शनिवार, 15 जुलाई 2017

निर्दोष

उठते हैं जनाज़े उनके भी बड़ी धूम से ।
 हाथ रंगे जिनके निर्दोषों के खून से ।
  .... विवेक ..

उठते सवाल हर दम हम रहे

 उठते सवाल हर दम हम रहे।
 ख़ामोश जवाब हर दम हम रहे ।

 नाक़ाबिल तो हम न थे मग़र ,
 चुभते निग़ाह हर दम हम रहे ।

  दे कर इम्तेहां दुनियाँ को कड़े ,
  आजमाइश हर दम हम रहे ।

  चिंगारियाँ हसरतें कुछ दिल से ,
   रोशन चराग हर दम हम रहे ।

  बुने कुछ ख़्वाब जिसके वास्ते ,
 अहसास उसके हर दम हम रहे ।

  खोकर तन्हाईयाँ उसके वास्ते ,
   महफ़िल सा हर दम हम रहे ।

   जी ते रहे वा बस्ता जिनसे  ,
   करार उनके हर दम हम रहे ।
   ...... विवेक दुबे"निश्चल"©....

ख्याल


वो जेठ की धूप थकी थकी सी ,
 नहीं कहीं तनिक घास हरी सी ।
 पिघल गए उजियारे भी सन्नाटों से ,
  चीख़ उठे अँधियारे  टूटे तारों से ।
  ....विवेक दुबे "विवेक"©...

किनारे

बहता है दरिया बीच दो किनारे ।
 मिलें कैसे दरिया के दो किनारे ।

 अहसास देतीं लहरों की छुअन  ,
  जातीं यहाँ से वहाँ दो किनारे ।

 यूँ देतीं पैगाम किनारे का किनारे का  ,
  बैचेन होते लौट आने तक दो किनारे ।

  कश्तियाँ भी आतीं छूतीं किनारों को,
  सहारे को जीते है बस दो किनारे ।
 

   ... विवेक दुबे "निश्चल"©....

चिंगारी


सुलग रहीं हैं आज हर और चिंगारी ।
 कहीं भाषा कहीं मज़हब है भारी ।
  कहीं हो न जाएँ चिंगारियाँ प्रचण्ड ।
 कहीं फिर हो न जाए अखण्ड खण्ड खण्ड ।
    .... विवेक दुबे "विवेक"© ...

नारी बेचारी


ग़ुम हुए राम     आज रावण भारी है ।
 कृष्ण खो गए        बंशी की  तान में ,
 दुशासन के सामने द्रोपती बेचारी है ।
 प्रगति के युग में आज भी नारी बेचारी है ।
    ..... विवेक दुबे"विवेक"© ...

चुपके से


यूँ दिल न चुराओ चुपके से ।
 दिल न धड़काओ चुपके से ।

  रहता है हर मोड़ पर इंतज़ार
 यूँ गुज़र न जाओ चुपके से ।

 मुझे छूकर गुजरती है हवा ,
 साँसों को न महकाओ चुपके से ।

  ख्यालों गुनगुनाता हूँ जिन्हें अक्सर ,
  उन्हें गज़ल न बनाओ चुपके से ।

  देता रहा जो सजा अपने आपको ,
 उसे न सजाओ दिल में चुपके से ।

   ......विवेक दुबे "विवेक"©.....

हालात


हालात बयां क्या करें अब आज के ।
 सज़ा भुगत रहे है अपने आगाज के ।

  ....विवेक दुबे "विवेक"©...

बस यूँ ही


बस यूँ ही वक़्त गुजर जाता है ।
 कभी कभी दिल गुनगुनाता है ।
 डूबकर ख्यालों की स्याही में ,
 उतर कलम से लफ्ज़ बन जाता है ।
  ..... विवेक दुबे"विवेक"© ....


फिर मात खा रहे


उजालों को अँधेरे खा रहे ।
 अंधेरों से फिर मात खा रहे ।

 उठाए थे हाथ दुआओं में जिनकी ख़ातिर ,
 वही आज नासूर नज़र बन तड़फा रहे ।

 जिंदा थे कल तलक जैसे तैसे,
 आज होश-ओ-हवास खोते जा रहे ।

 मैं दर्द बयां करूँ तो करूँ किससे,
 जब अपने ही जख़्म देते जा रहे ।

  हर दवा भी बेअसर हुई अब ,
 प्याले दवा ज़हर भरते जा रहे ।

  बेचैन है साँसे नमुक्मिल आज ,
 तलाश-ऐ-ज़िंदगी में हम कहाँ जा रहे ।

 पिलाकर नस्लों को घूंटी पश्चिम की ,
 हम क्यों आज पूरब को भुलाते जा रहे ।

 उजालों को अँधेरे खा रहे ।
 अँधेरों से फिर मात खा रहे ।

   ...... विवेक दुबे "विवेक"© ...

लिखता है वो


लिखता है वो बस लिखता है ।
 अनुभव जीवन के लिखता है ।
 नही कभी किताबों में छपता है ।
 ना ही मंचों पर वो बिकता है ।
   ..... विवेक दुबे "विवेक"© ...

जो मिला वो कम नही


जो मिला वो कम नही ।
 जो न मिला कोई ग़म नही ।

  जो न मिल सका ग़म न कर ।
 जो मिला उसे कम न कर ।
   ..... विवेक दुबे "विवेक' ...

विश्वास


तुम पूजो जिस पत्थर को पर विश्वास भरो ।
 हो जाएगा जड़ भी चेतन छूकर आभास करो ।
 मुड़ जातीं है धाराएँ भी सरिता की ,
 इठलातीं धाराओं को बाहुपाश भरो ।
     ..... विवेक दुबे "विवेक"©....

जोश ज़िन्दगी का


याद रखो बचपन को ।
  तुम न देखो दर्पण को ।
  यह झुर्रियाँ उम्र की नही ।
  दे गया है वक़्त जाते जाते ।

  इस सच को मान न मानो आपनी हार ।
 यह जोश जिंदगी का ही दौलत आपनी ।
   .... विवेक दुबे  विवेक©...

नक़ाब


किस किस के नक़ाब उतारोगे ।
 अपनों को ही गैरत से मारोगे ।
 लगा मुखोटे बैठे सिंहासन पर ,
 तुम अपनों से ही फिर हारोगे ।
 
..... विवेक दुबे "विवेक"©....

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...