।
  ढँका छाया ने उसको अपनी,
  क्यों चाँद जमीं को मचलता है।
      ....विवेक दुबे "निश्चल"@ ...

छपे नही अखवारों में

 छपे नही अखवारों में ,
 बिके नही बाजारों में। 
      रहते गुमनामी के गलियारों में।
      लिखते पढ़ते हम अपने यारों में ।
  नाम कलम "निश्चल" बस उनका ,
  जो बिकते सत्ता के गलियारों में ।
 ..... विवेक दुबे"निश्चल"@...

विवेक जग जाने दो

  "विवेक" जग जाने दो ।
   सपने सज जाने दो।
         भागूँ पीछे मैं भी उनके ,
         मुझे जरा थक जाने दो।

  पथिक बन जाने दो ,
  मंजिल पा जाने दो ।
            छोड़े पद चिन्हों को ,
             अतीत बन जाने दो।
   ... विवेक दुबे"निश्चल"@..

वो चाँद

वो चाँद छुप जाए तो क्या ।
 सितारा झिलमिलाए तो क्या ।
 फ़लक जमीं से मिलता न कहीं,
 कहीं दूर नजर भरमाए तो क्या।
...विवेक दुबे"निश्चल"@.....

चलते रहो

चलते रहो शायद यही भाग्य होता है ।
  मन में बस एक विश्वास होता है ।
 करती फैसले कुदरत अपने तरीके से ,
 और कुछ नहीं हमारे हाथ होता है ।
   .... विवेक दुबे "निश्चल"@......

नयना चितचोर बड़े

वो नयना चितचोर बड़े ।
 वो मादक रस भोर बड़े ।
 चमकें बिजुरी सावन सी,
 वो चँचल कारे कोर बड़े । 

   चंचल चितवन नैन मिले ।
    नैनन मद रसपान करे।
   चितवन प्रणय निवेदन सी ,
   वो नयना चितचोरी करें।

.....विवेक दुबे"निश्चल"@....

बरस उठे बो कारे नयना

बरस उठे वो कारे कजरारे नैना ,
 सावन के जैसे श्यामल से मेघा ।

 हर्षित चितवन चित चोर भरी ,
  बिजुरी चमकी ज्यों एक घड़ी ।

 कैसे बीते सावन रातें बिरह भरी ।
 आस लगाए नैनन द्वार खड़ी । 

  तन मन बिरह अगन भरी ।
  पिया मिलन की प्यास बड़ी ।

  आएँ प्रीतम ज्यों घटा भरी ।
 बरस जाएँ बन बुँदे बड़ी बड़ी ।

  बस नभ देखे वो आस भरी ।
  गोरी सोचे द्वार खड़ी खड़ी ।

   ..... विवेक दुबे "निश्चल"@......

यह रंग सुनहले फ़ागुन के

 यह रंग सुनहरे फ़ागुन के ।
 धुँधले धुँधले बिन साजन के ।
 टेसू फूले मन भावन से ।
 झड़ते सूने आँगन में ।
यह रंग सुनहरे फ़ागुन के..

 रंग प्रीत भरे पिचकारी में ।
 चुप चाप खड़ी लाचारी में।
 सूने नैना राह राह तकें।
 रंग नही अब इन फागों में ।
  यह रंग सुनहरे फ़ागुन के,...... 

तपता मन शीतल रातों में ,
चँदा चलता ज्यों अंगारों में ।
 शीतल बसन्त बयारों में ,
  तपतीं साँसे बस साँसों में ।
यह रंग सुनहरे फ़ागुन के....
 ..... विवेक दुबे "निश्चल"@......

कुछ बात अधूरी है

    अब भी कुछ बात अधूरी है ।
   अपनों से अपनों की दूरी है। 
   साथ मिला है एक पथ का,
    उड़ती पग पग धूल घनेरी है।
         ...विवेक दुबे©...

    जाने क्यों  बात अधूरी है ,
     जाने क्यों  कैसी दूरी है ।
    खुलता नही वो दर"निश्चल",
    जिस दर पर निग़ाह ठहरी है  ।
        ...विवेक दुबे©...

      तू कुछ पल ठहर तो सही।
     कुछ वक़्त गुजार तो सही।
     होगा फैसला खुद-बा-खुद,
     क्या है सही क्या नही सही।
        ....विवेक दुबे©.....

जाने पहचानों से

जाने पहचानों से पहचान बढे तो बेहतर है ।
 अनजाने रिश्तों से चुभता बस नश्तर है।
 रिश्तों की गलियों में नर्म सुनहले बिस्तर है।
 अनजानी राहों पर काँटे बिखरे पत्थर हैं ।
 अनन्त नील गगन पर देखो अनगिन तारे हैं । 
 जगमग हो कर भी देखो कितने बेचारे हैं ।
 इस दुनियाँ में रिश्ते जाने कितने सारे हैं।
 पर जाने पहचानो ने ही रिश्ते स्वीकारे हैं। 
    .... दुबे विवेक"निश्चल"@......

कोई मायूस सा मिला

कोई मायूस सा मिला ।
 कोई मासूम सा मिला।
 दुनियाँ का हर चेहरा ,
 मुझे मजबूर सा मिला ।
  रंग न थे चेहरे पे कोई ,
 निगाहों से रंग ढूंढता मिला ।
 छुपकर बेचैनियाँ दिल की ,
 हर चेहरा बड़े ख़ुसूस से मिला ।
 .....विवेक दुबे"निश्चल"@......

बस यही ज़िन्दगी कहलाएगी ।


 दिल  नही कोई अब प्यास है ।
 सफ़र जिंदगी भी एक आस है ।

 यह मेरा बंजर ही खास है ।
 पानी नही प्यास ही पास है ।

   यह दृश्य राह में सूखे ठूंठों के।
  आपनो से अपनो के रूठों से ।

 तपता है सूरज पर चलता है ।
 जलता है ढ़लता फिर निकलता है।

 यह चन्दा शीतल प्यारा है ।
 होता धीरे धीरे आधा है ।

 तारे भी झिलमिल कब तक ?
 देखो टूट रहे हैं जब तब ।

 धरा घूम रही अपनी धूरी पर ।
 थमी हुई है पर अपने पथ पर ।

 ज़ीवन कोई कमज़ोर नही ।
 पतंग वही पर ड़ोर नई ।

 थमी रहेगी  गगन तब तक  ।
 ड़ोर मढ़ी जितनी फ़िरकी पर ।

 कट जाएगी फिर उड़ जाएगी ।
 अनन्त गगन में खो जाएगी ।

 ड़ोर नई संग फिर वापस आएगी ।
 बस यही ज़िंदगी कहलाएगी ।
      ......विवेक दुबे"निश्चल"@....

