मैं काव्य हूँ ---------
इन शब्दों के बंधन से,मुझे मत बंधो।
भावो के अर्पण से, मुझे मत भींचो।
अर्थो के तर्पण से, मुझेमत सींचो।
काव्य हूँ में ,,,,,,
मुक्त हवा सा निर्झर बहता हूँ ।
कहता हूँ बस कहता हूँ ।
अपनी यादों में जीता हूँ ।
अमृत सुधा ठुकराता हूँ ।
विष हलाहल भी पीता हूँ।
काँटों के पथ पर भी,
हँसते हँसते चलता हूँ ।
फूलो से भी चोटिल होता हूँ ।
काव्य हूँ में बस चलता हूँ ।
चलता ही रहता हूँ ।
काव्य हूँ मै ,,,,,,,
कहता हूँ बस कहता हूँ ।
सत्य उजागर करता हूँ ।
शब्द सार्थक करता हूँ ।
भाव जाग्रत करता हूँ ।
अर्थ निचोड़ा करता हूँ ।
काव्य हूँ मैं बस,
काव्य कहा करता हूँ ।
हाँ काव्य हूँ मैं ,,,..
......विवेक.......