सोमवार, 2 मई 2022

तलाश

   


तलाश को तलाश की तलाश रह गई ।
ज़िंदगी यूँ हसरतों से हताश रह गई ।
सींचता चला वो अश्को से बागवां ,
गुलशन को फिर भी प्यास रह गई ।
ठहरी न मौजे अपने किनारो पे ,
साहिल को मिलने की आस रह गई ।
कट गई उम्र चाहतों की चाह में ,
चाहत-ए-जिंदगी यूँ खास रह गई ।
      बांट अपने दामन की खुशियाँ
     ओर खुद खुशी उदास रह गई ।
   ...विवेक दुबे"निश्चल"@...

कुछ मुक्तक

 वो कुछ यूँ मेरा हाल पूछते है ।

तुम क्यों हो खुशहाल पूछते है ।

सुना के तज़किरा मुफ़्लिशि का,

हर जवाब का सवाल पूछते है ।

....."निश्चल"@...

ये ख़्याल कुछ खुशनुमा से ।

रह गये कुछ अधूरे गुमा से ।

लिपटता ही रहा उजाला ,

 हर जलती हुई शमा से ।

     ...."निश्चल"@..

छूट गया सब पीछे धीरे धीरे ,

उम्मीदें उम्मीदों से हार चली हैं ।

खुशियों से खुशियों की अनबन,

खुशियाँ मन की मेहमान बनी हैं ।

....."निश्चल"@...

बहते पानी में पत्थरो का क़तरा क़तरा यूँ घुल गया है ।

रेशा रेशा पत्थरों से निकल पानी में मिल गया है ।

 क्युँ संग से नवाजा है दुनीयाँ ने संग को "निश्चल",

 जब संग भी मासूम से पानी में घुल गया है। 

           ..."निश्चल"@....

साँझ के दामन में एक चाँदनी खिली सी ।

स्याह के सफ़र को यूँ रोशनी मिली सी ।

कटती रही उम्र खामोश मुसलसल यूँ ही ,

 रात के किनारों पे फ़र्ज़ जिंदगी ढली सी ।

...."निश्चल"@....

 ज़िंदगी आगर एक सज़ा है ।

 तो इसका भी एक मज़ा है ।

 तू न कर शिक़वा किसी से,

  शायद उसकी ये ही रज़ा है ।

   ....."निश्चल"@.

सब कुछ है और कुछ भी नहीं है ।

ख्वाहिशों की जमीं खो रही कहीं है ।

न टूटा सितारा फलक से मेरे लिए ,

ले दामन दुआओं का खड़े हम यही है ।

....."निश्चल"@...

शिकवों को भी शिकायत न रही ।

गिलो को भी ग़म की चाहत न रही ।

 जागते रहे चश्म ख्वाब के इंतज़ार में,

निगाहों को तसब्बुर की आदत न रही ।

...."निश्चल"@...

मिरी तिश्नगी भी एक कहानी कहेगी ।

जिंदगी मुझे ये उम्र दीवानी कहेगी ।

 पढ़ लेगा ज़माना खामोशी से मुझे

 निगाह निगाह जिसे जुवानी कहेगी ।

....."निश्चल"@..,

   इज़हार से इकरार हो न सका ।

 ख्याल खुमार में शुमार हो न सका ।

 करते रहे इश्क़ ता-उम्र ख़ुद ही से,

 और ख़ुद पे इख़्तियार हो न सका ।

      ,...."निश्चल"@...

हस्ति अपनी

    खोजा करता हस्ति अपनी ,

    पथ पर अपने चलता जाता है ।

 साँझ तले दिनकर छुपता ,

 अँधियारो में मैं खो जाता है ।

       उजियारों से थककर वो ,

      अंधियारों में थकान मिटाता है।

 हर रात निशा के आँचल में ,

 वो जीवन फिर पा जाता है।

        सहज रही स्याह निशा उसको ,

       अपनी छाया से भी छुप जाता है ।

हार नही मानूँगा फिर भी मैं ,

खुद को अहसास दिलाता है ।

     कभी हार नही कभी जीत नही ,

     जीवन में बस इतना ही पाता है ।

   चलना ही तो जीवन है ,

  "निश्चल"भानू चलता जाता है ।

   .... विवेक दुबे"निश्चल"@..