आशीष चाहिए

नमन नही आशीष चाहिए ।
 बस इतनी सी भीख चाहिए ।
 मिलता रहे सम्बल हर दम ,
 पग पग एक सीख चाहिए ।
  ..... विवेक दुबे "निश्चल"@ ...

सच क्या

सच क्या ? 
 जो सामने आये ।
झूठ क्या ?
 जो पकड़ा न जाये ।
 डर क्या ? 
 जो भाग जाये ।
 निडर क्या ? 
 जो टकरा जाये ।
 भाग्य क्या ?
 जो बदल न पाये ।
 दुर्भाग्य क्या ? 
 जो बदल जाये ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@......

यहाँ साज़िशों के मौसम हैं

 यहाँ साजिशों के मौसम है ।
 यहाँ रंजिशों के मौसम है ।
 यहाँ नफरतों की बारिशों में ,
 शैतानियत के मौसम है ।
 यहाँ पतझड़ है शराफ़त की, 
 बीते भाई चारे के मौसम है ।
 नही है अब यहाँ चैन-ओ-अमन ,
 यहाँ शख़्स को शख़्स से चुभन है  ।
 यहाँ आँधियाँ हैं नफरतों की, 
  उड़ता गुबार-ओ-सितम है ।
  इंसान-ए-ईमान हुआ अब ख़त्म है।
   यहाँ साजिशों के मौसम है ।
 क्या यही मेरा अहल-ए-वतन है ।
        ......विवेक दुबे "निश्चल"@........

शिक्षा का एक पहलू यह भी

 आज का विषय --- शिक्षा
 शिक्षा का एक पहलू यह भी।


चले फ़रेब के यूँ कुछ धंधे ।
शिक्षा मंदिर के ऊगे सरकंडे ।
 बंट रही डिग्रियाँ धड़ा धड़,
 अपनाते नित नए हथकंडे ।

       बनते फ़र्जी डॉक्टर इंजीनियर सभी,
       शिक्षा के नाम मिलते भर भर चंदे।
       वाह व्यवस्था टूटे नही आज भी ,
       लार्ड मैकाले शिक्षा पद्धति के फंदे।

   पाकर शिक्षा रहे निराश्रित आज भी।
   स्वतंत्र भारत माता के लाड़ले बन्दे।
    पाकर शिक्षा सभी करें चाकरी ,
    कर सकते नही शिक्षत अपने धंधे।
    ...... विवेक दुबे "निश्चल"@.......

शब्द लुटाता शब्द सजाता मैं

शब्द लुटाता शब्द सजाता मैं ।

लिखता बस लिखता जाता मैं ।

खुद से खुद खुश हो जाता मैं ।

खुद को खुद से झुठलाता मैं ।

सच में कभी झूंठ सजाता मैं ।

झूंठ कभी सच से बहलाता मैं ।

…..विवेक दुबे"निश्चल"@….

बातों के बटवारे

उलझ गए कुछ यूँ बातों के बटवारों में ।
 ग़ुम हुए कुछ यूँ शब्दों के उजियारों में । 
 प्रश्न बना खड़ा है जीवन पल प्रति पल ,
 अनसुलझे प्रश्नों के अंधियारे गलियारों में ।
 जगमग आकांक्षाएं चमक चाँदनी सी ,
 घन घोर निशाओं के गहरे अंधियारों में ।
 खोजा दिन प्रति दिन जीवन पथ पर ,
 आशाओं के धुँधले से उजियारों में ।

   ..... विवेक दुबे"निश्चल"@....

चलता चल

चलता चल बस तू चलता चल ।
मंज़िल ख़ुद आएगी चलकर ।
 न देख कभी पीछे मुड़कर ।
फूल कहीं काँटे हों राहों पर ।
 बिसराता चल हर बीता कल ।
 भोर किरण संग आता सुनहरा कल ।
    ... विवेक दुबे"निश्चल"@.....

खो सा गया वो .....

 खो सा गया वो ,
 दुनियाँ के मेले मे ।
       पास था कितना वो ,
       अपने ही अकेले मे ।
  भूलाकर खुद को खुद ,
  पड़ा दुनियाँ के झमेले मे ।
        अब भी तन्हा क्यों है वो ,
         दुनियाँ के इस मेले में ।
 सोचता है वो अकेले मे ,
 इससे बेहतर तो तब था ।
         जब खोया था वो ,
         अपने दिल के मेले में ।

  .... विवेक दुबे"निश्चल"@...

कुछ शब्द छूटते


कुछ शब्द छूटते ,
             कुछ शब्द टूटते ।
 फिर भी हम ,
                   शब्द कूटते ।
 शब्दों में कुछ ,
                    रिश्ते ढूंढते ।
 भावों से नाते ,
                       शब्द सींचते ।
 बस शब्दों से ,
                  शब्द खींचते ।
 अपनेपन के ,
                   बीज़ सींचते ।
 अंकुरित हो कोई बीज,
                  बन वृक्ष विशाल ।
 कर जाये कमाल ,
                 हुए हम मालामाल।
  वृक्ष पर मीठे ,
                    फल आयें जब।
  पंक्षी डाल डाल ,
                    नीड़ बनाये तब।
 हुए शब्द सार्थक तब।
       ....विवेक दुबे"निश्चल"@...
  

शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

थक न तू न हार तू

थक न तू , न हार तू ।
अपने हुनर को, न बिसार तू ।
होंसला कांधे से ,न उतार तू ।

 तू चाँद है अम्बर का ।
तू सूरज है नील गगन का ।

तू झोंका है मस्त पवन का ।
तू नीर है सागर के तन का ।

चल चला चल , न रोक ,
       तू अपने कदम को ।
मन्ज़िलें बेचैन तेरे आगमन को ।

....विवेक दुबे "निश्चल"@....

