शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

मुक्तक 952/55

 952

हो गई कुर्वान जिंदगी ,

जिस पर बड़ी शान से ।

कर गया दूर वो ही मुझे,

आज अपनी पहचान से ।

बयां कर कामयावी अपनी,

 गैरो की महफ़िल में ,

कह गया सच्चाई ,

जिंदगी की वो ईमान से ।

....विवेक दुबे "निश्चल"@....

953

मुस्कुराते रहे वो एक झूँठ के सहारे ।

और उम्र के मुक़ाम पे न मिले सहारे ।

कर गई गिला जिंदगी ही जिंदगी से ,

चलती रही जिंदगी इस तरह बे-सहारे ।

...."निश्चल"@...

954

एक ख़्वाब ख्याल से आगे ।

मिला निगाह मलाल से आगे ।

दे रुसवाईयाँ अपनी तन्हाई को,

चल पड़ा वो निहाल से आगे ।

.....विवेक दुबे"निश्चल"@..

955

  एक अश्क़ समंदर सा ।

 छलका हालातों के अंदर सा ।

 मचला पलकों की कोर में,

 लेकर उम्मीदों के मंजर सा । 

  ....."विवेक दुबे"निश्चल"@..

डायरी 7

Blogpost 14/2/21

मुक्तक 947/51

 947

जिंदगी जीने की कहानी है ।

क्यूँ कहें दुनियाँ दीवानी है ।

होता किस्सा पूरा चलते चलते,

शेष बचती बस एक निशानी है ।

...."निश्चल"@...

948

कब किसे कहाँ तक जाना है ।

साथ चलना तो एक बहाना है ।

नाचती है रूह इशारे पे रब के ,

ये दुनियाँ तो एक बुतखाना है ।

...विवेक दुबे"निश्चल"@...

949

विश्वास जो बार बार करते रहे ।

स्वयं स्वयं पर वो वार करते रहे ।

कुछ दस्तूर निभाने की ख़ातिर ,

जीत को अपनी हार करते रहे ।

...."निश्चल"@...

950

हो गये गैर अपने गैर की ख़ातिर ,

अपने कभी मग़र भुलाये न गये ।

सह गये हर चोट अदब से हम ,

ज़ख्म"निश्चल"कभी दिखाये न गये ।

...."निश्चल"@...

951

ठहर गया हूँ मैं वक़्त के गुजर जाने को ।

सिमेटकर आज को कल बेहतर बनाने को ।

है आदम सा ही वक़्त का मिज़ाज ,

बदलता है वक़्त भी खुद बदल जाने को ।

...."निश्चल"@...

डायरी 7

Blogpost14/2/21

मुक्तक 942/46

 942

कुछ ऐसे कमज़र्फ देखे है ।

कुछ ऐसे नर्म हर्फ़ देखे है ।

जो बदलते रहे मायने अपने ,

कुछ रिश्तों में ऐसे फ़र्क़ देखे है ।

.... "निश्चल"@...

943

हर  जिंदगी में सबक जरूरी है ।

बगैर सबक के जिंदगी अधूरी है ।

सिखा के सबक उसूल जिंदगी के ,

अपनो के बीच वो घटाते दूरी है ।

.....विवेक दुबे"निश्चल"@....

944

 मैं अपना दर्द लिखूँ कैसे ।

 खुशियों से गैर दिखूँ कैसे ।

 रिश्तों के इस व्यापार में ,

 बे-तोल बे-मोल बिकूँ कैसे ।

..... *विवेक दुबे"निश्चल"*@...

945

खो जाऊंगा जब मैं आज के आज में ।

खोज लेना मुझे अपनी याद के साज में ।

गुनगुनाउंगा सरगम बन सांस अहसास में ,

पुकारना मुझे अपने दिल की आवाज़ में ।

..."निश्चल"....

946

ये जिंदगी कब कहाँ गुज़र जाती है ।

एक उम्र क्यों समझ नही पाती है ।

टूटते हैं अक़्स ख़्वाब के आइनों में,

क़तरा शक़्ल तन्हा नजर आती है ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@....

