इतना ही कर्ज़ रहा ।
के मैं बे-अर्ज़ रहा ।
निभाता रहा रिश्ते ,
यह मेरा फ़र्ज रहा ।
..
बदलता रहा तासीर ,
यह कैसा मर्ज़ रहा ।
आया नही नज़र जो ,
अश्क़ निग़ाह दर्ज रहा ।
हर ख़ुशी की ख़ातिर ,
हंसता एक दर्द रहा ।
हर एक मुब्तसिम लब ,
असर बड़ा सर्द रहा ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
तबस्सुम/मुब्तसिम/मुस्कान
डायरी 6(55)
के मैं बे-अर्ज़ रहा ।
निभाता रहा रिश्ते ,
यह मेरा फ़र्ज रहा ।
..
बदलता रहा तासीर ,
यह कैसा मर्ज़ रहा ।
आया नही नज़र जो ,
अश्क़ निग़ाह दर्ज रहा ।
हर ख़ुशी की ख़ातिर ,
हंसता एक दर्द रहा ।
हर एक मुब्तसिम लब ,
असर बड़ा सर्द रहा ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
तबस्सुम/मुब्तसिम/मुस्कान
डायरी 6(55)