बेटी


गुप चुप सब सहती है ।
बस खुशियां ही देती है ।
 नही चाहती वो कुछ ,
 बेटी तो बस बेटी है ।
 ...विवेक दुबे"निश्चल"@..





गिरधर को आधार चाहिए

अर्जुन सा प्रतिकार चाहिए,
 भीम सा प्रहार चाहिए ।
 हो धर्मराज सा धर्म परायण,
हों भीष्म द्रोण से सभासद। 
 होंगी द्रौपती यूँ ही लज़्ज़ित, 
 गिरधर को यह आधार चाहिए।
 कुचलने फ़न साँप का,
 सिर पर प्रहार चाहिए ।
...विवेक दुबे "निश्चल"@....

हारता है क्यों


 हारता है क्यों तू ,
 वक़्त के हालात से ।
 
         बच सका न कोई ,
         वक़्त के हाथ से ।

  जरा सब्र कर ,
 ठहर अपने हालात पे ।

          संवारेगा वक़्त फिर ,
          अपने ही हाथ से ।
 
 तपता है गुलशन ,
 मौसम के मिज़ाज़ से ।

          सजाता है फिर वही,
          ठंडी फ़ुहार से ।

  ... विवेक दुबे "निश्चल"@..

उसूल उसके

उसको रोका बहुत ,
उसको टोका बहुत ।
      वो अपनी ज़िद को ,
       उसूलों का नाम दिए जाएगा ।

अपनी नाकामियों का ,
हर इल्ज़ाम देता रहा ।
         सोचा था तब न सही ,
           अब तो सम्हल जाएगा ।

 अब आज नही  ,
 कल सुधर जाएगा ।
          कभी तो मेरे ,
           सर से इलज़ाम उठाएगा।

   सम्हल न वो ,
    सुधर न वो ।
            अपने ज़िद के ,
           उसूलों को जिए जाएगा ।

     ... विवेक दुबे "निश्चल"@...

नयन निमंत्रण

   नयन निमंत्रण आलेख सरीखा ।
   मोन आमंत्रण सुलेख सरीखा ।
     लहराते केश हैं कुछ ऐसे ,
   ऋतुएँ होतीं परिवर्तन जैसे ।
  वो श्यामल मदमस्त निगाहें ,
   बदली संग चाँद सरीखा ।
    ...  दुबे विवेक "निश्चल"© .....

स्त्री

आई स्त्री हर युग मे,
 राह बताने को ।
 अपने को ,
 दांव लगाने को ।
 देश बचाने को ,
 समाज बचाने को ।
 हार गए जहाँ ,
 पुरूष सभी ।
 तैयार मिली तब,
 अबला सबला,
 बन जाने को ।
 आई स्त्री हर युग में,
राह बताने को ।
... विवेक दुबे "निश्चल"@..

आज हम ही हम

  आज  हम ही     हम हैं ।
    साथ बेरुखी के कदम हैं ।

  ख़यालों के बहते दरिया को ,
  समंदर से मिलने का गम है ।

 टकराता था साहिल से जो ,
 आज वो तूफ़ां क्यों नम है ।

  बिखेरकर अपने आप को ,
  खाता सहजने की कसम हैं। 

      आज हम ही हम हैं ।

 .... विवेक दुबे "निश्चल"@....
Blog post 16/2/18

गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

गृहस्थ जीवन


वो नदिया के दो किनारों से ।
 बीच सँग बहती धारों से ।

 छूते लहरें धाराओं की ,
 कुछ खट्टे मीठे वादों से ।
  
 प्रणय मिलन की यादों सँग,
 घटती बढ़तीं धाराओं से  ।

 सप्तपदी जीवन नदियाँ में,
  टकराते मिश्रित धाराओं से ।

 सहज रहे हैं समेट रहे हैं ,
 अपनी स्नेहिल बाहों से ।

 भींग रहे हैं पल हर पल ,
 लिपटे चिपटे आभासों से ।

 वो नदिया के दो किनारों से।

 ..... विवेक दुबे"निश्चल"@...

बुधवार, 14 फ़रवरी 2018

हे माह देव

  ॐ हृदय राखिए, ॐ करे शुभ काज ।
  ॐ श्रीगणेश हैं ,    ॐ शिव सरकार ।

 जो थे कल में, जो होंगे कल में।
 जो हैं पल में , जो प्रतिपल में ।
 जो थे तब भी , जो न था कुछ भी ।
 जो हैं तब भी, जो होगा सब भी ।

 सूक्ष्म शिव , अति विशाल शिव हैं ।
 काल शिव,    महाकाल   शिव हैं।
 प्रतिपाल शिव , प्रलयंकार शिव हैं ।
 आकर शिव , निराकार ही शिव हैं ।

 वो हर हलचल में, सृष्टि के कण कण में।
 वो सदा शिव हैं, सत्य सनातन शिव हैं ।

हे रुद्रनाथ  ,  नागनाथ    ,  मंगलेश्वर।
हे उमापति , कैलाशपति , गौरीशंकर।
हे शिवाकांत , महादानी  ,  रामेश्वर ।
हे दीनानाथ , जटाधारी ,   जोगीश्वर।
 हे मणि महेश, अमर दानी,अभ्यंकर।
हे जगत पिता,औघड़दानी,अतिभयंकर।
 हे महाकाल  , त्रिपुरारी   ,  वृषशेश्वर। 
 हे महाज्ञान  , महा माया ,  शिव शंकर ।

        तुम माह देव  महेश्वर ,
        तुम देते मनचाहा वर ।

   हे महाकाल , हे  त्रिपुरारी ,
    मैं आया ,  शरण तुम्हारी ।
    हे माया शंकर , महाज्ञानी,
    माया तेरी ,न जाए बखानी ।

  जो सहज भाव, तुम्हे बुलाता ,
  हे दया शंकर  ,औघड़ दानी ।
   खुशियाँ ,   उसके जीवन मे  ,
   एक पल में,  आन समातीं ।

   सुनो विनय  , हे जटा धारी ,
   रखियो तुम  , लाज़ हमारी ।
   आया मैं, प्रभु  , द्वार तुम्हारे,
   भक्ति भाव, हृदय भर भारी।

   हर हर शिव शंकर , हे त्रिपुरारी ।
   हर हर शिव शंकर , हे त्रिपुरारी ।
   तेरे    चरणों   का   मैं  अनुचारी ।
    तेरे   चरणों   का  मैं  अनुचारी ।

    ..... विवेक दुबे "निश्चल"© .....

मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

अंधेरा भाया है


 उजालों को भी अंधेरा भाया है।
 उजालों को अंधेरों ने लुभाया है ।
 जल कर रात भर दीपक ने ,
 अँधेरे को अपने नीचे छुपाया है ।
  ...विवेक दुबे"निश्चल"©...

जागती आँखों से ख़्वाब देखता हूँ

जागती आँखों से ख़्वाब देखता हूँ ।
ऐ चाँद मैं तुझे बे-हिसाब देखता हूँ ।
 उतरता नही तू क्यों जमीं पर कभी,
तुझे निग़ाह-ऐ-आस-पास देखता हूँ ।
... विवेक दुबे"निश्चल"©...

सोमवार, 12 फ़रवरी 2018

अपने कर्मो से

रोक कर हर आवेश को ।
 कर सत्य के समावेश को ।
 बाँधकर आशाओं के सेतु ,
 सींच अन्तर्मन के वेश को ।
 ... 
आंत हीन इन अंतो से ।
 लगते खुलते फन्दों से।
 फँसते पंक्षी उड़ते पंक्षी ,
 अपने अपने कर्मो से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"©...

भूख की लाचारी

  
  उसकी वेदना बड़ी भारी थी ।
   जिसकी भूख एक लाचारी थी ।
   बीनता था जूठन वो बचपन , 
    निगाहें उसकी आभारी थीं ।
 .... विवेक दुबे "निश्चल"©...

न मानो अपनी हार

याद रखो बचपन को ।
  तुम न देखो दर्पण को ।
  यह झुर्रियाँ उम्र की नही ।
  दे गया है वक़्त जाते जाते ।

  इस सच को मान न मानो आपनी हार ।
 यह जोश जिंदगी का ही दौलत अपार ।
   .... विवेक दुबे "निश्चल"©......

मेरा वजूद

मिटा कर मुझे मेरे वजूद से।
 देखते है मुझे बड़े ख़ुसूस से।
 उजड़ा चमन अपने अंदाज से,
देखते बागवां को क्यों क़ुसूर से ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"© ....

वो नुक़्स निकालता रहा

वो नुक़्स निकालता रहा ।
 मैं ख़ुद को सम्हालता रहा ।
 उतारकर शीशे में ख़ुद को,
 मैं संग से सम्हालता रहा ।
  .... विवेक दुबे"निश्चल"©....

मुझे लिखते जाना है

  छपना नही कहीं  मुझे ,
 ना ही मुझे  मंच सजाना ।
 परवाह नही लय राग की,
 मुझे बस लिखते ही जाना ।
.... विवेक दुबे...

शिकायत नही तुझसे

अब शिकायत नही कोई तुझसे ।
 वक़्त हारता क्यों नही  मुझसे । 
 चाहा न था जीतना कभी तुझको ,
 तू जीतता ही क्यों रहा मुझसे ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"©...

कुछ तो जीत जाने दो

  छूटता है कुछ छूट जाने दो ।
  रूठता है कोई रुठ जाने दो ।
  बहुत हारा रिश्तों को मैंने ,
  अब तो कुछ जीत जाने दो ।
      ...विवेक दुबे "निश्चल"© ....

क़िस्मत

  तरक़ीब जब जहाँ फ़िसलती हैं ।
  क़िस्मत से चीजें वहाँ मिलतीं हैं ।
  रखता है फ़िक्र वो सभी की ,
  क़िस्मत रज़ा-ऐ-रब मिलती है ।
       ..... विवेक दुबे"निश्चल"©.....

जलती सिगार

  एक जलती सिगार ज़िन्दगी।
  कश धुएँ सा गुबार ज़िन्दगी।
  झड़ गई बस एक चुटकी में ,
  हुई राख सी बेज़ार ज़िन्दगी ।

 एक मेरा भी अंदाज़ है , राख होने का ।
 सुलग आखरी कश तक,ज़िंदा रहने का ।
  ..
 हराकर उम्र शौक पाले थे, बड़े शौक से ।
 बुझे चिराग़ लड़ न सके,अंधेरों के दौर से।
     
        …. विवेक दुबे"निश्चल" ©….

यूँ सियासत खोजते हैं

वो हर मौत से मज़हब जोड़ते हैं ।
 यूँ वो धर्म से मज़हब जोड़ते हैं ।
 करते हैं राजनीति हर मौत पर,
 मुर्दों में यूँ सियासत खोजते हैं ।
  ..... विवेक दुबे"निश्चल" ©....

टूटता आदमी

तस्वीरों को खींचता आदमी ।
 वक़्त को भींचता आदमी । 
 सहजता आज को क्यों ,
 आज से ही टूटता आदमी ।
 ....विवेक दुबे"निश्चल"©...

ज़िंदगी-ऐ-किताब

यह जिंदगी-ऐ-किताब पुरानी है।
हर सफ़हे पर एक नई कहानी है। 
 इसे पलटना सम्हाल कर तुम जरा, 
 मेरे निशां की एक यही निशानी है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"©....


आजा चँदा

   साँझ ढले तू आजा चँदा ।
   तारों के सँग छा जा चँदा ।
   निहार कण बिखरा चँदा ।
   मुझको तर कर जा चँदा ।
.... विवेक दुबे "©....
 निहार (ओस)

ना-पाक नियत

जब जब उसमे दोस्त देखा ।
 तब तब उसने ख़ंजर फेका  ।
 जख्म दिए हैं गहरे गहरे से ,
 वो ना-पाक नियत है कैसा ।
..... विवेक दुबे©...

बातें किताब करता हूँ

मंजिल नही न कोई मुक़ाम मेरा ।
 बस तन्हाई से ही बातें करता हूँ ।
 वक़्त ज़ाया न हो दुनियाँ का,
 अपनी बातें किताब करता हूँ।
 ... विवेक दुबे"निश्चल"©..

सेवा का दिया

अपने ईस्वर को मना लें जरा ।
 भूंखे को एक निवाला दें जरा ।
 आस्था के थाल में अपने भी,
 जल जाए सेवा का दिया जरा ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"©...