जिंदगी

 रौनकें जिंदगी आईने बदलती है ।
जैसे जैसे जिंदगी साँझ ढलती है ।
 गुजरता कारवां मक़ाम से मुक़ाम तक ,
  तब जाकर ही मंजिल मिलती है ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...

 जिंदगी आईने सी कर दो ।
 परछाइयाँ ही सामने धर दो ।
 न सिमेटो कुछ भीतर अपने,
 निग़ाह अक़्स मायने भर दो।
..."निश्चल"@....
ये उम्र जब पलटने लगती है ।
निगाहों से झलकने लगती है ।
होते है तजुर्बों के आईने सामने,
 चश्म इरादे चमकने लगती है ।
....."निश्चल"@.....
मैं आईने सा हुनर, पा, न पाया ।
जो सामने आया, दिखा, न पाया ।
मैं छुपाता रहा, अक़्स, दुनियाँ के ,
मैं ख़ुद को ख़ुद में, छिपा, न पाया ।
....निश्चल"@.
रख जरा तू सामने आईने अपने ।
तू पूछ जरा खुद से मायने अपने ।
पाएगा खुद में ही खुद आपको ,
अपनी निगाहों के सामने अपने ।
...."निश्चल"@.....
हुए जब आईने के हवाले हैं ।
दिए आईने ने हमे सहारे हैं।
  सहारा दे सच के दामन को ,
 झूठ के सारे नक़ाब उतारे है।
...."निश्चल"@.....
कभी अपने आप को ,
               आईने में रखना तुम ,
 खुद को अक़्स से ,
                आईने में झकना तुम ।
कहता है क्या फिर,
                 अक़्स तुम्हे देखकर ।
  वयां कर अल्फ़ाज़ में,
                  अपने लिखना तुम ।
 .... विवेक दुबे"निश्चल"@...
...... "निश्चल"@...
अक़्स आईने में देखो यदा क़दा ।
 खुद को पहचानते रहो यदा कद ।
न ऐब लगाओ दुनियाँ को कभी ,
 ऐब अपने तो खोजो  यदा कदा ।
........ "निश्चल"@...
आइनों ने भी आईने दिखाए हमें । 
 यूँ अक़्स अपने नज़र आए हमें ।
 दूर रखकर दुनियाँ की निगाहों से,
 तन्हा होने के अहसास कराए हमें। 
 ....... "निश्चल"@...
आइनों ने भी भृम पाले हैं ।
 रात से साये दिन के उजाले हैं ।
निग़ाह न मिला सका खुद से वो,
 ऐब दुनियाँ में उसने निकले हैं ।
......... "निश्चल"@...
आइनों ने अक़्स उतारे हैं ।
 जब आइनों में झाँके हैं।
 जिंदा रखते है ज़मीर यूँ,
  खुद को आइना दिखाते हैं ।
..... ... "निश्चल"@...
 हर चेहरा शहर में नक़ली निकला ।
  एक आईना ही असली निकला ।
  लिया सहारा  जिस भी काँधे का ,
   वो काँधा भी  जख़्मी निकला ।
... "निश्चल"@...
 काश! आइनों के लव न सिले होते ।
 काश! आईने भी बोल रहे होते।
 तब,आईने में झांकने से पहले ।
 हम,सौ सौ बार सोच रहे होते ।
....... "निश्चल"@...
झाँकता रहा आईने में अपने ।
 बुनता रहा सुनहरे से सपने ।
 सजते आँख में मोती कुछ ,
 ढलक जमीं टूटते से सपने ।
 ...... "निश्चल"@...
 सफ़र-ऐ-तलाश हम ही ।
  सफर-ऐ-मुक़ाम हम ही ।
 रख निगाहों को आईने में,
  ख़्वाब-ऐ-ख़्याल हम ही ।

   ... विवेक दुबे"निश्चल"@...

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...