शनिवार, 7 अक्तूबर 2017

चन्द्र चकोरी


वो चन्द्र चकोरी चितवन,
देखे चलनी  से साजन ।
        चन्द सलोना मेरा प्रीतम,
        पाऊँ मैं तुझे जन्म जन्म ।


 अर्घ चन्द्र को दे प्रथम,
 करवा जल से करे नमन।
               रहूँ सुहागन जन्म जन्म ,
             सदा साथ रहे मेरा प्रीतम ।

      बरसे स्नेह चारु किरण ,
   माँगे वो आज कर नमन ।
              वो चन्द्र चकोरी चितवन ,
               चन्द्र सलोना मेरा प्रीतम ।
     ...... विवेक दुबे ©.....



खोज


अनन्त अंतरिक्ष को खोजता मैं।
 कौन हूँ क्यों हूँ यही सोचता मैं।

 इस स्वार्थ से परे भी क्या कुछ है ,
 यही प्रश्न खुद से खुद पूछता मैं।

उत्तर मिले कुछ उत्तर कुछ शेष ।
 खोजना है जब तक साँसे शेष।
 .....विवेक दुबे ...©


जीत ले तू


नापाक के बारे में 

चल चला चल तू राम बनके ।
 जीत अत्याचार संग्राम करके ।

            कर अब बस सटीक प्रहार तू ,
             देख लिया  ऐतवार  करके ।

 जीत ले उस धरा को अब तू,
  आ बैठा जहाँ वो छल करके ।

              .... विवेक दुबे....

हुआ न एक सा कोई


 हुआ न एक सा कोई ज़माने मे।
 होता है कुछ नया हर फ़साने मे।
      
             मुक़ाम होता हर किस्से मे ।
              कोई मुकम्मिल कोई अधूरे से।

 हुआ ख़त्म वहीं ठहरे से।
 फिर शुरू नए किस्से से ।

 नही नाख़ुदा जिसके  किस्से में,
 साहिल फिर भी उसके हिस्से मे ।

  ....विवेक दुबे© .....


प्रमाण


प्रमाण न देह का न जान का ।
 प्रमाण पिता न भगवान का ।

             प्रमाण बस उस एक जान का। 
             जना जिसने अपनी जान सा ।
      
 जननी जो जनती है अपनी कोख से। 
 आए नही हम किसी और लोक से।

             वह बस माँ ओर माँ

           .... *विवेक दुबे* ...©

साहिल


एक सा कोई न हुआ जमाने मे।
 कुछ नया होता है हर फ़साने मे।

              टूटता है कोई दिल लगाने में ।
              लूटता है कोई दिल बहलाने में ।

 साहिल ही जूझता है बचाने में।
 दरिया तो लगा है साथ बहाने में।

 बिन साहिल दरिया नही जमाने मे ।
  टूटता है साहिल दरिया बनाने में ।

                ....विवेक दुबे °©....
ब्लॉग पोस्ट 7/10/17

इंसान


दोष देता इंसान इंसान को ।
जान मान बैठा बस जान को ।

           भूल कर उस भगवान को ।
            रचा है जिसने सारे जहां को ।

 कर प्यार बस तू उस महान को ।
 सुधार दे जो इस जहां उस जहां को ।

          हृदय बसा बस उस भगवान को ।
          प्यार दे उस विधाता महान को ।

               .....विवेक दुबे©....

वो







          कर सांठ गांठ अपनो से वो।
 खेले अपनो के सपनो से वो ।
 दिखा मधुर दिवा स्वप्न सलोने ,
 कहते हमसे अपना होने को वो ।
  .... विवेक दुबे©.....

विश्वास


खोजो खुशी अपने आप मे ।
 बस हँस दो अपने हालात पे।
 भुलाकर दुनियाँ की ठोकरें ,
 विश्वास करो अपने आप पे।
  ...... विवेक दुबे....

इंतज़ार


सितारे टिमटिमाते रहे शब-ए-इंतज़ार में।
 चाँद बे-ख़ौफ़ खिलखिलाता रहा ।
 रो पड़ी शबनम जमीं के आगोश में ।
 सहर भी न थी अब अपने होश में ।
 पूछा क्या हुआ जबाब एक आया ।
 तपता है सूरज पिघलते हैं हम ।
 हर बार इल्ज़ाम क्यों हम पर आया । 
 ज़माने ने शबनम को क्यों दबाया।
   ...... विवेक दुबे©.....