डायरी 7

मुक्तक 937/41

 937

बस इतनी सी जुबां पे बीमारी रखिए ।

चुप रह कर ज़बाबो की उधारी रखिए ।

न पड़ जाए रिश्तों में ख़लिश कही कोई ,

इस बात की हर बात में तैयारी रखिए ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

938

क्या कल की चाहत में सँग आज रखेगा ।

जो प्रश्नों को अपने उत्तर के बाद रखेगा ।

याद नहीं आज कही पर भी कोई तेरी ,

क्या बाद तेरे कोई तुझको याद रखेगा ।

......'निश्चल"@....

939

ढूँढती है निगाहें , निगाहों में ऐतबार ,

शहर अब में मुझे हमदर्द नही मिलते ।

देखकर बे-ऐतबारी , ज़माने की ,

हँसी में मेरी ,अब दर्द नही मिलते ।

     ....विवेक दुबे"निश्चल"@...

940

उम्र ज्यों ज्यों मुक़ाम से गुजरती गई ।

तेरे इश्क़ की दीवानगी बढ़ती गई ।

बहता रहा दरिया किनारे छोड़ कर,

चाह आगोश समंदर को भरती रही ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

941

जिसकी दम पे दुनियाँ जीतने चला था ।

वो ही तीर तरकश में नही मिला था ।

 टूटती कमान अब रिश्तों की"निश्चल" ,

 अब अपनो को अपनो से गिला था ।

        ....."निश्चल"@..

डायरी 7

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

मुक्तक 932/36

 932

मस्ती से हर सफर कट जाएगा ।

 खुशियों से आँचल सट जाएगा ।

 मिलेंगे सफ़र पे हमसफ़र नये ,

गुबार यादों का भी हट जाएगा ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

933

 संकट का ये सफरभी कट जाएगा ।

दौर खुशियों का फिर नया आएगा ।

जीत लूँ साहस संयम से अपने आप को ,

ये समय भी काल के गाल में समा जाएगा ।

...."निश्चल"@...

934

 एक किस्मत ये है इंसान की ।

एक किस्मत वो है इंसान की ।

मिलता रहा सब उसे मुकद्दर से ,

एक मोहताज रही पहचान की ।

...."निश्चल"@....

935

आधार तलाशती आशाएँ ।

कुछ शब्द बोलती भाषाएँ ।

अपने अपने हित की ख़ातिर,

बदल रही है कुछ परिभाषाएँ ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@.

936

उठ गया भरोषा इंसान की इंसानियत से ।

मिलाता नही निगाह कोई नेक नियत से ।

बदलता रंग जमाना सुबह से शाम तक,

होती है सियासत आज यहाँ तबियत से ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@..


डायरी7

Blogpost 20/2/21


मुक्तक 927/31

 927

जीवन को पौरुष से भरना होगा ।

साँस साँस में साहस धरना होगा ।

नही कही अब चूक जरा भी हो ,

तुझको पूरे की ख़ातिर लड़ना होगा ।

...."निश्चल"@..

928

होंसले नये जगाने होंगे ।

फिर कदम उठाने होंगे ।

गढ़कर मंजिल एक नई ,

सफ़र नये सजाने होंगे ।

चलता चल रहा पे तू राही ,

राह के कही तो मुहाने होंगे ।

न रख अरमान अपनो से ,

गैर ही तेरे दीवाने होंगे ।

...विवेक दुबे"निश्चल"@..

929

शायद वक़्त की अब यही चाहत होगी ।

होगा वो जिसकी मुझे न आदत होगी ।

जीत लूँगा मैं फिर भी अपने आपको ,

हारने की न मुझे कोई मलालत होगी ।

......विवेक दुबे"निश्चल"@...

930

ख़ुद से ख़ुद फिर अब मुलाक़ात करते है।

चल ज़िंदगी फिर नई शुरुआत करते है।रहे मन ममोश खामोश साथ चलकर भी,

अब दिल-ओ-जज़्बात से बात करते है ।

चल ज़िंदगी फिर नई शुरुआत करते है ।

.....विवेक दुबे"निश्चल"@....

