मंगलवार, 9 जनवरी 2018

तुम



तुम मेरी प्रेरणा हो या नही ,
यह नही जानता मैं।
हाँ इतना पता है मुझे ,
तुम से मैंने सीखा बहुत है ।  
   ....विवेक दुबे©..

तुम

 मस्त हवाओं सा अभिमान बनो।
 नदिया की धारा सा संग्राम बनो।
 चिरो पर्वत के सीनों को तुम ,
 महकी खुशबू सा श्रंगार बनो ।
...
 मेरे सायों के साये ,
  अपनो से घबराए।
   चलकर सँग उजियारों में,
   अँधियारों में बिसराएँ ।

   पुकारते हम रहे ।
   बिसारते तुम रहे।
   बसे ख़यालों में तुम,
   ख़्वाब में आते रहे।

  ..."निश्चल" विवेक दुबे ©....

धीर बनो गम्भीर बनो

धीर बनो गम्भीर बनो
सागर का तुम नीर बनो 
लुटती हो मर्यादाएं जब जब
द्रोपती का तुम चीर बनो 
देनी हो प्रेम प्यार की परिभाषा
 तब तब राधा की पीर बनो 
 धीर बनो गंभीर बनो ..... 
आते सुख दुःख जब जब
तब दुःख को भी अपना लो 
 सुख की न तुम जागीर बनो 
 पीकर गरल हलाहल सारा 
 अमृत की तुम तासीर बनो 
 धीर बनो गंभीर बनो 
 सागर का तुम नीर बनो 
   ..... विवेक दुबे©.....

पिता

बरगद से विशाल पिता।
हर मुश्क़िल की ढाल पिता ।।
ख़ुश है हर हाल पिता ।
कहे न दिल का हाल पिता ।।
हर मुश्क़िल का संबल पिता ।
निर्बल का आत्मबल पिता ।।
कभी धूप कभी छांव पिता ।
मुश्किल में न खीजा पिता ।।
हर मुश्किल से जीता पिता।
 हर दुःख पीता पिता ।।
 कंठ हलाहल थामता पिता ।
शिवः सामान नीलकंठ पिता ।।
बस खुशियाँ बाँटता पिता ।
तुम शुभांकर "नेहदूत" पिता ।।
तुम्हे शुभकामनाएं  मैं क्या दूँ पिता ।
चरणों में रहे, सदा मेरा ध्यान पिता ।।
......विवेक दुबे©...

वो पल

जब तुम कुछ पल को रोए थे ।
 वो दोनों सारी रात न सोये थे ।
 उठा गोद नंगे पांव ही दोनों दौड़े थे ।
 वैध हकीम डॉक्टर सब टटोले थे ।
  किए सारे पुण्य समर्पित एक पल में ,
 एक दुःख की खातिर ख़ुद को वो भूले थे । 
 कैसे वक़्त बदलता है,होले होले चलता है ।
 फूलों में भी काँटा मिलता है ।
 चुभता है जैसे ही ,
 फूलों को छूने का मन करता है  ।
 आज खड़े असहाय बहुत ,
 फिर भी होते देख देख खुश ।
  सोचें बस गुपचुप गुपचुप ,
 देते आएं है आज तक कुछ न कुछ ,
 माँगे कैसे आज उनसे वो कुछ । 
 शायद यही नियति यही भाग्य है ,
  खून को खून से हुआ बैराग्य है ।
   ......©विवेक दुबे ......

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...