शनिवार, 16 जून 2018

पिता

रोता है अक्सर, खामोशी से कोई ।
 पीता है हर दर्द, हँस कर कोई ।
 छुपाता है आँसू, निगाहें चुराकर ,
 कलेजा पिता सा, पाता नही कोई ।
.... 
चाहतें रातों से ,उसकी भी कोई ।
हसरतें उजालों से, उसकी भी कोई ।
 जो रह गया, खामोश ही हर दम  ,
 दुनियाँ में ,पिता सा है नही कोई ।
.....
 खोकर बहुत कुछ ,खोता नही  ,
 खाकर ठोकरें, तेरी ख़ातिर कोई ।
 घुटता है जो, दुनियाँ की भीड़ में ,
 पिता सा नही, धीर गम्भीर कोई ।
  ....
 "निश्चल" रहे हर दम, जो कोई ,
  चलता रहे हर पल ,जो कोई ।
  तोड़कर सितारे, फ़लक से ,
  दामन में , भरता जो कोई।
..
    वो दुनियाँ में पिता है , 
   बस एक वो ही वो ही ।

    .... विवेक दुबे"निश्चल"@..




खुशियाँ उसकी ,
हद नही बे-हद है ।

औलाद की खुशी पर ,
 वो कितना गदगद है ।

 औलाद से अपनी ,
 उसे इतना ही मतलब है ।

 सोचता है वो बस यही ,
 मेरे गुजरे कल से ,
आज इसका बेहतर है ।

खुशियाँ उसकी ,
हद नही बे-हद है ।

औलाद की खुशी पर ,
 वो कितना गदगद है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
पिता 
Bolg post 17/6/18
डायरी 4


गुरुवार, 14 जून 2018

रात सिरहाने



चल रात सिरहाने रखते है ।
उजियारों को हम तजते है ।

 दूर *गगन* में झिलमिल तारे ,
 चँदा से स्वप्न सुहाने बुनते है ।

सोई नही अभिलाषा अब भी ,
 नव आशाओं को गढ़ते है ।

 चल रात सिरहाने ...

 थकता है दिनकर भी तो ,
साँझ तले क्षितिज मिलते है ।

 नव प्रभात की आशा से ,
 तारे चँदा के संग चलते है ।

 टूट रहे अंधियारे धीरे धीरे ,
 उजियारे तम में ही मिलते है ।

 चल रात सिरहाने ...

 जीवन की हर आशा को ,
 दिनकर सा हम गढ़ते है ।

 नव प्रभातिल भोर तले ,
 दिनकर सा हम चलते है ।

 चल रात सिरहाने ...

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...


बुधवार, 13 जून 2018

अनुगामनी जीवन संगनी

रागनी तू अनुगामनी तू।
   राग तू अनुरागनी तू ।
          चारणी तू सहचारणी तू।
          शुभ तू शुभगामनी तू।
  नैया तू पतवार तू ।
  सागर तू किनार तू ।
             प्रणय प्रेम फुहार तू ।
            प्रकृति सा आधार तू ।              
 प्रीत का प्रसाद तू ।
 सुखद सा प्रकाश तू ।     
           खुशियों का आकाश तू।
          "विवेक" का विश्वास तू ।
   सँग तू साथ तू ,साँस साँस तू ।
   हृदय भरा "निश्चल" उल्लास तू ।
          सजीव जीवन संगनी तू ।
          सुखी जीवन आधार तू।
       .. विवेक दुबे "निश्चल"©,...


कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...