रोता है अक्सर, खामोशी से कोई ।
पीता है हर दर्द, हँस कर कोई ।
छुपाता है आँसू, निगाहें चुराकर ,
कलेजा पिता सा, पाता नही कोई ।
....
चाहतें रातों से ,उसकी भी कोई ।
हसरतें उजालों से, उसकी भी कोई ।
जो रह गया, खामोश ही हर दम ,
दुनियाँ में ,पिता सा है नही कोई ।
.....
खोकर बहुत कुछ ,खोता नही ,
खाकर ठोकरें, तेरी ख़ातिर कोई ।
घुटता है जो, दुनियाँ की भीड़ में ,
पिता सा नही, धीर गम्भीर कोई ।
....
"निश्चल" रहे हर दम, जो कोई ,
चलता रहे हर पल ,जो कोई ।
तोड़कर सितारे, फ़लक से ,
दामन में , भरता जो कोई।
..
वो दुनियाँ में पिता है ,
बस एक वो ही वो ही ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
पीता है हर दर्द, हँस कर कोई ।
छुपाता है आँसू, निगाहें चुराकर ,
कलेजा पिता सा, पाता नही कोई ।
....
चाहतें रातों से ,उसकी भी कोई ।
हसरतें उजालों से, उसकी भी कोई ।
जो रह गया, खामोश ही हर दम ,
दुनियाँ में ,पिता सा है नही कोई ।
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खोकर बहुत कुछ ,खोता नही ,
खाकर ठोकरें, तेरी ख़ातिर कोई ।
घुटता है जो, दुनियाँ की भीड़ में ,
पिता सा नही, धीर गम्भीर कोई ।
....
"निश्चल" रहे हर दम, जो कोई ,
चलता रहे हर पल ,जो कोई ।
तोड़कर सितारे, फ़लक से ,
दामन में , भरता जो कोई।
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वो दुनियाँ में पिता है ,
बस एक वो ही वो ही ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
खुशियाँ उसकी ,
हद नही बे-हद है ।
औलाद की खुशी पर ,
वो कितना गदगद है ।
औलाद से अपनी ,
उसे इतना ही मतलब है ।
सोचता है वो बस यही ,
मेरे गुजरे कल से ,
आज इसका बेहतर है ।
खुशियाँ उसकी ,
हद नही बे-हद है ।
औलाद की खुशी पर ,
वो कितना गदगद है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
पिता
Bolg post 17/6/18
डायरी 4