गुरुवार, 21 मार्च 2019

दुआओं में घुले रंग गुलाल ,

724
दुआओं में घुले रंग गुलाल , 
बस यूँ हाथ उठाते जाइए ।

जुबां-ओ-निग़ाह से ,
अमन रंग उड़ाते जाइए ।

न रहें तल्खियाँ कोई ,
जात-ओ-मज़हब में ,

इंसां को इंसान में ,
आब सा मिलते जाइए ।

..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(125)

बुधवार, 20 मार्च 2019

होरी खेले नंद को लाल ।

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केसर रंग लिए गुलाल ।
होरी खेले नंद को लाल ।

मारत भर भर पिचकारी ,
सखियाँ रंग डारी लाल ।

चुनार भींगी चोली भींगी ,
गुलाल मले सखी के गाल ।

झूम रहो है बरसानो सारो ,
ग्वाल बाल सब भये बेहाल ।

रंग गए सब श्याम रंग में ,
श्याम चले है ऐसी चाल ।

छूटे न ये रंग चड़ो जो ,
आती होरी अगली साल ।
...
फिर बरसी फुहारें फ़ागन की ।
भींगी कोरी चूनर साजन की ।
रच गया रंग तन और मन ,
मादकता नैनो में नैनन की ।
.... 
सखी चलते है बरसाने को ।
कान्हा के रंग रच जाने को ।
चल डूब चले श्याम रंग में ,
"निश्चल"श्यामल हो जाने को ।
    ......
"निश्चल"छंद रचे फागों के ।
 गीत लिखे कुछ हुरियारों पे ।
 मस्ती छाई जा फ़ागुन की ,
 सखी भींगे नयन फुहारों से ।...

....विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(134)



जिंदगी ख़ास सी ।

722
एक आस सी ।
साँस साँस सी ।

बुत निग़ाह रही,
अधूरी प्यास सी ।

दरिया की रवानी,
बहती कयास सी ।

थम गया समंदर ,
मौजें भी पास सी ।

फ़ना हर लम्हा ,
जिंदगी ख़ास सी ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(132)

शीतल उर "निश्चल"मन ।

721
कुछ बांधे बंधन ।
कुछ काटे बंधन ।

जीवन की आशा में,
दग्ध हृदय तपता तन ।

एक साँझ तले ,
मिलता जीवन ।

 तरुवर की छाँया में ,
 शीतल उर "निश्चल"मन ।

...विवेक दुबे...

तरुवर-- परमात्मा ब्रम्ह
उर -- हृदय
डायरी 6(131)

कुछ इस तरह मुझे , शोहरत मिलती रही ।

720
कुछ इस तरह मुझे ,
       शोहरत मिलती रही ।

मेरी वफ़ाओं की मुझे,
          तोहमत मिलती रही ।

चलता ही रहा सफ़र , 
            मंजिल के वास्ते ,

वक़्त से इस तरह , 
            मोहलत मिलती रही ।

गुजरता रहा कारवां ,  
            राह-ऐ-ज़िंदगी में ,

अपनो से अपनी सी , 
             दौलत मिलती रही ।

भिंगोता रहा बरसता रहा,
                     वो नूर बनकर ,

एक निग़ाह नूर की ,
               यूँ रहमत मिलती रही ।

 रही सामने मंजिल, 
           जो राह निग़ाहों में ,

"निश्चल"चाहत को , 
         यूँ हसरत मिलती रही ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6(131)


चाहत/चाह/प्रेम
हसरत/कामना

अपनो में पहचान मिले ।

719
मान मिले सम्मान मिले ।
अपनो में पहचान मिले ।

     रहें सदा नयनों के आंगे ,
     चरणों में चाहे स्थान मिले ।

हार चलूँ अपनो से हरदम ,
रिश्तों में न अभिमान मिले ।

      न रहे पराजित मान कोई ,
      स्व से स्वयं सम्मान मिले ।

 "निश्चल" रहे न अहमं कोई ,
  प्राणों में ऐसी आन मिले ।

     ...विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(130)

एक मीठी सी छुअन है ।

718
एक मीठी सी छुअन है ।
बौराया सा ये मन है ।

 सुगंध उठे है बसंती  ,
 पुलकित सा ये तन है ।

 ये मधु मास अविनि का ,
आगत बसंत आगमन है ।

ऋतु राज छाया मौसम पे ,
मोहित वसुधा हर कन है ।

चूनर ओढ़ी धानी परिधानी ,
शृंगारित धरा पल छिन है ।

... विवेक दुबे"निश्चल" @..
डायरी 6(129)


माँ तेरे आँचल की

717a
ओ माँ तेरे आँचल की ,
 हर पुरानी याद आती है ।

चुने जो फूल वास्ते मेरे , 
वो हर निशानी याद आती है ।

मैं कैसे कहूँ के ,
है नही सामने अब तू मेरे ,

मेरी साँसों में हर धड़कन ,
 लेकर तेरी सुहानी याद आती है ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6 (128a)

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...