सिसकते ज़ज़्वात

 फ़ासला-ऐ-मंज़िल बेहिसाब हों ।
 हौंसले मगर लाजवाब हों।
  जीतकर ख़ुद से ख़ुद को ,
   ख़ुद के ही   शहज़ाद हों ।
.... विवेक दुबे ©...

  सिसकते जज़्बात थे ।
   रोते नही हालात थे ।
   थे सफ़र मौजों के ,
    साहिल नही पास थे।
 ..... विवेक दुबे "निश्चल"©..

खुद को खूब सजाया उसने


अक़्स पर अक़्स चढ़ाया उसने।
 खुद को बा-खूब सजाया उसने।
            .
अक़्स पर अक़्स चढ़ाया मैंने।
जितना चाहा वो दिखाया मैंने।
  कुछ यूँ दुनियाँ की निग़ाहों से,
 खुद को बा-खूब बचाया मैंने।
            
अक़्स अश्क़ में धुल गए ।
 छाँव पलकों में जल गए ।
 मंजिल पा जाने से पहले ,
 पाँव छालों से मचल गए ।
.... 
 अक़्स अश्क़ में धुल गए ।
 छाँव पलकों में जल गए ।
 मंजिल पा जाने से पहले ,
 छाले कदमों  में पल गए ।

.... 

कुछ यूँ ताक़ीद किया मुझको ,
 कनीज़ से हूर किया मुझको ,
 तराश कर अक़्स निगाहों से,
 काँच कोहेनूर किया मुझको ,
   ...

आइनों ने अक़्स उतारे हैं ।
 जब आइनों में झाँके हैं।
 जिंदा रखते है ज़मीर यूँ,
  खुद को आइना दिखाते हैं ।
   .... विवेक दुबे "निश्चल"©...


कदम कदम भ्रांति

कदम कदम भ्रांति सी ।
जीवन में संक्रांति सी ।
 घटती बढ़ती जो सदा, ,
 कलानिधि काँति सी।
 .... विवेक दुबे "निश्चल" ©....

शब्दों से संग्राम चला

शब्दों से संग्राम चला ।
 ऐसा मेरा अभिमान चला ।
 जीत सका न खुद को खुद,
 खुद को ही मैं हार चला । 
 खुद को ही मैं हार चला।
.... विवेक दुबे"निश्चल"©...

शायद यही भाग्य हो

चलते रहो शायद यही भाग्य हो ।
  मन में एक यही विश्वास हो।
 फैसला करे कुदरत अपने तरीके से ,
  तब सब कुछ हमारे हाथ हो।
   .... विवेक दुबे"निश्चल''©...

रिश्तों का तौल

इस अर्थ युग मे अर्थ बोल रहा ।
 रिश्तों का बस इतना मोल रहा ।
 रिश्ते बस अब लाभ हानि के,
 सोने सा रिश्तों का तोल रहा।
....विवेक दुबे"निश्चल" ©..

प्रभु कृपा

मन विश्वास हो स्नेहिल आस हो ।
 तपती रेत भी शीतल आभास हो ।
 जीत लें कदम दुनियाँ को तब,
 हृदय मन्दिर प्रभु कृपा प्रसाद हो  ।
 ...... विवेक दुबे "निश्चल"©....

कुछ कहती है तन्हाईयाँ

कहती हैं बहुत कुछ ख़ामोशियाँ मेरी ।
 उतर तन्हाइयों में ठहर गई क़श्ती मेरी ।
 न आए तूफ़ां कोई न उबला समन्दर  ,
 फिर भी निशां तूफानों सी कहानी मेरी ।
            ....विवेक दुबे "निश्चल"©......




चमकता था अपने आप

वो न ही कोई हूर था ।
 नही कोई कोहेनूर था  । 
  चमकता था अपने आप ,
   रौशनी से बहुत दूर था ।
           .. विवेक दुबे"निश्चल"©....

आइनों के भ्रम

आइनों ने भी भ्रम      पाले हैं ।
 रात से साये दिन के उजाले हैं ।
निग़ाह न मिला सका खुद से वो,
 ऐब दुनियाँ में उसने निकाले हैं ।
  ....विवेक दुबे "निश्चल"©.....

वो चला था

उठा दिया अपने घर का ,
 रौशनी दिखाने चला था । 
  उजियारे वो अपने  ,
   यूँ मिटाने चला था ।
   .....विवेक दुबे"निश्चल"©....

जरा थकने दो

सपने जरा जगने दो।
 ख़यालों को सजने दो ।
 भागूँ पीछे मैं भी उनके ,
  हाँ मुझे जरा थकने दो।
  .... विवेक दुबे "निश्चल"©...

बिके नही तो नाम कहाँ

चेन नही तो आराम कहाँ ।
 सुबह नही तो शाम कहाँ ।
 उम्र गुजारी लिखते लिखते ,
 हम बिके नही सो नाम कहाँ ।
  ..... विवेक दुबे"निश्चल" ©......

एक आस

न मानना यह हार है ।
 जीत ही इसके पार है ।
  यह नही आखरी प्रयास है ।
 लम्हा लम्हा एक आस है । 
  ..... विवेक दुबे"निश्चल"© ...

अक्षर अक्षर बिखरी ज़िन्दगी

मस्त है ज़िंदगी पस्त ज़िंदगी है।
 अक्षर अक्षर बिखरी है ज़िंदगी ।

ओ कवि तू क्यों गाता है।
 बे-वक़्त ही चिल्लाता है।
  सोया है वो बे-फिक्री से
  वक़्त करवट ले जाता है।
 ....

....विवेक दुबे"निश्चल"©..,.

अवध में श्री राम नही तो क्या होगा

प्रहार नही होगा तो क्या होगा ।
 जीवित इतिहास नही तो क्या होगा ।
 समझो गौरव को भारत के तुम ,
 अवध में श्री राम नही तो क्या होगा ।
  .... विवेक दुबे "निश्चल"©.....

जीवन मे खो जाता जीवन

रीत रहा मन बीत रहा तन ।
 मन की मन से उलझन ।
 जाने कैसा यह एकाकीपन ।
 जीवन में खो जाता जीवन ।
    .... विवेक दुबे "निश्चल"©...

छायाँ अपनो की

तुम कद्र करों पहले अपनों की ।
फिर फ़िक्र करो न सपनों की ।
चलतीं हैं हर दम संग छायाँ बन ,
 मिलती हैं जो दुआएँ अपनों की ।
    ..... विवेक दुबे"निश्चल"© .....

