बुधवार, 27 जून 2018

चिलमन


 चिलमन निगाह गहरे पड़े थे ।
  सुनसान रास्ते बिखरे पड़े थे ।

चाँदनी आगोश फ़लक के ,
इल्ज़ाम चाँद चेहरे पड़े थे ।

 रुख़सत हुआ वास्ते सुबह के ,
 सितारे असमां बिखरे पड़े थे ।

 न आई मौज दरिया की कोई ,
 जिस किनारे पे दोनों खड़े थे।

..... विवेक दुबे"निश्चल"@...

जरूरतों के अस्तर

कुछ यूँ टूटे से मकां सजाते रहे ।
जरूरतों के अस्तर लगाते रहे ।

 कुछ धूप आती रही दरारों से ,
 किनारों में खुद को छुपाते रहे ।

 सर्द मौसम उस रात का ,
 सिकुड़कर रात बिताते रहे ।

 टपकती बूंदे उधड़ी छत से ,
 हर टपक पर बर्तन लगाते रहे ।

 कटता रहा सफ़र जिंदगी का ,
 हर अस्र मंज़िल बनाते रहे ।

 चलकर भी न चला "निश्चल"
 कुछ यूँ बुत से नजर आते रहे ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

जरुरत

खुशियाँ साथ साथ चलती रहीं ।
रंजिशें बार बार बदलती रहीं ।

मुड़ते रहे साथ जरूरत के ,
जरूरतें वक़्त से बदलती रहीं ।

घुटते रहे अरमान भी कभी ,
आरजू कभी खिलती रहीं ।

फैला रहा एक दामन सा ,
मसर्रत वहाँ मचलती रही ।

लौटा नही गुजर वक़्त कभी ,
गुजरे वक़्त को जरूरत न रही ।

उठीं निगाहें फिर एक उम्मीद से ,
आते वक़्त को मुझसे जरूरत रही ।

गाता “निश्चल” नज़्म यूँ ही अक़्सर ,
नज़्म को मेरी जरूरत कभी न रही ।

….. विवेक दुबे”निश्चल”@…

मंगलवार, 26 जून 2018

आज

आज इंसान ग़ुम हो रहा है ।
 इतना मज़लूम हो रहा है ।
खा रहे वो कसमें ईमान की ,
 यूँ ईमान का खूं हो रहा है ।
 ..... विवेक दुबे"निश्चल"@.....

रविवार, 24 जून 2018

बदलते रहें

वक़्त अहसास के बदलते रहे ।
ज़िस्म सँग साँस के चलते रहे ।

थमतीं रहीं निगाहें बार बार ,
अश्क़ कोरों से अपनी ढलते रहे ।

किनारे भी रूठे रहे अक़्सर ,
दरिया भी जिनके सँग चलते रहे ।

न थे क़तरे वो शबनम के ,
अश्क़ क़तरे जमीं पलते रहे ।

लो खो रही सुबह फिर ,
सँग साँझ के चलते रहे ।

सँग सा था वो तो "निश्चल" ,
अश्क़ जज़्बात पिघलते रहे ।


....विवेक दुबे"निश्चल"@...

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...