जिंदगी


आसमाँ एक धुआँ ही तो है ।
 ज़िन्दगी एक जुआ ही तो है ।

          हार के एक दांव ज़िन्दगी का,
           मौका और मिलता भी तो है ।
  

जिंदगी यूँ भी करबट बदलती है।
 दुआओं से ही दुआएँ मिलती हैं ।

  .... विवेक दुबे...
ब्लॉग पोस्ट 7/10/17

आस


आस जगी है धरती के मन मे,
लो चाँद चला धरती से मिलने ।

 दूर क्षितिज से दूर क्षितिज तक ,
 चलता अम्बर के आँगन में।

 घटता बढ़ता वो पल पल में 
 साँझ ढले उतरा धरा आँगन में।

 बिखरा धरती के अंग अंग में ,
 लो चाँद चला धरती से मिलने।
  
.... विवेक दुबे....

शुक्रवार, 6 अक्तूबर 2017

प्रीत







लालच लालसा चोरी,स्वार्थ बंधी सब डोरी ।
 छोड़ स्वार्थ हो जाए दुनियाँ कोरी की कोरी ।
 रच निस्वार्थ भाव से जीवन फिर तू अपना ,
 खेल श्याम सँग प्रेम प्रीत की तू तब होरी ।
  ...... विवेक दुबे©....

गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017

शरद चाँदनी


 शरद सुधाकर भरा सुधा जल से ।
 उज्वल धवल किरणों संग से ।
  छाया अपने पूरे योवन संग ,
  छलकाता सोम पीयूष गगन से।
  ...... विवेक दुबे ©.....


बुधवार, 4 अक्तूबर 2017

नवाचार


नवाचार नया विधान कैसा ।
 अचार में नए मसाले जैसा । 
  नीतियाँ बही दशकों बूढ़ी,
 पहना दी नई सुहाग चूड़ी ।

    सजी दुल्हन सी वो वृद्धा ।
  नवाचार से बँधा नया रिश्ता ।
  खूब सैर सपाटे विदेशों में, 
  ब्याह हुआ पीहर से क्या रिश्ता ।

 नैतिकता का भी भान  नहीं।
 अपनों का भी अब स्थान नहीं।
 बिठा दिए बुजुर्ग सब कोने में । 
 हम ही हैं अब हर कोने कोने में ।
  ..... विवेक दुबे©....

नैतिकता


         *आज का विषय नैतिकता*

हो रहे नैतिक पतन मूल्यों के ।
 स्कूल खुले है धन मूल्यों के ।

 अध्याय हटे नैतिक शिक्षा के ।
 पाठ बस रहे पश्च्यात शिक्षा के । 


   अब पाठ पढ़ाते जिस विद्या से ।
 चाकर बनते बस उस विद्या से।
  जीते फिर सब धन लोलुपता से ।
 दूर हुए अब सब मानवता से ।


  हाय व्यवस्था हाय नितियाँ ।
 ओढे चहरे सब नैतिकता के ।
 चाट रहे सभ्य सभी नैतिकता।
 प्राचीन धरोहर कीड़े दीमक के ।

 ...... विवेक दुबे©......



            नैतिकता पढ़ी कभी किताबों में ।
         नैतिकता मिलती नही बाज़ारों में ।
          सुनते आए किस्से बड़े सयानों से,
           यह मिलती घर आँगन चौवरो में ।
                ...... *विवेक दुबे* ©.....
          

                    




              






ज़िन्दगी


 ज़िन्दगी ___
------------------------------------
आशाओं संग यह अभिलाषाओं से हारी है ।
नित् नए स्वप्न सजा यह दुल्हन सी साजी है ।
हो रहे घायल पग , पग पग घुंघरू बाँधे बाँधे , 
घुँघरू की थिरकन पर यह घुँघरू सी बाजी है ।
अभिलाषाओं संग यह रक्कासा सी नाची है।
.....  विवेक दुबे ©......

