चकित हुआ चलकर ,
मोन तले बैठा सन्नाटा ।
आते कल की आशा में,
जीवन कटता ही पाता ।
ज़ीवन के इस पथ पर ,
ज़ीवन एकाकी आता ।
खोता है कुछ पाकर ,
खोकर फिर पा जाता ।
गूंध चला आशाओं को ,
ले अभिलाषाओं की गाथा ।
आश्रयहीन रहा नही कभी ,
देता जाता आश्रय वो दाता ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
मोन तले बैठा सन्नाटा ।
आते कल की आशा में,
जीवन कटता ही पाता ।
ज़ीवन के इस पथ पर ,
ज़ीवन एकाकी आता ।
खोता है कुछ पाकर ,
खोकर फिर पा जाता ।
गूंध चला आशाओं को ,
ले अभिलाषाओं की गाथा ।
आश्रयहीन रहा नही कभी ,
देता जाता आश्रय वो दाता ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....