रविवार, 9 जून 2019

ज़ीवन

चकित हुआ चलकर ,
 मोन तले बैठा सन्नाटा ।

 आते कल की आशा में,
 जीवन कटता ही पाता ।

 ज़ीवन के इस पथ पर ,
 ज़ीवन एकाकी आता ।

 खोता है कुछ पाकर ,
 खोकर फिर पा जाता ।

 गूंध चला आशाओं को ,
 ले अभिलाषाओं की गाथा ।

 आश्रयहीन रहा नही कभी ,
 देता जाता आश्रय वो दाता ।

 ..... विवेक दुबे"निश्चल"@....

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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