पिपासा


निग़ाह उठी इस आशा से  ।
 देखे अंबर अभिलाषा से ।
 कुछ पूछ रही धरती जैसे ,
 अपनी प्रणय पिपासा से ।


  लिखता कलमकार इस आशा से ।
 कोई पढ़कर समझे अर्थ पिपासा से ।
 उतरे सागर शब्द गहरे तल में ,
 खोजे शब्द अर्थ मोती सच्चे से ।


   ..... विवेक दुबे©...

नैतिकता




हो रहे नैतिक पतन मूल्यों के ।
 स्कूल खुले है धन मूल्यों के ।

                          अध्याय हटे नैतिक शिक्षा के ।
                         पाठ बस रहे पाश्चात शिक्षा के । 


   अब पाठ पढ़ाते जिस विद्या से ।
     चाकर बनते बस उस विद्या से।

                       जीते फिर सब धन लोलुपता से ।
                        दूर हुए अब सब मानवता से ।


  हाय व्यवस्था हाय नितियाँ ।
 ओढे चहरे सब नैतिकता के ।

                    चाट रहे सभ्य सभी नैतिकता।
                  प्राचीन धरोहर कीड़े दीमक के ।

 ...... विवेक दुबे©......

मंगलवार, 3 अक्तूबर 2017

उनके लिए


------- उनके लिए----

 मेरी हर साँस उसी की है ।
 जिसने मुझे हर खुशी दी है।


        छोड़कर अपना घर आँगन,
        मेरे आँगन में रोशनी की है ।

  .        ..... विवेक दुबे...


      



स्वच्छता


माननीय पटल के समक्ष 
 *स्वच्छता पर एक छोटा सा प्रयास*

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻



पहले करें स्वच्छता हम मन भीतर कीचड़ की।
स्वच्छ आवरण से पहले स्वच्छ हों मन विचार।
 हो जाएँ  सुरक्षित मेरी माताएँ बहनें ,
 बन जाए स्वच्छ यह मेरा देश समाज।

स्वच्छता नही कोई त्योहारों जैसी ,
 यह है नित प्रति नित नया प्रयास ।
 हर दिन कोशिश मेरी प्रथम यही ,
 हो जाए मन हर कोना कोना साफ।
  
  मेरे आचरण यदि रहे यही ।
 निष्फ़ल है तब हर प्रयास ।
  बदलूँ पहले खुद के मन को,
 फिर आऊँ दुनियाँ के पास । 

 कीट जमी कुटिलता मन अंदर ,
 और बाहर है आभासी प्रकाश ।
  मन साग़र गगन धरा नदियाँ सारी,
  पहले अन्तर्मन कर लूँ साफ ।
 ....... *विवेक दुबे*©.....

सोमवार, 2 अक्तूबर 2017

ज़िन्दगी


 ज़िन्दगी ___
------------------------------------
आशाओं संग यह अभिलाषाओं से हारी है ।
नित् नए स्वप्न सजा यह दुल्हन सी साजी है ।
हो रहे पग , पग पग घायल घुंघरू बाँधे बाँधे , 
घुँघरू की थिरकन पर यह घुँघरू सी बाजी है ।
अभिलाषाओं संग यह रक्कासा सी नाची है।
.....  विवेक दुबे ©......




श्रेष्ठ रचनाकार



मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।
 शब्द जागते रहे कलम चलती रही।
... विवेक दुबे...





श्रेष्ठ टिप्पणीकार


  मान मिला सम्मान मिला।
 अपनो में स्थान मिला ।
 खिली कलम कमल सी,
 शब्दों को स्वाभिमान मिला।


मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।
 शब्द जागते रहे कलम चलती रही।
... विवेक दुबे...








रविवार, 1 अक्तूबर 2017

गांधी


हर रिश्वत के बनते गवाह गाँधी ।
सोचते होंगे अब गाँधी ।
क्यों छापा नोट पर ,
कैसी की यह नादानी ।
सत्य अहिंसा का मै पुजारी ,
मेरे ही सामने हो रही काला बाज़ारी ।
तुम तो बने घूम रहे सफ़ेद पौश ।
मुझे थाम रहे नकाव पोश ।
....विवेक दुबे ....

