सोमवार, 17 जुलाई 2017

वक़्त




       वक़्त....
 मेरी शक्ल-ओ-सूरत को,
 वक़्त ने कुछ इस तरह बदल दिया ,,
 जो भी मिला उस ने मेरे वक़्त को,
 उसी वक़्त ही भांप लिया ,,
         .....विवेक दुबे "विवेक"©...

पिता


नेहदूत पिता

मनचाहा बरदान मांग लो ।
अनचाहा अभय दान माँग लो ।।
उसके होंठो की मुस्कान माँग लो ।
जीवन का संग्राम माँग लो ।।
सारा पौरुष श्रृंगार माँग लो ।
साँसों से प्राण माँग लो ।।
बस हँसते हँसते हाँ ।
कभी न निकले ना ।।
कुछ ऐसा होता है पिता ,
क्या हम हो सकेंगे कभी कहि ,
अपने इस ईस्वर के आस पास ,,
तब शायद पिता को समझ सकें कुछ हम भी ,,,
...विवेक दुबे "विवेक""©.....


मेरे पिता

बरगद से विशाल पिता।
हर मुश्क़िल की ढाल पिता ।।
ख़ुश है हर हाल पिता ।
कहे न दिल का हाल पिता ।।
हर मुश्क़िल का संबल पिता ।
निर्बल का आत्मबल पिता ।।
कभी धूप कभी छांब पिता ।
मुश्किल में न खिज़ा पिता ।।
हर मुश्किल से जीता ।
पिता हर दुःख पीता पिता ।।
हलाहल कंठ थामता पिता ।
शिवः सामान नीलकंठ पिता ।।
बस खुशियाँ बाँटता पिता ।
तुम शुभांकर "नेहदूत" पिता ।।
तुम्हे शुभकामनाये, मैं क्या दूँ पिता ।
तेरे चरणों में रहे, सदा मेरा ध्यान पिता ।।
......विवेक दुबे "विवेक"©...
Blog 17/7/17

देखो देखो


 तैल देखो तेल की धार देखो
कुर्सी की दोधारी तलवार देखो
सहो सब अत्याचार देखो
 होता हर अत्याचार देखो
एक वोट की कीमत पर
संसद सत्र का चित्रहार देखो
देखो देखो यह लोकतंत्र का
 व्यबहार देखो
 इनका शिष्टाचार देखो
 प्रजातन्त्र के मंदिर का हाल देखो
      ....विवेक दुबे "विवेक"©...

माँ


आतंक के साये में तू सिसक रही माँ।
सुलग रही छाती तेरी धधक रही माँ ।
तेरे वारिसो की रोटियां सिक रही माँ।
आजाद भगत सुभाष फिर जनना होगा माँ।
तब ही कोटि कोटि जन का भला होगा माँ।
 आजादी का अर्थ हरा भरा होगा माँ।
     .....विवेक दुबे "विवेक"...

शौकिया शायर


हम तो शौकिया शायर ,
बस है दिल बहलाते ।
बजह बस इतनी सी ,
के पहले बच्चे पाले ।
....         या ,
शायरी बाजार उछालें ।
अच्छे अच्छे शायरों को ,
देखा पड़ते पेट के लाले ।
 बाद मारने के जिनके ,
 होते याद-ऐ-मुशायरे ।
 औलादो को जिनकी ,
  पड़े जान के लाले ।
       .....विवेक दुबे "निश्चल@"...


मातृ भूमि


हे मातृभूमि तुझे प्रणाम ।
वीर शहीदों से ही हो मेरे काम ।।
मैं भी आ जाऊँ माँ तेरे काम ।
तेरी सीमाओं का रक्त से अपने अभिषेक करूँ ।।
तेरी माटी को अपने शीश धरूँ ।
प्रण प्राणों से हो रक्षा तेरी ऐसा एक काम करूँ ।।
तुझको तकती हर बुरी नजर के सीने में बारूद भरूँ ।
हे मातृ भूमि तुझे प्रणाम करूँ ।।
वीर शहीदों जेसे मैं भी कुछ काम करूँ ।
 तेरे कदमो में अपने प्रण प्राण धरूँ ।।
       .....जय हिन्द ......
         .....विवेक दुबे "विवेक"....

ईमान


ईमान बिका
बिक रहे ज़मीर
ख़ुदा भी हैरान है
अब तो
उसको भी बेचने में
नही कर रहा
कोई कही कमी
....विवेक दुबे "विवेक"©....

मेरा शहर

ज़ख्म आ मिले है अब मेरे शहर से ।
 दर्द जाते नही हैं अब मेरे शहर से ।

दहशत ही बाँकी है अब मेरे शहर में ।
 खो सा गया चैन है अब मेरे शहर से ।

नफ़रतों की अँधी है अब मेरे शहर में ।
रहतीं दूर खुशियाँ है अब मेरे शहर से। 

उजियारे आते नही हैं अब मेरे शहर में। 
अँधियारे जाते नही हैं अब मेरे शहर से।

  ..... विवेक दुबे "निश्चल"@.....





ताशकंद


ताशकंद भारत का लाल जो गया ।
लौट न सका वापस वो बही सो गया ।
जीत कर भी जीत का अफ़सोस रह गया ।
काश जीत के हालात क़ायम होते।
आज हालत-ऐ-हिन्द कुछ और होते।
  आज यूँ बेबजह गोलियां न चल रही होती ।
जो चलती गोलियां तो उनकी कोई बजह होती।
   ....विवेक दुबे "विवेक"©....
Blog 27/7/17


माँ


माँ बस नाम ही काफी है
कोई परिभाषा नहीं
माँ तेरे नाम की
तू तो राधा की भी बैसी ही थी
जैसी थी माँ तू श्याम की
.....विवेक दुबे "विवेक"©.....

बोलो श्रीमान


 बोलो श्रीमान .....
नया जमाना इसमें
दिल का नहीं कोई मुकाम
मतलब की दुनिया सारी
आपनी अपनी लाचारी
अपने मतलब की खातिर
कर रहे जमीर को कुर्वान
सच्चे झूठे का भेद नहीं अब
अब झूठ हुआ सच सामान
माया का चक्कर ऐसा छाया
बिक गए अच्छे अच्छो के ईमान
डूब गई वफादारी
कत्ल हुए हक़ और ईमान
क्या मैंने यह सब
सत्य कहा श्रीमान...
......विवेक दुबे "विवेक"©.....


हुनर


हुनर सिर्फ वो नहीं
जो लेना जाने .....
हुनर वो है ,,
जो देना जाने .....
....विवेक दुबे "विवेक"©.......


माँ


रिश्ते तो दुनियां में है बहुत
हर रिश्ते पर चढ़ी
कही न कही स्वार्थ की
सुनहरी परत
माँ सबसे जुदा
निस्वार्थ माँ का सिलसिला
.....विवेक दुबे "विवेक".....

ज़िन्दगी




कभी कभी कितनी उदास जिन्दगी.....
अपनों से बहुत दूर होती जिन्दगी....
खुद से ही नाराज जिन्दगी...
गैरो में ख़ुशी तलाशती जिन्दगी ????
  कुछ यही मेरी ज़िन्दगी ...
  क्या यही तेरी ज़िन्दगी ?
....विवेक दुबे "विवेक"©......


माया


 डुबाये रख भुलाए रख सपनों को सजाए मत ।
 होना है वो होता है तू भाग्य को झुठलाए मत  ।।
 
 माया सब माया की,कीमत नही काया की ।
 संग चले जो माया , जरूरत नही छायाँ की
  .... विवेक दुबे "विवेक"© ...

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...