शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

संस्कार


शादी और ससुराल
दुनिया के हर मज़हब में
law से चलता है
बस एक हम ही है
जहाँ यह रिश्ता नाता
हमारे संस्कार में पलता है
एक बार जुड़ गए किसी से
बो जन्मो का सा लगता है
नो ऐग्रीमेंट नो कांट्रेक्ट
16 संस्कारो में से एक संस्कार
शुभ विवाह संस्कार
इसीलिए हम सनातन कहलाये
.... विवेक.....

जिंदगी यह भी


आज हम जी रहे जो जिंदगी
यह आज भी लाखो करोडो के लिए एक सपना हे
पर
फिर भी हम
और के लिए भागे जा रहे हे ....
संतुष्टि को और की चाहत की बलि चड़ा रहे .. ....

संतोष नहीं तो धन केसा...
संतुष्टि नहीं तो माया केसी...
जितना कमाते हे
अपना घर चलाते हे
2 पैसे बचाते हे
हो जाते हे
पूरे सारे काम
सबके दाता राम
इस से ज्यादा
के चक्कर में उलझे जो
तो भैया
पक्का मानो
होगई नींद हराम
जय जय सीता राम
......विवेक.....

धुलाई


हमने वक़्त के साथ अपने आप को
खूब धोया निचोड़ा
धुप में सुखाया
अच्छे से इस्त्री भी की
बार बार धोया
अच्छे से अच्छे डिटर्जेंट से
कूट कूट पर
पीट पीट कर
पटक पटक कर
दचक दचक कर
पर कोई फायदा नहीं
हर बार हम
जेसे थे बेसे ही रहे
पहले की तरह
बिना धुले बिना इस्त्री किये हुए
कपड़ो की तरह
आज के सभ्य समाज की तरह
झक सफ़ेद पोश न हो सके आज भी हम
.......विवेक......

मैं


"मैं" मै क्या कुछ भी नहीं
जब तक "मैं" मै था
तब तक एकाकी एकांत
भटक रहा था "मै"
अपने "मैं" के साथ
जैसे ही छोड़ा मैंने "मैं" को
तुम तुम्हे लिया साथ
बदल गई दुनियां
बदल गए हालात
जाना तब यह
तुम से ही चलते
जग के सारे काज ....
.........विवेक..............
("मै" मेरा अहम् "तुम" मेरी नम्रता )

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...