शनिवार, 11 अगस्त 2018

शालनी छंद

शालनी छंद
मगण  तगण तगण गुरु गुरु
222   221  221   2 2

  पाते जैसे आ मिले मीत आ के  ।
  नाते वैसे ही चले प्रीत पा के  ।
  ऐसे गाते ही रहे गीत गा के ।
  भाते वैसे ही रहे रीत पा के ।

आ जाओ बातें सुनाने बुलाते ।
ना जाओ रातें बिताने रिझाते ।
ले जाओ यादें सुहानी सजाने ।
दे जाओ ताने रिझाने मनाने ।

नाता है कोई यही क्षीर सा ये ।
लाता है कोई वही नीर सा ये ।
पीता है कोई यही पीर सा ये ।
रीता है कोई वही तीर सा ये ।
.....
  जो नाते है  वो कहाँ दूर जाते ।
  वो आते ही है सदा नीर लाते ।
  जो जाते है वो नही पीर पाते ।
  वो पाते है जो यहाँ तीर आते ।

 .... विवेक दुबे"निश्चल"@...

वंशस्थ छंद

489
वंशस्थ छंद
 [ जगण   तगण   जगण   रगण ]
( 121     221    121    212 )

चला जहाँ हार गया वही कही ।
थमा यहाँ जीत गया तभी यही ।
बिसारते आप रहे सही नही ।
विखेरते गीत मिले सभी तभी ।

 निखारती प्रीत रही उकेरती ।
 सुधारती शब्द रही उभारती ।
पुकारते गीत रहे मुझे वहाँ ।
दुलारते छंद मिले मुझे जहाँ ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5

शोक हर छंद

490
शोकहर छंद / सुभंगी छंद

विधान ~ 8,8,8,6 मात्राओं पर यति, पहली दूसरी यति अंत तुकांत, चार चरण संतुकांत

ठहरे जल में , रूप कमल से ,
शांत सरोवर ,   खिलते है  ।

 पथ पर चल कर , चौराहों पर ,
 साथ सदा पग  ,  मिलते है  ।

निज पथ पर चल  , तू चलता चल ।
पथ पग चल कर ,   बनते है।

  आश्रय यही ,   विश्राम  नही ,
  हर द्वार सफल ,  खुलते है ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 5

बुधवार, 8 अगस्त 2018

अपराजिता छंद




*अपराजिता छंद*

(नगण नगण रगण सगण लघु गुरु )
111   111  212  112  1  2)

विधान-14 वर्ण4 चरण समतुकांतक

 सुबह सहर भोर भी धुंधली खिली ।
 ठहर क्षितिज साँझ भी सहमी मिली ।
 बिखर छितर चांदनी न कहीं ढली ।
 निकल उदय लालिमा न अभी चली।

 सतत चलत राह भी अब है मिली ।
 मिलकर अब आस में नजरें खिली ।
 रह कर अब साथ में जिनके अभी ।
 कलम अब रुके नही जिससे कभी ।

 निखर डगर शब्द जीवन के गहूँ ।
 सहज निखर आज मैं तन के कहूँ ।
 रचकर मन भाव मैं चलता चलूँ।
 हरक्षण लिख हाल मैं लिखता रहूँ ।

  ......विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5(77)
Blog post 8/8/18

द्रुतविलबिंत छंद

द्रुतविलबिंत छंद

विधान
  (111  211   211   212)
(नगण  भगण  भगण  रगण)

   रचित गीत रचे बिन ही रहे ।
   सुनत गीत  सुने बिन ही रहे ।
   रच गए पर सोचत ही रहे ।
   सुन गए पर देखत ही रहे ।

 ठहर जा अब तू मन ये कहे ।
 उतर जा अब तू वन ये कहे ।
 निखर जा प्रण सा तन ये कहे ।
 बिखर जा कण सा छन ये कहे ।

  निखर ले अब साजन ये कहे ।
  महक ले अब सावन ये कहे।
  चहक ले अब ये मन ये कहे ।
  सहज ले अब जीवन ये कहे ।

 .. *विवेक दुबे"निश्चल"* @...
डायरी 5(76)
Blog post 8/8/18

जलधर माला छंद

*जलधरमाला छंद*

विधान~
[मगण भगण सगण मगण]
(222   211  112  222)
12 वर्ण,4 चरण,यति 4,8
दो-दो चरण समतुकांत]


आता जाता हर दिन ही राहों में ।
खोता जाता मन मन की बातों में ।
 रोकें राहें कुछ अहसासों से ये ।
मीठा नाता कुछ कुछ वादों से ये ।
...
हारा जाता हर दिन बातों से मैं ।
 जीता जाता हर दम नातों में मैं ।
आते जाते कुछ अहसासों में ये ।
मीठे नाते अब कुछ साथों के से  ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@...

492
 आओ यारा घुन एक कोई गाओ ।
 यारा मेरे सुख मय बातें लाओ ।
 रातें बीतें खुश खुश साथी आओ ।
 यादों का है मधुवन आ भी जाओ ।


डायरी 3/5

द्रुता छंद

485
   *द्रुता छंद*
विधान~ [रगण जगण सगण लघु गुरु ]
(212  121  112   1   2)
11 वर्ण, 4 चरण, यति 5-6 वर्णों पर
[दो-दो चरण समतुकांत]


जीव की प्रभा , सकल जो सदा ।
काल की अजा , अटल जो सदा ।
 भाल है कला ,     अजर है सदा ।
 आज है शिवा ,   अमर है सदा ।     
... 
 याद है उसे ,   कब मिले तुझे ।
 भूलता नही, शंकर कभी तुझे ।
 मांगना नही , बिन दिए दिया ।
 सोचता नही , बिन लिए दिया ।

जीव की प्रभा , सकल जो सदा ।

मांगना नही , बिन कहे दिया ।
 सोचता नही , बिन गहे दिया ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

अजा/ कांति


 मांगना नही, तु अपना दिया ।
 भूल जा तु ,देकर कभी दिया ।
 फैलता प्रकाश, जलता दिया ।
 है दिया बहुत ,  उसने दिया ।

.... *विवेक दुबे"निश्चल"*@..
दायरी 3(76)

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...