931

 तम हरने की आशा में ,

 नित एक दीप जलाता मैं ।

 चाहे न हो उजियारा भानू सा ,

 किरणों से आशा पाता मैं ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

डायरी 7

मुक्तक924 26

 924

गुजर गई जिंदगी तब ख्याल आया है ।

अधूरे से ख्वाबो का मलाल आया है ।

चलती रही साथ चाहतें हसरतें लेकर ,

रूह जुस्तजू पर अब जमाल आया है ।

         ...."निश्चल"@..

925

एक नमी निगाहों की,

अपनो से कभी रूठने नही देती ।

एक नमी निगाहों की, 

ज़ख्म बात के सूखने नही देती ।

कर चलती है साफ़, 

राह डगर निग़ाह आइने की तरह ,

 होंसला मंज़िल से पहले ,

कभी कहीं टूटने नही देती ।

..... विवेक दुबे"निश्चल"@......

926

      स्वर रूठ रहे है शब्दों के,

कैसे मैं कोई गीत लिखूँ ।

मोल नही कोई अर्थो का ,

कैसे छंदों की रीत लिखूँ ।

नित निज स्वार्थ तले  ,

निज की अभिलाषा में ,

बदल रही परिभाषा अपनो की,

कैसे अपनो को मीत लिखूँ ।

...."निश्चल"@...

डायरी 7


गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

मुक्तक 921/923

 921

उलझे से दौर-ए-जिंदगी को सुलझाता कौन है ।

देखे इन ज़ख्म उलझनों को सहलाता कौन है ।

है जिंदगी में ग़म और ख़ुशी यक़ीनन साथ ही ,

देखते है ग़म-ए-तपिश में साथ निभाता कौन है ।

......विवेक दुबे"निश्चल"@..

921

उलझते दौर जिंदगी को देखें सुलझाता कौन है ।

देखे इन ज़ख्म उलझनों को सहलाता कौन है ।

है जिंदगी में ग़म और ख़ुशी यक़ीनन साथ ही ,

देखते है ग़म-ए-तपिश में साथ निभाता कौन है ।

......विवेक दुबे"निश्चल"@..

922

सुनता नही कोई पर मैं सुनाता रहा ।

महफिलों में अकेला ही मैं गाता रहा ।

पालकर रंजिशें जमाने से जमाने भर की,

जश्न अपने आप में मैं मनाता रहा ।

       ....."निश्चल"@....


गैर अपने आप को अपनो मैं बताता रहा ।

923

वो शोहरतें पुरानी ।

ये दौलते निशानी ।

चाहतों की चाह में ,

 ये दुनियाँ दिवानी ।

हो सकीं न मुकम्मिल,

और कट गई जवानी ।

जिंदगी के सफ़र की ,

सबकी यही कहानी ।

..."निश्चल"@.....


वो शोहरतें पुरानी ।

ये दौलते निशानी ।


चाहतों की चाह में ,

 कट गई जवानी ।

 

हो सकीं न मुकम्मिल,

फिर भी दुनियाँ दिवानी ।


जिंदगी के सफ़र की ,

सबकी यही कहानी ।

..."निश्चल"@.....


मुक्तक 916/920

 916

जीवन मूल्य बदलते है ।

साँझ तले सब ढलते है ।

नव प्रभात की किरणों में,

तब नव आयाम उजलते है ।

....."निश्चल"@....

917

रिश्ते भी जब न टिकते हो ।

स्वर्थ तले ही सब बिकते हो ।

मर्यदा कैसी तब सम्बन्धों की,

स्वांग सभी जब लिखते हो ।

...विवेक दुबे"निश्चल"@ ...

918

मुझे मुस्कुराने का तरीका न आया ।

जिंदगी जीने का सलीका न आया ।

मैं करता रहा ऐतवार अपने ईमान पर ,

पर जमाने को मुझ पे अक़ीदा न आया ।

.....विवेक दुबे"निश्चल"@...

919

ख़ामोश ख्यालों को जुबां दे गई तेरी ग़जल ।

कुछ लिखने की बजह दे गई तेरी ग़जल ।

ढूंढ़ता ही रहा मंजिल दिन के उजालों में ,

राह में चलने को जगह दे गई तेरी ग़जल ।

...."निश्चल"@....

920

मैं उदास क्यो मुझको पता नही ।

जिंदगी आस को ढो रही है कही ।

जीवन की इस भूल भुलैया में ,

शायद खुशियाँ खो रही है कही ।

.....विवेक "निश्चल"@...