नेहदूत का अंश


माँ सरस्वती की कृपा से, 
मुझ में पिता का बो अंश आया है, 
मैने अपने आप में पिता जैसा 
रचनाकार भी पाया है , 
मुझ पर "नेहदूत" का ,नेह बरसता 
माँ सरस्वती की कृपा 
मिलती बारम्बार 
यही मेरा "सौभाग्य " 

माँ मनोरमा की 
मनोरम कृपा भी , 
साथ साथ आई है 
जिसके कारण सारी दुनियां 
बस भाई ही भाई है , 

है माँ बस इतना करना उपकार 
मिले जन्म जन्म तक 
यही माँ, यही पिता , 
बारम्बार हर बार, बार बार, 
हो माँ तेरा उपकार, 
.....विवेक...

बच्चे अब बड़े हो रहे

बच्चे अब बड़े हो रहे,
अपने फैसले खुद ले रहे।

 बच्चे कहते पापा यार,
कुछ तो समझो आप।

कैसे नाते कैसा शिष्टाचार,
जब आदमी आदमी का ,
 कर रहा व्यापार ।

 इतना सुन मैं मौन हो गया ,
  आज मैं भी बड़ा हो गया।

       ....विवेक....

हम


यहीं हम मात खा रहे हैं।
 अपनों से ही घात खा रहे हैं।
 ख़ंजर एक हाथ में जिनके ,
 उन्हें गले लगा रहे हैं।
 करते जो झुक कर प्रणाम ,
 उन पर हम हाथ उठा रहे हैं।
 हम क्यों अपना इतिहास ,
 भुलाते जा रहे हैं।
        .....विवेक दुबे.....

पलकें


 चुप रहने का भी ,
 हुनर सिखाती पलकें।

                  चुप रह कर भी,
                   सब कह जातीं पलकें ।

  शब्द गुंजातीं साँसों में ।
  नज़र आते आँखों में ।

               उठती पलकें ,गिरती पलकें ।
               भींगी पलकें, सूखी पलकें ।

 शून्य में कुछ लिखती पलकें ।
  भावों को बरसाती पलकें ।

       .....विवेक दुबे ....


दरख़्त


 टूटकर फिर उगते दरख़्त ।
  उग कर फिर टूटते दरख़्त ।।
          हर मुश्किल से जूझते दरख़्त ।
          आसमां को चूमते दरख़्त ।।
 सर उठाये झूमते दरख़्त ।
 सर झुकाये जमीं को चूमते दरख़्त ।।
         ज़मीन को न छोड़ते दरख़्त ।
         नहीं किसी को ढूंढते दरख़्त ।।
 नही किसी को छोड़ते दरख़्त ।
चाहतों की छांव से लुभाते दरख़्त ।।
       पवन के झोकें से गुनगुनाते दरख़्त ।
       कभी झूमते कभी गाते दरख़्त ।।
       ....विवेक....


अपना वतन


ज़माने का एक यह भी चलन देखा है ।

मयस्सर नही ढकने मिटटी को ,
बो कफन देखा है ।

बचपन बीन कर खता जिसको ,
बो जूठन देखा है ।

झांकता योवन फटे कपड़ो से ,
बो तन देखा है ।

यह भी है मेरा वतन ,
हाँ मैंने अपना वतन देखा है ।

.......विवेक दुबे©...

जय माँ


------------- *जय माँ* ---------

 दूर कर अंधकार को सूर्य सा प्रकाश हो ।
  हटे तिमिर तारों से जगमग आकाश हो।
 माता तुमसे मानव की यही अरदास हो ।
 ऐसा यह पावन नवरात्रि का त्यौहार हो ।
  .

 जिससे ऋतु चलतीं मौसम चलता । 
 नव सृजन सा प्रकृति क्रम चलता ।
 करें प्रथम आवाहन उस शक्ति का ,
 जिससे सकल ब्रह्मांड निकलता । 
 .....विवेक दुबे ...©

 *नवरात्रि पर्व की अग्रिम शुभकामनाएं*



                   

स्वाभिमान धनुष का


  छूट न सका वो, तीर कमान से।
   टूट गई कमान,स्वाभिमान से ।

तीर चढ़ाया ज्यों धनुष पर,
 रावण ने हुँकार भरी ।

                       रावण बोला हँसकर ,
                   तुझमे राम सी बात नही ।

 टूट गया वो धनुष,
 खुद इतना सुनकर ।
                            बोला रावण तूने,
                            सच्ची बात कही ।
..... विवेक दुबे....


कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...