वक़्त

न हो मायूस तू दुनियाँ की बातों से ,
सब्र से बड़ा कोई इम्तेहान नही ।
वक़्त आएगा एक दिन तेरा भी ,
वक़्त बीत जाएगा यह उस दिन ।
 ....... विवेक दुबे"निश्चल"©.....

प्यास

 देता है जीवन अपने तरीके से ,
 फिर भी हर दम एक आस है ।
 जीवन की इस बहती सरिता में,
 रहती घूंट घूंट अधूरी प्यास है ।
     ....... विवेक दुबे "निश्चल"©.....

वक़्त




       वक़्त....
 मेरी शक्ल-ओ-सूरत को,
 वक़्त ने कुछ इस तरह बदल दिया ,,
 जो भी मिला उस ने मेरे वक़्त को,
 उसी वक़्त ही भांप लिया ,,
         .....विवेक दुबे"निश्चल"© ...

शब्द नही सोते

 शब्द किताबों में होते हैं ।
 शब्दों में असर होते हैं ।
 जागते है शब्द सदा ,
 नही शब्द नही सोते है ।
   .... विवेक दुबे"निश्चल"©....

किनारा

जीवन की आशाओं को ,
  आशाओं संग बाँधा है ।
   वो भी एक किनारा है ,
   यह भी एक किनारा है।
   ... विवेक दुबे..

जय पराजय से परे

जय पराजय से रहें परे । 
नित आगे ही बढ़ते रहें । 

बिन हारे थके बिन चलें। 
नव प्रभात के आँचल तले । 

एक आस जगे उत्साह मिलें ।
 नव जीवन के आयाम मिलें । 

       .....विवेक दुबे"निश्चल"©...







मन

कुछ गुनता कुछ सुनता मन ।
खुद में खुद को बुनता मन ।
 सरल सुलभ आश्चर्य भाव से ,
 सबंधों को सहज संजोता मन ।
 ...विवेक दुबे"निश्चल"©...

सीप ने जब


 सीप ने जब मोती जना होगा ।
 तब दर्द बे इन्तेहाँ सहा होगा ।
 अगले पल देख मोती की चमक ,
 सीप का दर्द कुछ कम हुआ होगा ।
-------           -------           ---------
 क्या मोती ने दर्द सीप का समझा होगा ।
वो तो हाथों हाथ मचल रहा होगा ।
परख़ रहीं होंगी नजरें ज़माने की ,
और वो अंगुली में नगीना बन जड़ा होगा ।
 मोती तो अंगुली में नगीना बन जड़ा होगा ।
  --------       ------       ----------
             ..... विवेक दुबे "निश्चल"©.....

अपना तो कहिए आप

हंसे तो इतना की ,
आंसू निकल पड़े .. .
नफरतो के बाज़ार में ,
लोग हमें खरीदने टूट पड़े....
मिल जायेंगे हर किसी को
हम मुफ्त में ही जनाब ....
बस इल्तिजा इतनी से है ,
हमें प्यार से ,,,
अपना तो कहिये आप ....
....विवेक दुबे....

तमन्ना मेरी

शब्द ही पहचान हो मेरी ।
बस एक यही तमन्ना हो मेरी ।
 जीत लूं दिलों को,यही शान हो मेरी।
बाद अलविदा, कहने को जमाने से।
 शब्दों में बसी जान हो मेरी ।
बस एक यही तमन्ना हो मेरी ।
    ....विवेक दुबे....

छंटती है धुँध

 छंटती है धुँध कोहरे हटते हैं।
 खिली धूप से चेहरे निखरते हैं।
   चलते छोड़कर राह पुरानी ,
   नई राह होंसले आंगे बढ़ते हैं।
... विवेक दुबे "निश्चल"...

खाते कसमें हम

 खाते हम कसमें अक़्सर ।
 टुटा करतीं कसमें अक़्सर ।
  खाकर कसमें भूले अगले पल ,
 यह दिल रखने के ज़रिये भर।
   .... विवेक दुबे "निश्चल"©...

निश्चल मन

 पुकार लेखनी शब्द सिंगारती है
 भावों की शब्दों से आरती है ।
  कर वंदन अन्तर्मन अर्चन से,
  "निश्चल" मन अर्थ उभारती है।
 .... विवेक दुबे "निश्चल"©...

बहता कल कल निश्चल

आता अगला पल अगले पल ।
 बीत रहे हैं यूँ ही पल हर पल।
  सरगम सजती साँसों की ।
  जीवन के कुछ मधुर पल ।
   जीते हैं पल प्रति पल ।
    याद नही बीता कल ।
   याद नही आता कल ।
  जीवन एक सरिता सा ,
 बहता कल कल "निश्चल" ।
  .... विवेक दुबे"निश्चल" ... ..

रविवार, 11 फ़रवरी 2018

राधा बड़ भागनी

राधा बड़ भागनी, नटखट है घनश्याम।
 बाजत कान्हा बाँसुरी, स्वर बोलें राधा नाम।

राम चरण की चाकरी,चित्त नही विश्राम।
कृपा करें राम जी, पूरन हों सब काम।


 *मंगलम सु-मंगलम* 

 *अंधकार निवारणं दीप प्रकाशकम ।*
 *वंदे श्रीहरि श्रीनिधि फल प्रदायनम ।।*

अबकी दीवाली कुछ ऐसे दीप सजाऊंगा ।
 यादों की बाती रख यादो के दीप जलाऊंगा । 
 होंगे उजियारे मध्यम मध्यम तिमिर संग ,
 हो प्रकशित मन तिमिर दूर भगाऊंगा ।




 तेल भरूंगा नव सम्भावनाओं का मैं ।
मन उज्वल नवल प्रकाश जगाऊंगा ।
  खोजूंगा फिर गहन अनन्त आकाश मैं ।
 अबकी दीवाली कुछ ऐसे दीप जलाऊंगा ।
  .... 
 कुछ शुभ कामनाएँ मेरी हों ।
कुछ शुभ कामनाएँ तेरी हों ।
 जगमग हों राहें जीवन पथ की,
 फिर रात भले ही अँधेरी हो।
   .....
 दूर कर प्रकाश से अंधकार को ।
 जीत साहस से अत्याचार को । 
 न हार कभी अपने विश्वास को ।
 जीत ले फिर समूचे आकाश को ।
  ....
कुछ ऐसे नए दीप जलाएँ।
आशाओ के उजियारे आएँ ।
दीप भले ही कल बुझ जाएँ।
आशायें जगमग होती जाएँ ।
 रंगोली कुछ यूँ सज जाएँ।
सदभाव के रंग भर जाएँ ।

....  सु-मङ्गलम् दीपावली ....

