शनिवार, 22 अगस्त 2015

मैं काव्य हूँ


   मैं काव्य हूँ ---------
 इन शब्दों के बंधन से,मुझे मत बंधो।
 भावो के अर्पण से, मुझे मत भींचो।
 अर्थो के तर्पण से, मुझेमत सींचो।
 काव्य हूँ में ,,,,,,
 मुक्त हवा सा निर्झर बहता हूँ ।
 कहता हूँ बस कहता हूँ ।
 अपनी यादों में जीता हूँ ।
 अमृत सुधा ठुकराता हूँ ।
 विष हलाहल भी पीता हूँ।
 काँटों के पथ पर भी,
 हँसते हँसते चलता हूँ ।
 फूलो से भी चोटिल होता हूँ ।
 काव्य हूँ में बस चलता हूँ ।
 चलता ही रहता हूँ ।
 काव्य हूँ मै ,,,,,,,
                 कहता हूँ बस कहता हूँ ।
                 सत्य उजागर करता हूँ ।
                  शब्द सार्थक करता हूँ ।
                  भाव जाग्रत करता हूँ ।
                  अर्थ निचोड़ा करता हूँ ।
                   काव्य हूँ मैं बस,
                   काव्य कहा करता हूँ ।
                    हाँ काव्य हूँ मैं ,,,..
                     ......विवेक.......

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...