मुक्तक911/915

 911

के है कोई जो जाग रहा है ।

आशाओं से तम काट रहा है ।

मौन रहा क्यों क्षण भर को भी,

अंतर्मन मन को डांट रहा है ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@....

912

हो गये गुनाह फिर कुछ ।

सो गये बे-गुनाह फिर कुछ ।

चकाचौंध दिन उजियारो में ,

स्याह लिये पनाह फिर कुछ ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@..

913

खनकती रही ये जिंदगी ,

पग घुँघरू बाँधे पायल सी ।

टूटते रहे घुँघरू आशाओं के ,

करती रही मन घायल सी ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

914

ज़िंदगी के कुछ समझौते ।

कुछ समझौतों की ज़िंदगी ।

न पाया ब-ख़ुदा ख़ुदा उसमें ,

मैं करता रहा ताउम्र बंदगी ।

....."निश्चल"@...

915

ज़िंदगी हर घड़ी एक सवाल है ।

 उलझे जबाबों का बवाल है ।

सामने है ख़ुशी भी खड़ी ,

 उलझनों को नही ख़्याल है ।

...."निश्चल"@..

Blog post 11/2/21

मुताक 903/910

 903

रिश्ते खून के कभी दूर नही होते ।

रिश्तों में कभी क़सूर नही होते ।

झुकतीं है शाखें फूलों के बजन से,

दरख़्तों को गुमां मंजूर नही होते ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

904

दर-ओ-दीवारों के नक्स बदलते हैं ।

मेरे अपनों के ही अक़्स बदलते हैं ।

थिरकते है अपनी ही साज-ओ-आवाज़ पे,

यूँ जिंदगीयों के अब रक़्स बदलते हैं ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

905

बस एक बात ये ही सही है ।

हर बात बस दिल से कही है ।

हो रहा क्युं खुदगर्ज़ जमाना ,

क्यूँ अपनों में दूरियाँ हो रहीं है ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

 906

चलते रहे सँग वो दीवाने बहाने से ।

 रूह लिए सँग दो जिस्म पुराने से ।

 खिलते रहे अश्क़ फ़ूल बनकर ,

 मिलकर अपनी ही पहचानों से ।

...निश्चल..

907

 रुख हवा के साथ चला चल ।

खुद फ़िज़ा से हाथ मिला चल ।

बहकर सँग दर्या की धार में ,

जीत ज़ज्बात को दिला चल ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

908

सहज सरल हरदम दिखना होगा ।

जीवन को जीवन में टिकना होगा ।

उजली आशाओं के उजियारो में ,

स्वप्नों को भोर तले बिकना होगा ।

.....विवेक दुबे"निश्चल"@..

909

मेरे गुनाहों की मुझे यूँ सज़ा न देना ।

मेरे अपनो से तू कभी जुदा न देना ।

मिटती नही लकीरें हाथ से रिश्तों की,

अक़्स रिश्ते नातों के मिटा न देना ।

.....विवेक दुबे"निश्चल"@..

 910

वो जो मेरे साया से ।

 सँग चलते छांया से।

छूट रहे है कुछ पीछे  ,

कुछ अपना पराया से ।

...विवेक दुबे"निश्चल"@...


डायरी 7

Blogpost 11/2/21


बुधवार, 10 फ़रवरी 2021

नव वर्ष

  788

जय पराजय से परे चलें । 

  नित आगे पग धरे चलें । 

    एक आस जगे उत्साह मिलें ।

     नव जीवन के आयाम मिलें ।


बिन हारे थके निश्चल चलें। 

नव प्रभात के आँचल तले । 

      पथ प्रशस्त की भोर खिले ।

      उज्वल कल की और चलें ।


अभिलाषाओं के फ़ूल खिले ।

 नव आशाओं के दीप जले ।

         कुंठाओं को हम जीत चले ।

          पुलकित मन नव वर्ष तले ।

  ....विवेक "निश्चल"@..

