दिल पे अपने हाथ मल के देखूँ जरा ।
जुबां से अपने लफ्ज़ छल के देखूँ जरा ।
रश्म-ए-दुनियाँ निभाता कौन है चला ,
लफ्ज़-ए-अंजाम मिल के देखूँ जरा ।
पलटता चलूँ मैं किताब तजुर्बों की ,
हिसाब-ए-ज़िंदगी चल के देखूँ जरा ।
कुछ वक़्त के उलझते धागों से ,
ज़ख्म-ए-दिल सिल के देखूँ जरा ।
जी लूँ अपने ही बास्ते कुछ अब तो ,
चमन-ए-दिल खिल के देखूँ जरा ।
बुत संग सा तो नही हो गया कहीं ,
अब "निश्चल" चल के देखूँ जरा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
जुबां से अपने लफ्ज़ छल के देखूँ जरा ।
रश्म-ए-दुनियाँ निभाता कौन है चला ,
लफ्ज़-ए-अंजाम मिल के देखूँ जरा ।
पलटता चलूँ मैं किताब तजुर्बों की ,
हिसाब-ए-ज़िंदगी चल के देखूँ जरा ।
कुछ वक़्त के उलझते धागों से ,
ज़ख्म-ए-दिल सिल के देखूँ जरा ।
जी लूँ अपने ही बास्ते कुछ अब तो ,
चमन-ए-दिल खिल के देखूँ जरा ।
बुत संग सा तो नही हो गया कहीं ,
अब "निश्चल" चल के देखूँ जरा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..