 दीवाली की रात निराली ।
 उजियारों से निशा हारी ।
          उजियारों की खातिर ,
         दिये सँग जलती बाती ।
     ..... 
 जलता रहा मैं औरों की ख़ातिर ।
 में अपने नीचे अँधेरा समेटे हुए ।
  
बुझाकर चराग दिल के मैंने।
 जलाए ज़ख्म दिल के मैंने।
   
जलता रहा मैं औरों की ख़ातिर ।
 में अपने नीचे अँधेरा समेटे हुए ।
  
मिटकर खुद तिमिर हरे अंधेरों का ।
 सूरज वही है नव प्रभात सबरों का ।
   ....
इस धनतेरस कुछ खास करें।
बुद्धि अन्तर्मन बर्तन साफ़ करें ।

 ज्ञान रूप धन भर कर,
 लक्ष्मी का आह्वान करें ।

 भुला राग, द्वेष ,बैर, सभी ,
 प्रेम, शान्ति का श्रृंगार करें ।

 हृदय चैतन्य दीप जलाकर,
 सम्पूर्ण विश्व दिव्य ज्योत बनें ।
    ...... 
  *मंगलम सुमङ्गल धनाध्यक्ष कुबेरं ।*
  *आगमन स्वागतं धनाध्यक्ष कुबेरं ।।*
            .... 
 कुछ बातें बंद लिफाफों सी।
 कुछ अनसुलझे वादों सी।
  उलट पलट कर देखा पर ,
 तारों सँग अंधियारी रातों सी ।
 ..... 
 अंधेरों ने अंधेरों को यूँ लुभाया है ।
 उजालों को भी अंधेरा भाया है। 
 जल कर दीपक ने रात भर , 
नीचे अपने अँधेरा छुपाया है ।
  ....
 भाव खो गए भाबों में।
 वादे भूले सब यादों में ।
 हर रिश्ता तो     अब ,
 बिकता है बाज़ारों में। 

     चकाचोंध की इस दुनियाँ में ।
 होता है सब कुछ अँधियारों में ।
  सूरज भी अब तो अक़्सर, 
  सोता है तमस के गलियारों में ।
 ...
 जबसे मैं मशहूर हुआ ।
 अपनो से मैं दूर हुआ ।
  पीकर प्याला शोहरत का,
   मैं बहुत मायूस हुआ ।
  ...

 स्वप्न सलोने कुछ जागे कुछ सोए से ,
 यादों के बदल में खोए खोए से ।
 मोती लुढ़के आँखों के पलकों से ,
 कुछ हँसते से कुछ रोए रोए से ।
 जीत लिया सब जिसकी खातिर ,
 उसकी ख़ातिर हार पिरोए से ।
  सँग सबेरे फिर उठ चलना होगा ,
 रात अंधेरी आँखे भर जो रोए रोए से ।
 ....
 हर रिश्ते की एक अजब कहानी है।
 हर रिश्ते की एक प्रेम कहानी है ।
 छुपा हुआ जहां स्वार्थ भाव सभी में,
 निःस्वार्थ बस बहन भाई कहानी है ।
...विवेक दुबे "निश्चल"©...

गुरु

गुरु ज्ञानी सो बूझिये ,
 मन भरे ज्ञान प्रकाश । 
 अंधकार मिट जात है ,
  ज्यों रवि चढ़े आकाश ।
  ...... विवेक दुबे"निश्चल" ©.....

साध्य से साधना

साध्य से साधना ,
                  आराध्य से आराधना ।
  भाव से भावना ,
                          प्रेम से प्रार्थना ।
हृदय से पुकारना ,
                         न उसे बिसारना ।
तब बन जायेगा ,
                      जीवन मन भावना ।
   ......विवेक दुबे"निश्चल'©..

भक्त शिरोमणी आप

भक्त शिरोमणि आप ,
 सुनते सबकी अरदास।
 राम कृपा रहे अधूरी ,
 जो त्यागे राम दास ।
  ....  विवेक दुबे"निश्चल".....

प्रथम बंदन

प्रथम करूँ मैं वंदना,  गौरी पुत्र गणेश ।
पीछे सुमिरन मैं करूँ, ब्रम्हा विष्णु महेश।।
ब्रम्हा विष्णु महेश की, रहती कृपा विशेष ।
सुमरे नित दिन जो, ऋद्धि सिद्धि गणेश ।।
   ..... विवेक दुबे "निश्चल"©......

कार्तिक मास

 कार्तिक मास...
        एक प्रयास 

बीते चतुर्मास जागी नई आस ।
 ऋतु बदली शरद चँद्र के साथ।
 जागेंगे हरि नारायण भी अब,
 करें हरि स्मरण श्रद्धा के साथ ।
    ....... विवेक दुबे©....

वंदना

               *वंदना*

  प्रातः वंदन प्रभु आशीष चाहिए ।
  तुमसे बस इतनी सी भीख चाहिए ।
  मिलता रहे प्रभु बल सम्बल हर दम ,
   जीवन से पग पग एक सीख चाहिए ।
         .....  विवेक दुबे© ......

विश्वास

तुम पूजो जिस पत्थर को पर विश्वास भरो ।
 होगा जड़ भी चेतन छूकर आभास करो । 
 मुड़ जातीं है धाराएँ भी सरिता की ,
 इठलातीं धाराओं को बाहुपाश भरो ।
     ..... विवेक दुबे "निश्चल"©....

ध्यान


बन्द नयन से ध्यान लगा ले ।
 सुमिरन कर प्रभु को चीन्ह ।
  सुध लेंगे बस एक बही तेरी ,
 डूब उन्ही में उन्ही को चीन्ह ।
  ....विवेक दुबे"निश्चल"©...