Blog post 9/1/21


रंग खुशी का मिलाया जाए

 788

ग़म के दर्या में रंग खुशी का मिलाया जाये ।

क्युँ न इंसान को इंसान से मिलाया जाये ।

दूर हो जाये अदावत तब कोई बात बने ,

क्युँ न सभी को अब अपना बनाया जाये ।

एक टीस है दिलों में के मिटती ही नही ,

क्युँ न प्यार का अब मरहम लगाया जाये ।

....."निश्चल"@..

डायरी 7

Blog post 10/2/21

मैं सही नही या

 785

मैं सही नही या ज़माना सही नही है ।

दिल ने दिल से एक ये बात कही है ।

घूम रहे है झूठ के इर्द गिर्द सभी ,

लगती एक बात मुझे यही सही है ।

खो गया इंसान खुदगर्ज़ ज़माने में ,

चाहतों में चाहतें नही दिख रही है ।

 चले है गैर तक चाहतों की चाह में ,

 देखो अपने भी तो आस पास यही है ।

दौड़ है मंजिल की तलाश में"निश्चल",

 रास्ता है नया पर मंजिल तो बही है ।

....विवेक"निश्चल"@ ....

डायरी 7


साल बदलता है ।

  786

कहने को तो साल बदलता है ।

नही कहीं कोई हाल बदलता है।

है सूरज आज भी कल जैसा ,

नही भोर का उजाल बदलता है ।

चल रहा है सब कुछ बेसा ही,

न कोई दिल मलाल बदलता है ।

 चल रही है परेशां ज़िंदगी सुकूँ से,

नही कही कोई बे-हाल बदलता है ।

चलते चलो आज भी सफर पर,

 उम्मीद का न ये निहाल बदलता है ।

आयेगा उजाला स्याह काट कर,

 न "निश्चल" का ये ख़्याल बदलता है ।

     ....विवेक"निश्चल"@..


डायरी 7

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2021

कुछ शेर

 194

जीवन तो एक आनंदोत्सव है ।

 समय से मिलता सबको सब है ।

..195

  तू क्यों चिंता करता है ।

 जब वो तेरी चिंता करता है।

....196

उसी उत्साह से तू फिर जुटना ।

चाहता है   तू   तुझे जितना ।

...197

ठंडक चाँद की तपिश घोलती है ।

क्यूँ बिन कहे निग़ाह बोलती है ।

....198

 हिचकिचाहट की भी आहट है।

     "निश्चल" यूँ मुझे इसकी आदत है।

...199

उम्र ज्यों पकती है,तन तपिश घटती है।

  हाँ इस पड़ाव पर, ठंड तो लगती है ।

...200

   उम्र पकती रही रौनकें घटती रहीं।

   तजुर्बा-ऐ-ताव में हयात तपती रही। 

         

हयात (जीवन ज़िंदगी)

...201

टूटते है सपने और बिखरते है ख़्वाब ।

भोर की आहट में जो जागते है आप ।

      ..."निश्चल"@...

202

"निश्चल"तदवीर से तक़दीर भी हारी है ।

हो होंसला तो तेरी ये दुनियाँ सारी है ।

...203

 सफ़ा सफ़ा जिंदगी मैं स्याह कर गया ।

 मैं अपने आपको यूँ गुमराह कर गया ।

    ...204

जिसने मेरा अहसान पाया कभी ।

हाँ वो मेरे काम न आया कभी ।

....205

बीता दिन अपना कल की फ़िकरों में ।

छूटा गया आज हम से ही जिकरों में ।

  ....206

 ऐ विवेक सोचता है तू क्यों कुछ ।

 सोच रखा है जब उसने सब कुछ ।

        .. 207

 रिश्ते तो अब मजबूरी है। 

दिल से दिल की दूरी है ।

..208

 बिखेरकर अपने आप को ,सिमेटता गया ।

नम निगाहों से जिंदगी तुझे मैं देखता गया ।

....209

 नम निगाहों से इश्क की तमिरदारी कर लेते है ।

कुछ यूँ खुद से खुद की हम यारी कर लेते है ।

....210

नादानियां कुछ उम्र की उम्र भर चलती रही ।

चाँदनी सँग चाँद के फिर भी चलती रही ।

.....211

किस्मत वक़्त पर सबको आवाज देती है ।

चलना हमे है साथ किसके अहसास देती है ।

....212


ये उम्र एक मुक़ाम खोजती सी ।

ज़िंदगी का पयाम खोजती सी ।

.....

