194
जीवन तो एक आनंदोत्सव है ।
समय से मिलता सबको सब है ।
..195
तू क्यों चिंता करता है ।
जब वो तेरी चिंता करता है।
....196
उसी उत्साह से तू फिर जुटना ।
चाहता है तू तुझे जितना ।
...197
ठंडक चाँद की तपिश घोलती है ।
क्यूँ बिन कहे निग़ाह बोलती है ।
....198
हिचकिचाहट की भी आहट है।
"निश्चल" यूँ मुझे इसकी आदत है।
...199
उम्र ज्यों पकती है,तन तपिश घटती है।
हाँ इस पड़ाव पर, ठंड तो लगती है ।
...200
उम्र पकती रही रौनकें घटती रहीं।
तजुर्बा-ऐ-ताव में हयात तपती रही।
हयात (जीवन ज़िंदगी)
...201
टूटते है सपने और बिखरते है ख़्वाब ।
भोर की आहट में जो जागते है आप ।
..."निश्चल"@...
202
"निश्चल"तदवीर से तक़दीर भी हारी है ।
हो होंसला तो तेरी ये दुनियाँ सारी है ।
...203
सफ़ा सफ़ा जिंदगी मैं स्याह कर गया ।
मैं अपने आपको यूँ गुमराह कर गया ।
...204
जिसने मेरा अहसान पाया कभी ।
हाँ वो मेरे काम न आया कभी ।
....205
बीता दिन अपना कल की फ़िकरों में ।
छूटा गया आज हम से ही जिकरों में ।
....206
ऐ विवेक सोचता है तू क्यों कुछ ।
सोच रखा है जब उसने सब कुछ ।
.. 207
रिश्ते तो अब मजबूरी है।
दिल से दिल की दूरी है ।
..208
बिखेरकर अपने आप को ,सिमेटता गया ।
नम निगाहों से जिंदगी तुझे मैं देखता गया ।
....209
नम निगाहों से इश्क की तमिरदारी कर लेते है ।
कुछ यूँ खुद से खुद की हम यारी कर लेते है ।
....210
नादानियां कुछ उम्र की उम्र भर चलती रही ।
चाँदनी सँग चाँद के फिर भी चलती रही ।
.....211
किस्मत वक़्त पर सबको आवाज देती है ।
चलना हमे है साथ किसके अहसास देती है ।
....212
ये उम्र एक मुक़ाम खोजती सी ।
ज़िंदगी का पयाम खोजती सी ।
.....
213
मोहलत न मिली वक़्त से मोहब्बत के वास्ते ।
तय होते रहे यूँ तन्हा तन्हा जिंदगी के रास्ते ।
214
कुछ पूछ कर सवाल,
वज्म महफ़िल के सामने ,
"निश्चल"साहिल से ,
समंदर के न हालात पूछिये ।
....
215
लहरों से ही जिसकी ,
भींगते जो किनारे रहे ।
निग़ाह लिए आस की ,
साथ वो बे-सहारे रहे ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@....
216
जिंदगी तो लौट कर फिर आती है ।
खुशियों को नज़र क्यों लग जाती है ।
217
वक़्त कुछ इस तरह गुजरता रहा ।
वक़्त से वक़्त बे-असर सा रहा ।
..218
मुझे सराहा नहीं कभी संवारा नहीं ।
तुझे ज़िंदगी इश्क़ मेरा गवारा नही ।
....
219
ना कर तज़किरा तू रंज-ओ-मलाल पर ।
छोड़ वक़्त को तू वक़्त के ही हाल पर ।
...220
वो चाहतों की चाहत, ना रही कोई मलालत ।
खोजतीं रहीं निगाह मेरी नज़्म-ए-ज़लालत ।...
221
हुनर वो नही जो लेना जाने ।
हुनर वो है जो देना जाने ।
222
भीड़ बहुत थी पास मेरे मुस्कुराने बालों की ।
मेरी हर शिकस्त पर जश्न मनाने बालों की।
223
कवि देखता दुनियाँ को दुनियाँ की नजर से।
दुनियाँ देखती कवि को बस अपनी नजर से ।
224
यह नसीब भी आदत बदलता रहा ।
बदल बदल कर साथ चलता रहा ।
.... 225
मुक़ाम की तलाश को तलाशता रहा ।
वो हर दम हारते से हालात सा रहा ।
... 226
अपने आप से यूँ भी सौदा रहा।
ज़िन्दगी का यूँ भी मसौदा रहा।
....227
अपने ही आप को ढालता रहा ।
ज़ज्ब जज्बात को पालता रहा ।
..228
सच में झूठ का साथ देता राह ।
कुछ यूँ सच का साथ देता रहा ।
...229
मेरे फ़लसफ़े का भी सफ़ा होता ।
मुंसिफ मुझसे यूँ ना ख़फ़ा होता ।
...230
चलती ही रही कशमकश बड़ी ।
जिंदगी साथ जिंदगी के यूँ खड़ी ।
.... 231
उसे जिंदगी से मोहलत नही मिली ।
मुझे जिंदगी से तोहमत यही मिली ।
....232
उसे जिंदगी से मोहलत यदि मिलती ।
मुझे जिंदगी से तोहमत नही मिलती ।
....233
झूँठ नही तनिक भी, है यही सही ।
जिसे कहा सही, है वही नही सही ।
..234
आँख बंद करने से अंधेरा घटता नहीं ।
आता भोर का सबेरा अंधेरा टिकता नही ।
.... 235
जागता रहा , कुछ हम राज सा रहा ।
छूटता किनारा , दरिया साथ सा बहा ।
....236
बुझना बुझदिली , जलना मुहाल सा रहा ।
तूफ़ान के दिये सा, ही मेरा हाल सा रहा ।
...237
सिखाता वक़्त , हालात से हरदम रहा ।
हारता इंसान , ज़ज्बात से हरदम रहा ।
...238
तोड़ न पाईं होंसले, वो मुश्किलें भी ,
सँग छालों के , पाँव सफर करता रहा ।
...239
कौन है अपना , अब किसे कहूँ नाख़ुदा ,
लूटने का काम , जब रहबर करता रहा ।
...240
दिन उजलों से टले , रातें अंधेरी साथ सी ।
चलते रहे सफ़र पर, बस हसरतें हाथ सी ।
विवेक दुबे"निश्चल"@..
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