ठहर जरा, इनायत का इतना करार है ।
क्युं निग़ाहों को,निग़ाहों का इंतज़ार है ।
है सँग निग़ाह, संग सा सख्त जो ,
क्युं दिल को, उसका इख़्तियार है ।
जला है जो, मेरे वास्ते अंधेरों में ,
क्युं यही उसका, इश्क़ इक़रार है ।
सुखाता रहा , आब आँख में अपनी ,
क्युं करता नही ,दर्द अपना इज़हार है ।
चलता है जो, साथ सख़्त राहों पर ,
क्युं मंजिल का, वो भी तलबगार है ।
लिखता रहा , लफ्ज़ वास्ते जिसके,
क्युं सुनता,वो मुझे मेरे अशआर है ।(दोहे)
करती रही , बयां,हालात को सूरत ,
"निश्चल" नही , चेहरा-ए-असरार है ।(रहस्मय)
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
क्युं निग़ाहों को,निग़ाहों का इंतज़ार है ।
है सँग निग़ाह, संग सा सख्त जो ,
क्युं दिल को, उसका इख़्तियार है ।
जला है जो, मेरे वास्ते अंधेरों में ,
क्युं यही उसका, इश्क़ इक़रार है ।
सुखाता रहा , आब आँख में अपनी ,
क्युं करता नही ,दर्द अपना इज़हार है ।
चलता है जो, साथ सख़्त राहों पर ,
क्युं मंजिल का, वो भी तलबगार है ।
लिखता रहा , लफ्ज़ वास्ते जिसके,
क्युं सुनता,वो मुझे मेरे अशआर है ।(दोहे)
करती रही , बयां,हालात को सूरत ,
"निश्चल" नही , चेहरा-ए-असरार है ।(रहस्मय)
... विवेक दुबे"निश्चल"@...