शनिवार, 6 जनवरी 2018

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।
 अपनो में स्थान मिला ।
 खिली कलम कमल सी,
 शब्दों को स्वाभिमान मिला।


मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।
 शब्द जागते रहे कलम चलती रही।
... "निश्चल"विवेक दुबे...




















माँ

आँचल की वो छाँव घनी थी।
 दुनियाँ में पहचान मिली थी ।
 छुप जाता तब तब उस आँचल में,
 जब जब दुनियाँ अंजान लगी थी।

  हो जाता "निश्चल" निश्चिन्त सुरक्षित ।
  उस ममता के आँचल में चैन बड़ी थी।
 उस आँचल की छोटी सी परिधि से ,
 इस दुनियाँ की परिधि बड़ी नही थी।

माँ पर कोई काव्य क्या गढ़े ।
 माँ तो हर काव्य से परे परे ।
  माँ एक महाकाव्य है खुद ,
 कर नमन माँ चरण शीश धरे ।
....
दे दे सब निःस्वार्थ भाव से ।
कर जोड़कर आभार भाव से ।
 पा जाएगा अर्थ प्यार का तू,
 इस सकल जगत सँसार से ।
  ....
 माँगा वो प्यार नही ।
पाया वो अधिकार नही ।
 रिश्ते हैं निःस्वार्थ भाव के,
 रिश्ते कोई व्यापार नही ।
...
तूने रचा उस रचयिता को ।
 जिसने रचा सारा सँसार ।
 सबसे पहले माँ आई ,
 और रच गया सँसार ।
 .
      ....."निश्चल" विवेक दुबे...

रविवार, 31 दिसंबर 2017

सच्चे प्रयास

प्राप्त सब सच्चे प्रयास से ।
उन्नति है मेहनत के हाथ में ।
हारते हैं वो जो चलते नहीं,
मंज़िल आती चलने के बाद में। 

    न हारना अपना हौंसला तू कभी,
  चातक, जीता है दो बूंद की आस में।
 आती है जीतकर किरण भोर की ,
  हराकर अंधेरों को रात के बाद में ।
 .....
 क्या जाने गुलाब खुशबू की तासीर  ।
 खिलता आया है जो औरों के लिए।
    साहिल को ही सागर हाँसिल है ।
    जो सहता सागर की हलचल है 
.... 
 उम्र के इस पड़ाव पर।
  इश्क़ के अलाव पर।
  सिकतीं यादें प्यार की,
  अहसास के कड़ाव पर ।
  .... 

आशा के सागर से दो बूंद चुरा लाओ ।
 आओ तुम भी साहिल पर आ जाओ ।
 लकीरें मुक्कदर की बदलती नहीं।
फिर भी लोग तक़दीर गड़ा करते हैं ।
 ....
सिमट रही कला काव्य की ,
विषय नही व्यापक कोई । 
डूबे सब अपने आप में, 
देश सुध नही पावत कोई ।
 ..
 जिंदगी को तरसते सब
 वफ़ा को तड़फते सब 
  चहरे छिपाए सब अपने 
  नक़ाब में घूमते आज सब
 ...
  निश्चल एक आस है ।
   आस ही प्रभात है ।
           चलते रहें यूँ ही हम,
            जीवन एक प्रयास है ।
 ... 
  
  उसकी वेदना बड़ी भारी थी ।
   जिसकी भूख एक लाचारी थी ।
   बीनता था जूठन वो बचपन , 
   और निगाहें उसकी आभारी थीं ।

 आये थे जहाँ साँझ को,
 है वहाँ से अब लौटना ।
 सफ़र न था उम्र भर का ,
   तू न जरा यह सोचना ।
  ....
अर्चन बंदन वो गठबंधन शब्दों में।
 प्रणय मिलन वो शब्दों का शब्दों में ।