213

मोहलत न मिली वक़्त से मोहब्बत के वास्ते ।

तय होते रहे यूँ तन्हा तन्हा जिंदगी के रास्ते ।

214

कुछ पूछ कर सवाल, 

वज्म महफ़िल के सामने ,

"निश्चल"साहिल से , 

समंदर के न हालात पूछिये ।

....

 215

लहरों से ही जिसकी ,

 भींगते जो किनारे रहे ।

 निग़ाह लिए आस की ,

 साथ वो बे-सहारे रहे ।

.....विवेक दुबे"निश्चल"@....

216

जिंदगी तो लौट कर फिर आती है ।

खुशियों को नज़र क्यों लग जाती है ।

217

वक़्त कुछ इस तरह गुजरता रहा ।

 वक़्त से वक़्त बे-असर सा रहा ।

..218

मुझे सराहा नहीं कभी संवारा नहीं ।  

 तुझे ज़िंदगी इश्क़ मेरा गवारा नही । 

 ....

219

ना कर तज़किरा तू रंज-ओ-मलाल पर ।

छोड़ वक़्त को तू   वक़्त के ही हाल पर ।

...220

वो चाहतों की चाहत, ना रही कोई मलालत ।

खोजतीं रहीं निगाह मेरी नज़्म-ए-ज़लालत ।... 

221

हुनर वो नही जो लेना जाने ।

हुनर वो है जो देना जाने ।

222

भीड़ बहुत थी पास मेरे मुस्कुराने बालों की ।

मेरी हर शिकस्त पर जश्न मनाने बालों की।

223

कवि देखता दुनियाँ को दुनियाँ की नजर से।

 दुनियाँ देखती कवि को बस अपनी नजर से ।

224

यह नसीब भी आदत बदलता रहा ।

बदल बदल कर साथ चलता रहा ।

.... 225

मुक़ाम की तलाश को तलाशता रहा ।

वो हर दम हारते से हालात सा रहा ।

... 226

अपने आप से यूँ भी सौदा रहा।

ज़िन्दगी का यूँ भी मसौदा रहा।

....227

 अपने ही आप को ढालता रहा ।

 ज़ज्ब जज्बात को पालता रहा ।

..228

   सच में झूठ का साथ देता राह ।

  कुछ यूँ सच का साथ देता रहा  ।

...229

मेरे फ़लसफ़े का भी सफ़ा होता ।

मुंसिफ मुझसे यूँ ना ख़फ़ा होता ।

...230

चलती ही रही कशमकश बड़ी ।

जिंदगी साथ जिंदगी के यूँ खड़ी ।

.... 231

उसे जिंदगी से मोहलत नही मिली ।

मुझे जिंदगी से तोहमत यही मिली ।

....232

उसे जिंदगी से मोहलत यदि मिलती ।

मुझे जिंदगी से तोहमत नही मिलती ।

 ....233

झूँठ नही तनिक भी, है यही सही ।

जिसे कहा सही, है वही नही सही ।

..234

आँख बंद करने से अंधेरा घटता नहीं ।

आता भोर का सबेरा अंधेरा टिकता नही ।

.... 235

जागता रहा , कुछ हम राज सा रहा ।

 छूटता किनारा , दरिया साथ सा बहा ।

....236

बुझना बुझदिली , जलना मुहाल सा रहा ।

तूफ़ान के दिये सा,  ही मेरा हाल सा रहा ।

...237

सिखाता वक़्त , हालात से हरदम रहा ।

हारता  इंसान , ज़ज्बात से हरदम रहा ।

...238

तोड़ न पाईं होंसले,  वो मुश्किलें भी ,

सँग छालों के , पाँव सफर करता रहा ।

...239

कौन है अपना , अब किसे कहूँ नाख़ुदा ,

लूटने का काम , जब रहबर करता रहा ।

...240

दिन उजलों से टले , रातें अंधेरी साथ सी ।

चलते रहे सफ़र पर, बस हसरतें हाथ सी ।

विवेक दुबे"निश्चल"@..

Blog post 31/7/18

डायरी 3

.Blog post 9/2/21

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...