बुधवार, 22 मई 2019

मुक्तक



मिटते रहे निशां निशानों से ।
बहते रहे दर्या अरमानों से ।
रुत बदलते ही रहे मौसम ,
लाते रहे बहारें दीवानों से ।
...
आती ही रहीं बहारें , बहार से ।
न बदला असमां,मौसम बिताने से ।
पहनकर लिबास ,   वो जिस्मों के ,
ठहरी रहीं रूहें,नए ज़िस्म पाने से ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@....




गुज़रती गई ज़िंदगी, जैसे तैसे ।
बदलते रहे हालात, जाने कैसे ।
जो जीतता रहा हार कर हरदम ,
वो हारकर जीत को ,माने कैसे ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...

मंगलवार, 21 मई 2019

ग़जल

221 2121 1  22 1 212

महदूद ही रहा कुछ,ख्यालो में ख़्वाब से ।
लिपटा रहा यही कुछ, अल्फ़ाज़ ताव से ।

जो हाथ था उठा कल,नज़्र ओ अंदाज का ।
देता रहा दुआ दिल , वो ही अदाब से ।

 गजलों में काफ़िया मतला जो जुवां मिला ,
 आता रहा लबों तक वो ही रुआब से ।

ढूंढा करा नसीब जहां में कहाँ कहाँ ,
उस संग सी निग़ाह ने चाहा हिसाब से ।

 थोड़ी सि हसरते गढता ही गया सदा
 देता रहा दुआ युं नवाज़ा खिताब से ।

 छोटा नही जहां यह तेरे भी वास्ते ,
"निश्चल"यहाँ चला चल राहे कसाव से ।
  
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.....

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...