कुछ खास नहीं कवि पिता की संतान हूँ । ..... निर्दलीय प्रकाशन भोपाल द्वारा बर्ष 2012 में "युवा सृजन धर्मिता अलंकरण" से अलंकृत। जन चेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति पीलीभीत द्वारा 2017 श्रेष्ठ रचनाकार से सम्मानित कव्य रंगोली त्रैमासिक पत्रिका लखीमपुर खीरी द्वारा साहित्य भूषण सम्मान 2017 से सम्मानित "निश्चल" मन से निश्छल लिखते जाओ । ..... . (रचनाये मौलिक स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित .)
शनिवार, 16 जनवरी 2016
कभी गुलशन सी गुलज़ार ज़िंदगी
कभी गुलशन सी गुलज़ार ज़िंदगी ।
कभी लगती एक त्यौहार ज़िंदगी ।
कभी मुहँ मांगी मुराद ज़िंदगी ।
कभी आँसू से सरोबार ज़िंदगी ।
कभी गम का समन्दर ज़िंदगी ।
कभी अपनों का प्यार ज़िंदगी ।
कभी रिश्तों का दुलार ज़िंदगी ।
कभी रिश्तों की दुत्कार ज़िंदगी ।
एक यह भी ज़िंदगी ।
एक वो भी ज़िंदगी ।
एक आह ज़िंदगी ।
एक वाह ज़िंदगी ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@....
सब कुछ कहतीं आंखे
आशा के गीत सुनाती आँखें ।
खुशियों के भाव सजतीं आँखें ।
सोच खुश हो जातीं आँखें ।
जो कुछ पा जातीं आँखें ।
मोती फ़ूल झराती आँखें।
सब कह जातीं आँखे ।
यादों मे खो जातीं आँखे ।
भर तर हो जातीं आँखे ।
खुशियों से मुस्काती आँखे ।
जब स्वप्न सजाती आँखे ।
ठेस लगी सुनी हो जातीं आँखें ।
निराशा बादल से बरस जातीं आँखें ।
यह आँखे तेरी आँखे ।
यह आँखे मेरी आँखें ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@..
लिखो लिखो एक गीत लिखो
लिखो लिखो एक गीत लिखो
लिखो निग़ाहें प्रियतम की
या प्रियतम मन मीत लिखो
लिखो लिखो एक गीत लिखो
लिख दो आहें प्रियतम की
या प्रियतम की प्रीत लिखो
लिखो लिखो एक गीत लिखो
लिखो विरह वेदना प्रियतम की
या प्रियतम संग मधु मास लिखो
लिखो लिखो एक गीत लिखो
लिख दो तुम वो गुजरे पल
आये नहीं थे जो कल
आज मधुर मिलन की आस लिखो
मधुर चांदनी संग अहसास लिखो
लिखो लिखो एक गीत लिखो
...विवेक...
...
ब्लॉग पोस्ट 16/1/16
शुक्रवार, 15 जनवरी 2016
ओढ़ कर निकलता हूँ घर से
ओढ़ कर निकलता हूँ घर से
जिम्मेवारियों का कफ़न
यूं तो हमें भी खूब आता है
शायरी का यह फ़न
मज़बूर हूँ घर देखूं या
मुशायरे करूं
हमने अक़्सर शायरो को
फ़ांके करते देखा है
पैर में हैं टूटी चप्पल
कांधे पर एक थैला है
शायर कल भी अकेला था
वो तो आज भी अकेला है
पडतें है तब उसे बड़ी शान से
जब वो दुनियां को अलविदा बोला है
.....विवेक....®
तृष्णा मन की
तृष्णा मन की आज,
उजागर कर दी,आँखों ने ।
सकल ब्रम्हांड सरीखी,
झलकी इन आँखों से ।
.
प्रारम्भ शून्य अंत शून्य है ,
तुझमे ही रहना है ।
बस तुझमे ही तो खोना है ।
.
मिथ्या सब कुछ है यह ,
जगत सपन सलोना है ।
निकल शून्य से फिर,
शून्य ही फिर होना है ।
.....विवेक.....
