सजते थे गुलशन आशाओं में ।
उठती खुशबू अभिलाषाओं में ।
हिमकण सा जमता वो रक्त,
उबला था कभी शिराओं में ।
लुप्त हुए सभी दिवा स्वप्न ,
जन मानस की आशाओं से ।
आई थी लहरें जो सागर की ,
लौट चली वापस दिशाओं में ।
प्रभात हुआ था जो स्वर्णिम सा ,
जा लिपटा संग निशा बाहों में ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
Blog post 23/5/18
उठती खुशबू अभिलाषाओं में ।
हिमकण सा जमता वो रक्त,
उबला था कभी शिराओं में ।
लुप्त हुए सभी दिवा स्वप्न ,
जन मानस की आशाओं से ।
आई थी लहरें जो सागर की ,
लौट चली वापस दिशाओं में ।
प्रभात हुआ था जो स्वर्णिम सा ,
जा लिपटा संग निशा बाहों में ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
Blog post 23/5/18