गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

शत्रु का संहार करो



नही तनिक भी मेरी परवाह करो
 शत्रु आ छुपे जब मेरे पीछे तब
तुम पहले मुझ पर ही प्रहार करो
 करो करो बस शत्रु का संहार करो
    .... विवेक ....

बुधवार, 24 फ़रवरी 2016



         तुम मेरी प्रेरणा हो या नही ,

            यह नही जानता मै ।

           हाँ इतना पता है मुझे ,

            तुम से मैंने सीखा बहुत है ।

        .....विवेक ..... 
                                     

न सोचें हम कुछ न सोचो तुम कुछ


न हम सोचें अब कुछ
 न तुम सोचो अब कुछ
 होता है हो जाने दो
 एक गुलामी फिर आने दो
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जलता है देश जल जाने दो
 बंटता है समाज बंट जाने दो
 शकुनि की चलें चल जाने दो
 फिर खण्ड खण्ड हो जाने दो
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जीवित कंस हो जाने दो
 धृतराष्ट्र को स्वप्न सजाने दो
 आयें कृष्ण धरा पर फिर
 आने का एक बहाना दो
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   ••••• विवेक ••••••

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...