शब्दों की मार
देखो यह शब्दों की मार ,
शब्दों से होते शब्दों पर वार ।
उलट पलट कर, पलट उलट कर ,
होते नित नये तीर तैयार ।
व्यंग धनुष पर, भाषा के तरकश से ,
यह तीर करें , नित नये प्रहार ।
कभी शब्द बाण चलें ऐसे ,
मधुवन से पुष्प झड़े जैसे ।
कभी शब्द बाण बने ऐसे ,
सावन की बदली बरसे जैसे ।
कभी काम बाण बन मन हरते ऐसे,
प्रणय मिलन की बेला आई जैसे ।
कभी शब्द बाण ने किया प्रहार,
मन कांप गया, सागर में चढ़ा ज्वार ।
कभी व्यंग धनुष ने संधान किया,
तीक्ष्ण शब्द को कमान किया ।
छोड़ दिया फिर साध लक्ष्य को,
कर अग्नि वर्षा,मन घायल करने को।
यह शब्दों की माया नगरी ,
कभी बिखरी कभी संवरी ।
शब्दों में ही बसती दुनियां ,
हमरी तुम्हरी, तुम्हरी हमरी ।
....विवेक....
मंगलवार, 12 जनवरी 2016
देखो उस घाटी को
देखो उस माटी को
उस फूलों की घाँटी को
देवो की उस थाती को
खिलते थे गुलशन कदम कदम
अब चलतीं गोलियां दन दन
उजड़ी बगिया सूने आँगन
बेघर हुए सारे ब्रम्हाण
आँखे मूंदे सारे दल
काठ की हांड़ी दाल चढ़ी
स्वार्थ की रोटी खूब पकी
अब न जागे फिर कब जागेंगे
क्या उनका हक़ दिलवा पाएंगे
तू फूल कमल तुझसे क्या चाहेंगे
वो वापस घर कब जायेंगे
....विवेक....
वक़्त बदलते देखा है
हाँ वक़्त बदलते देखा है ।
सूरज को ढ़लते देखा है ।
चन्दा को घटते देखा है ।
तारों को गिरते देखा है ।
हाँ वक़्त बदलते देखा है ।
हिमगिरि पिघलते देखा है ।
सावन को जलते देखा है ।
सागर को जमते देखा है ।
नदियां को थमते देखा है ।
हाँ वक़्त बदलते देखा है ।
खुशियों को छिनते देखा है ।
खुदगर्जी का मंजर देखा है ।
अपनों को बदलते देखा है ।
हाँ वक़्त बदलते देखा है ।
नही कोई दस्तूर जहां ,
ऐसा दिल भी देखा है ।
नजरों का वो मंजर देखा है ।
उतरता पीठ में खंजर देखा है ।
हाँ वक़्त बदलते देखा है ।
.....विवेक....
कड़े फैसले
आज कड़े फैसले लेने होंगे,
कुछ अनचाहे निर्णय लेने होंगे।
करते जो छद्म वार ,बार बार हम पर ।
मांद में घुस कर, वो भेड़िये खदेड़ने होंगे ।
आज कड़े फैसले .....
अब न समझो ,न समझाओ।
अब तो ,आर पार हो जाओ।
जाकर दुश्मन के द्वार,
ईंट से ईंट बजा आओ।
आज कड़े....
कितना खोयें अब हम,
अपनी माँ के लालों को।
कितना पोछें और सिंदूर हम,
अपनी बहनों के भालों से।
सूनी आँखे ,सुना बचपन,
ढूंढ रही पापा आएंगे कल।
देखो उस अबोध बच्ची को,
कांधा देती शहीद पिता की अर्थी को।
आज कड़े ....
यूं चाय पान से कोई माना होता ।
तब धनुष राम ने न ताना होता ।
चक्र कृष्ण ने भांजा होता ।
बन जाओ राम कृष्ण तुम भी।
जागो अब भी ,चेतो अब भी देर नहीं
उठा धनुष चढ़ा प्रत्यंचा, दे टंकार कहो ,
दुश्मन तेरी अब खैर नहीं ।
आज कड़े फैसले लेने होंगे ....
....विवेक......
विवेकानन्द
देव दूत वो आया था
शांति सन्देश संग लाया था
अतीत गौरबशाली आर्य सभ्यता का
वर्तमान में लाया था
दे कर शून्य की व्याख्या
जगत को सत्य दिखाया था
परम हंस को वो शिष्य नरेंद्र
विवेकानंद कहलाया था
शत शत नमन
युग पुरुष विवेकानन्द।
. .....विवेक.....
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कलम चलती है शब्द जागते हैं।
सम्मान पत्र
मान मिला सम्मान मिला। अपनो में स्थान मिला । खिली कलम कमल सी, शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई । शब्द जागते...