शनिवार, 19 मार्च 2016

कुछ भाव मन से मन के


न देखना अब कभी तू मुझे उन निगाहों से ।
छलकती थीं आहें कभी जिन निगाहों से ।
चैन छीन लिया बेचैनियाँ देकर तू ने मुझे ,
होने दे बर्वाद अब मुझे अपनी ही आहों से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@


यह क़तरा क़तरा अश्क़ समन्दर सा हुआ ।
अश्क़ मेरे ग़म में खुद क़तरा क़तरा हुआ ।।
   ....



----- यह रौनकें यादों की ------
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 भोर संग खुशियों सी छा जातीं है।
 साँझ ढले तन्हाईयाँ ले आतीं हैं ।
 सिमट जातीं हैं "विवेक" ख्वाबों में फिर ,
 ख़्यालों को ख्वाबों में सजातीं हैं ।
   ...


उलझ गया हूँ अपने ही चन्द सवालों मे ।
खोजता हूँ ज़वाब तेरे सवाल से जवाबों मे ।
 मिलते हैं हर बार फिर कुछ नए सवाल ,
मेरे सवाल के तेरे उन हर जवाबों मे ।



लगा कर नैन में काजल
न करो और क़ातिल इन्हें
और जुल्म यह
गाल पर काला तिल भी है
एक अदा ही कम नही
इंतज़ाम कयामत का
मुक़म्मल है
..


भटक रहा घायल मन ,
अपनों का प्रतिकार लिए ।
प्रण प्राण जिन्हें समर्पित ,
उनका ही तृस्कार लिए ।
     ....


यह मंजर बर्वादी के
यह तन्हाईओं के आलम
तू न चल साथ मेरे
करने दे मरहम मुझे
जख़्म मेरे मेरे तरीके से

आज तन्हा मैं हूँ कल तू भी होगा ।
 वक़्त तेरे हाथ से भी फिसला होगा ।
कर सको याद तब शायद तुम भी ,
 सांथ मेरे क्या आज गुजर रहा होगा ।
      .....


ज़माने से अक़्स क्या छुपाऊँ अपने ।
 क्यों न ऐब ज़माने को दिखाऊं अपने ।।
 दिये जिस ज़माने ने यह उजाले मुझे ।
 क्यों छुपाऊँ गुनाह उस ज़माने से अपने ।।
  ...




जमीं बिछा आसमां ओढ़ता मैं ।
 खुद को खुद से जोड़ता मैं ।
 बिता वक़्त अंधेरों में अक़्सर ।
 उजालों के राज खोलता मैं ।
 बयां कर नाकामियों के किस्से ।
 कामयाबियों को पीछे छोड़ता मैं ।
 खुद को खुद से जोड़ता मैं ।
  ...


वक़्त के साथ तुम भी वक़्त बन जाओगे ।
 वक़्त संग यादों में सिमट कर रह जाओगे ।

जो संग चल न सको तो साथ कैसा,
 यादों में भी कब तक याद तुम आओगे ।


सवाल करते उससे डरता है यह मन
हर ज़वाब उसका होता है एक प्रश्न।


इस हाजिर जवाबी से ही हार रहे ।
 उनकी निगाहों में बेइख़्तियार रहे ।।


लौट कर आयेंगे कहकर गए है वो
उम्मीद का दामन थाम लिया है हमने।
 .....


गुंजित कर दो धरती अम्बर ।
भारत माता के जयकारों से ।
नही चलेंगी अब चालें उनकी ।
कह दो माता के गद्दारों से ।
     ...


रोका तो न था तुझे कभी ।
तू ही सफ़र मुक़ाम किया।
     ....


हे पयोधी तू शांत निश्चल अचल ।
सरिता तू चंचल चल छल छल ।
इठलाती बल खाती बहती जाती ।
हो आस्तित्व हीन तुझ में मिल जाती ।
   ...


सरिता तुम बहती,निष्छल मन से।
संग ले अपने,अल्लड योवन को।
मिलने सागर के ,तन से ,मन से।
ज्यो व्याकुल सजनी,पिया मिलन को।
अपने तन मन के,समर्पण से।
 मिल सागर से,होने अर्पण को।
          .....विवेक दुबे "निश्चल"@.....


कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...