सोमवार, 13 मार्च 2017

हम तुम एक जैसे






कैसे को कहूँ कैसे 
 तुझे अच्छा न कहूँ तो
 तुझे बुरा कहूँ कैसे 
 मैं हूँ तू भी है बैसे
   .... विवेक ...



































तुम


तुम जो मेरे हक़ में दुआ करती हो ।
 मेरी बलाएं अपने नाम करती हो ।
 उठाती हो दुआ में जब भी हाथ अपने ,
 जहन में चेहरा मेरा भी साथ रखती हो ।






,,
हो ।
    ..... विवेक ....

खुद से द्वन्द


खुद से द्वन्द

ख़ुद का ख़ुद से द्वन्द था ।
पर थोडा सा प्रतिबंध था ।
चलता था उजियारों संग वो ,
फिर भी अँधियारों का संग था ।
   .... विवेक ...

नारी शक्ति


----- नारी शक्ति को समर्पित दो शब्द _____
---
दूर दूर है तू हे आकाश

 धरा है तू हे तू हर दम
पास पास साथ साथ

 गिरा बुलंदियों से जब भी कोई
  आया बस और बस तेरे ही पास

 सहज लिया अपने आँचल में
 देकर अपना विश्वास

 पाकर आश्रय तेरी कोख का
 छू गया नन्हा बीज भी आकाश
  ....... विवेक .......

बचपन


आओ कुछ शरारत हो जाए ।
 पचपन फिर बचपन हो जाए ।।
वो कच्ची अमिया ,बो मिटटी की गुड़िया ।
 एक पल रूठे अगले पल हंस जाएँ ।।
  सारी यादे ताज़ा हो जाए।
 पचपन फिर बचपन हो जाए ।।
    ...... विवेक ......
9/3/17

बधाई


ऐतिहासिक जीत पर मोदी जी को समर्पित 4 पंक्तियां
-------
यह जीत एक संग्राम है
 अभी नही विश्राम है
  चलता रह यूँ ही तू
 सकल विश्व तेरा मुकाम है
........विवेक दुबे ..... ...
   रायसेन म.प्र .



अभी तो यह झांकी है ।
    अच्छे दिन बाँकी है ।
 पहुंचा है जहाज़ समन्दर में अब ,
 तूफानों से टकराना बाँकी है ।
    ...... विवेक.....

  पांच में से एक ही काफी है ।
 पाजामा नही तो नाड़ा ही काफी है ।
  ..... विवेक ....

पांच में से चार गए
शेष रहा बस एक
 अब खेल बेधड़क बाजी अपनी
 गए भाग सब अपने अपने
पत्ते फैंक
   ...... विवेक ....

उम्र


उम्र नही रूकती रोके से ।
असर दिखती है धोके से ।
  .... विवेक ...

राजनीति


परिंदे को परिंदे की पहचान है
 चहुँ और मच रहा घमासान है
 कतर रहे पर एक दूजे के
 बनती इससे ही इनकी शान है
  .
 बजाते सब ढपली अपनी अपनी
 न सुर है न कोई ताल है
  भूल रहे सभ्य सभ्यता सब अपनी
 फिर भी खुद को खुद पर नाज़ है
.
 कहते जीत रहे है बस हम ही
 गंजों को अपने नाखूनों पर नाज़ है
 जैसा मातृ भूमि का था कल
 बैस ही मातृ भूमि का आज है
  ......विवेक....

नोट बन्दी


तुम तो कहते थे फंडिंग रुक जाएगी ।
 आतंक की सुइयाँ थम जाएँगी ।
 आतंक की जड़ अब कट जाएगी ।
 पर अब तो वो अंदर तक घुस आए है ।
पैसिंजर ट्रेन मे ब्लास्ट कराए है ।
 घर अंदर हथियारों के भण्डार लगाए है ।
हम तीन अंगुलियाँ मोड़ अपनी और एक तुम्हे दिखा ।
एक यही सवाल उठाए हैं यह कैसे अच्छे दिन आए हैं ।
     ........ *विवेक* ......


होली


----- होली की शुभ कामनाएं चुनावी परिदृष्य मे ------
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खूब चढ़े थे रंग फ़ागुन के
 चुनावो के इस मौसम मे ।
था हर कोई वादों की भंग घोल रहा ।
 था हर कोई भर भर पेल रहा ।
कोई रंग डाले रंग विरंगे नारों के ।
कोई खेले तंज भरे गुब्बारों से ।
थी सबकी मस्ती अपनी अपनी ।
 अब कोई चूर हुआ विजय उन्मादों मे ।
कोई लस्त पड़ा थके हुए हुरियारों मे ।
कोई दो रंग एक संग घोल रहा ।
वोटर तेरा अब नही कोई मोल रहा ।
    ....... विवेक .....

बिन छायाँ


बिन छायाँ के विश्राम नही होते ।
 बिन आशीषों के काम नही होते ।
 न हो हाथ पीठ पर अपनों का ,
 तो विजयी समर संग्राम नही होते ।
    ,...... विवेक ......

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...