पावनी गंगा

पतित पावनी निर्मल गंगा ।
मोक्ष दायनी उज्वल गंगा ।
उतर स्वर्ग आई धरा पर ,
शिव शीश धारणी माँ गंगा ।

जैसी तब बहती थी गंगा ।
रही नही अब वैसी गंगा ।
हिमगिरि से गंगा सागर तक ,
कल कल बहती माँ गंगा ।

सिकुड़ रही अब माँ गंगा ।
हो रही क्रुद्ध अब माँ गंगा।
और न कर प्रदूषित मुझे ,
बार बार चेताती माँ गंगा ।

छोड़ती वापस गन्दगी धरा पर ।
रौद्र रूप दिखती माँ गंगा ।
हो जाती प्रलयकारी सी ,
कहती रहने दो मुझे माँ गंगा ।
….. विवेक दुबे "निश्चल"©…....

भक्ति के प्रकार

  भक्ति के नौ प्रकार,
  कहें शास्त्र स-उपकार।
    श्रवण,कीर्तन,स्मरण,
               पाद सेवन,वंदन,
                    दस्य,सख्य,आत्मनिवेदन।
 सब *नवधा भक्ति* प्रकार ।

 1 श्रवण कर श्रद्धा सहित,
    अतृप्त निरन्तर मन भाव।

      2
         कीर्तन कर मन मग्न भाव से,
          कर हरि लीला का गुण गान ।

  3
    स्मरण कर हर पल प्रभु का,
    कर उसकी शक्ति महात्म्य विचार।

            4
               आश्रय ले प्रभु चरणों मे,
               पाद सेवन सर्वस्य मान।

 5
      अर्चन कर मन वचन कर्म से,
      पवित्र भाव से प्रभु चरण पखार।

          6
             वंदन सदा कर तू परमेश्वर का,
             कण कण प्रभु छवि निहार ।

7
    दास्य रहो सदा परमेश्वर के ,
   कृतार्थ भाव से मानो उपकार।

  8
     साख्य भाव से साझा समझ के,
    पाप पुण्य समर्पित निवेदित हो पुकार।

 9
   आत्मनिवेदित मन से प्रभु चरणों मे,
    मिल परम् सत्ता से कर एकाकार।

           पा जाएगा तब तू हरि दर्शन,
          जन्म हुआ सार्थक साकार ।
    .....  विवेक दुबे"निश्चल"©......

कृपा करें राम जी

राधा बड़ भागनी, नटखट है घनश्याम।
 बाजत कान्हा बाँसुरी, स्वर बोलें राधा नाम।

राम चरण की चाकरी,चित्त नही विश्राम।
कृपा करें राम जी, पूरन हों सब काम।
  ..... विवेक दुबे 'निश्चल"©.....

हम मोहरे बिसात के

ईस्वर ही पार लगाऐ ,
हैं सब उसके ही खेल रचाऐ ।
हम मोहरे बिसात के ,
वो जैसा चाहे चलते जाऐ।
   ....विवेक दुबे"निश्चल"...

कुछ सवलों के ज़वाब नही होते

कुछ सवालों के जवाब नही होते ।
 हर जवाब के सवाल नही होते ।
 होते हैं कुछ किस्से ज़िन्दगी में ,
 हर किस्से बेमिशाल नही होते ।
    ..... विवेक दुबे "निश्चल"©....

आज भी नारी बेचारी है

ग़ुम हुए राम     आज रावण भारी है ।
 कृष्ण खो गए        बंशी की  तान में ,
 दुशासन के सामने द्रोपती बेचारी है ।
 प्रगति के युग में आज भी नारी बेचारी है ।
    ..... विवेक दुबे"निश्चल"© ...

आशाओं के दीप

आशाओं के दीप जलाता हूँ ।
 खुद में खुद खो जाता हूँ ।
 कुछ कह जाता हूँ ।
भावो में बह जाता हूँ ।
 भावो से भिड जाता हूँ ।
 खुद से खुद टकराता हूँ ।
 मरता हूँ फिर जी जाता हूँ ।
 फिर नई रौशनी पता हूँ ।
 फिर एक दीप जलाता हूँ ।
 आशाओं में फिर खो जाता हूँ ।
 आशाओं से आशाओं के ,
दीप जलाता हूँ ।
     .... विवेक  दुबे"निश्चल"©....
  

रीत राग में उलझा मन

रीत राग में उलझा मन ।
 भोग विलास में लिपटा तन ।
 प्रेम प्यार से उलझ मन ।
 रूप श्रंगार में लिपटा तन ।
 मन से मन की उलझन ।
 तन से तन की अनबन ।
 कैसे साधें तन मन को ,
 हो जाएँ हरि दर्शन ।
   .... विवेक दुबे"निश्चल"©...

श्याम सँग नाचत मन

श्याम संग नाचत मन ।
 राधिका सा बन ठन ।
 मानत रूठ जात मन ।
 मिलत छुपत जात मन ।
  राधा सा बन जात मन ।
 कान्हा में खो जात मन ।
 कान्हा का हो जात मन ।
      .... ....विवेक दुबे "निश्चल''...

तू आया था तब

तू आया तब था ।
नष्ट हुआ सा जब सब था ।
तू तो तब सब सुधार गया था ।
न भय न भृष्टाचार रहा था ।
तू ने पाप व्यभिचार मार दिया था ।
 गीता से सब को तब तार गया था ।
समय बदला युग बदला ।
आये फिर दानब लेने बदला ।
आज फिर मचा कोहराम ।
बही कंस बकासुर पूतना कौरव ।
करते अत्याचार सरे आम ।
धरती कांपी अम्बर डोला ।
हुआ त्रस्त हर इंसान ।
 बहुत हुआ पाप अनाचार ।
अब तो आ जाओ तुम ।
 धनश्याम ....
 ...विवेक दुबे "निश्चल"...

माँगा नही कुछ मैंने

 ख़ुदा से माँगा नहीं कुछ मैंने ।
बस अपनी बंदगी पेश की है ।
सज़दे में गुनाह कबूल कर ,
रहम के लिए फैलाए हाथ हैं ।
        ....विवेक दुबे"निश्चल"..

कृष्ण मिलन

कृष्ण सा मन चाहिए ।
राधा सा मिलन चाहिए ।
मीरा सा विरह चाहिए ।
गोपियों सा आग्रह चाहिए ।
कृष्ण मिलन को बस ,
और क्या चाहिए ।
 ...विवेक दुबे "निश्चल"©

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...