 भावों के धूंघट में  नव दुल्हन से ,
  हर काव्य रचा एक नव चिंतन में ।

शब्द बिके अब सत्ता के गलियारों से ।
 कैसे ढूँढे अब सूरज को उजियारों में ।

कलम दरवान बनी दरवारों की ,
 चलती है सिक्कों की टंकारों में ,


 हिस्से हैं जो जगते इतिहासों के ,
  मिलें नही अब सोती साँसों में ।

  सिद्ध साधना वो आवाज़ों की ,
  सुफल नही अब प्रयासों में ।

    शब्द बिके अब सत्ता के गलियारों में ।
    कैसे ढूँढे अब सूरज को उजियारों में ।
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जो हिस्सा है इतिहास का । 
नही था वो कल आज सा ।
 साधना थी वो शब्दों की,
 नही था वो प्रयास आज सा । 
... *विवेक दुबे "निश्चल''*©..
...
   खोया अपने आप में 
 उलझा कुछ हालात में 
 मिज़ाज़ कुछ नरम गरम
 खोजता मर्ज-ऐ-इलाज़ मैं 
  ....
 ठीक नही अब कुछ
 बिगड़ चला अब कुछ 
 जीता था लड़कर जो
 थक हार चला अब कुछ 
  ...
 लिखता था जो हालात को ।
 कहता था जो ज़ज्बात को।
 बदलता गया समय सँग सब ,
 बदल उसने भी अपने आप को ।
 .....
 मन विश्वास हो स्नेहिल आस हो ।
 तपती रेत भी शीतल आभास हो ।
 जीत लें कदम दुनियाँ को तब,
 हृदय मन्दिर प्रभु कृपा प्रसाद हो  ।
 ....
 जिंदगी मिली जरा जरा ।
 जी  लें हम जरा जरा ।
 बाँट लें ग़म जरा जरा।
 बाँट दें ख़ुशी जरा जरा ।

  .... "निश्चल" *विवेक*©...

हालात

क़ुदरत के सन्नाटे थे ।
 हालात के आहाते थे ।
 चलता चाँद जमीं संग ,
  दूरियों के पैमाने थे ।
........
लिखता था जो हालात को ।
 कहता था जो ज़ज्बात को।
 बदलता गया समय सँग सब ,
 बदला उसने भी अपने आप को ।
....
हँसता हूँ मैं अपने ही हालात से  ।
 कब तक लड़ूँ अपने ज़ज्बात से ।
पाकर तंज अपनों के ,
बहार हुआ अपनी ही जात से ।
  ....  
दर्द आँखों से पिया करते है
 दर्द होंठों पर सिया करते है 
 कलम उठती है हर बार और
 खुशियाँ ही बयां किया करते है
   ...
लाख छुपाया ज़माने से अपने आप को ।
 पर चेहरा बयां कर गया मेरे हालात को ।
  सोचा निगाहें झुका कर ख़ामोश रहूँ ,
  सिलवटें उजागर कर गईं हर बात को ।
   .... 
 एक दर्द बयाँ होता है तेरी बात से ।
हारता है क्यों तू वक़्त के हालात से ।
 वो भी गुजर गया यह भी गुज़र जाएगा ।
 बच न सका कोई वक़्त के इन हाथ से ।
 ठहर जरा सब्र कर अपने हालात पे ,
 संवरेगा फिर वक़्त तुझे अपने ही हाथ से ।
 तपता है गुलशन है मौसम के मिज़ाज़ों से ,
 सजाता है फिर बही अपनी ठंडी फ़ुहारों से ।
 ..... विवेक दुबे "निश्चल".....

सबक जिंदगी के

..... सबक ज़िन्दगी के...

जो छूट जाता है ।
वो सिखाती है ।
जिन्दगी ......
किताबो के नहीं ।
कुछ किस्मत के ।
कुछ कर्मो के ।
सबक पढ़ाती है ।
जिन्दगी ....

 अभी कुछ घंटो की दूरी है।
 इस वर्ष की संध्या नही डूबी है।
...विवेक दुबे "निश्चल" ...

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...