शनिवार, 19 नवंबर 2016

रंगोली प्रकाशन



बचपन


 
 बीत गया तन ।
 रीत गया मन
ज्यों ज्यों बीता ,
बचपन बचपन ।
.
 तन की तन से अनबन ।
 मन की मन से उलझन ।
ज्यों ज्यों बीता ,
 बचपन बचपन ।
 .
ग़ुम हुआ कुछ यूँ ।
 वो नटखट तन मन ।
ज्यों ज्यों बीता ,
बचपन बचपन ।
 ........ विवेक ......

गुरुवार, 30 जून 2016

ज़िन्दगी



------------------------------------
आशाओं संग यह अभिलाषाओं से हारी है ।
 नित् नए स्वप्न सजा यह दुल्हन सी साजी है ।
 हो रहे पग , पग पग घायल घुंघरू बाँधे बाँधे ,
 घुँघरू की थिरकन पर यह घुँघरू सी बाजी है ।
 अभिलाषाओं संग यह रक्कासा सी नाची है।
     ..... v विवेक ©......

बुधवार, 8 जून 2016

जहाँ धरती अम्बर मिलते हैं


दूर क्षितिज पर जहाँ धरती अम्बर मिलते हैं ।
 जहाँ सूरज चन्दा ढलते और निकलते हैं ।
  उस मिलन बिंदु पर एक नीली रेखा है,
 ले चलूँ तुझे वहाँ जहाँ न कोई सीमा रेखा है ।
     ..... विवेक © .....

हाथों के अंज़ाम बदलते हैं


वक़्त नही बदलता इंसान बदलते हैं ।
पाषाण वही रहता भगवान बदलते हैं ।
होतीं हैं लकीरें ----- हाथों में सबके ,
फिर भी हाथों के अंजाम बदलते हैं ।
... v विवेक © ....

सोमवार, 6 जून 2016

इंसानो में भगवान ढूँढता हूँ


1--
इंसानो में भगवान ढूँढता हूँ ।
 दुनियाँ में ईमान ढूँढता हूँ ।
 लूटाकर में खुशियाँ सब अपनी ,
 चेहरों पर मुस्कान ढूँढता हूँ ।
    .... विवेक ....
------------------------
2--
छूट रहा है कुछ साँझ ढले ।
भूल रहा हूँ कुछ भोर तले ।
जीवन की इस आपाधापी में ,
कैसे इस मन को ठौर मिले ।
.... विवेक .......
-------------------
3---
हम वो किताब ढूँढते रहे ।
रिश्तों के हिसाब ढूँढते रहे ।
मुक़द्दर में नहीं थे जो रिश्ते ,
उन रिश्तों के नक़ाब ढूँढते रहे ।
    .... विवेक ...

रविवार, 5 जून 2016

सामने है सर्व नाश फिर भी नही आती तनिक भी लाज


कट रहे वन जन हुए सघन ।
 थम गया जल ,
बहता था जो कल कल , कल  ।
 कहता है मानव विकास हुआ ,
 पर प्रकृति का तो सर्व नाश हुआ ।
 माना मानव ने गगन को छुआ ,
 पर धरा को धूल धुएं से भर दिया ।
 क्या पाया था क्या देकर जाओगे ,
 इस महा विनाश से सोचो कैसे बच पाओगे ।
 जब वसुंधरा को श्रृंगार रहित कर ,
 विधवा सा कर जाओगे ।
    ..... विवेक .....
-------
विश्व पर्यावरण दिवस पर दो शब्द ....

शनिवार, 28 मई 2016

अँधेरों से अँधेरे छीन लें हम जरा


अंधेरों से अँघेरे छीन ले हम जरा ।
चराग़-ए-रौशनी बाँट दे हम जरा ।
 वक़्त से न जीत पाएंगे जानते है हम ।
 वक़्त से ही वक़्त को सींच लें हम जरा ।
--------
 न थमें कदम मुश्किलो में कभी ।
 कदम-दर-कदम मंज़िलें नाप लें जरा
 हसरतें न करें मुक़ाम हम कभी ,
 अपने होंसलों को भी भांप लें जरा ।
   ..... विवेक ......

बुधवार, 25 मई 2016

साथ चले जो तू ...


साथ चले जो तू चाँद फ़तह कर लूँ मैं ।
तेरे ही सहारे से अम्बर को जमीं कर दूँ मैं  ।
तेरी ही दुआओं से पर्वत बाँहों में भर लूँ मैं ।
तेरे ही इरादों से रुख हवाओं के पलट दूँ मैं ।
तेरी ही पनाहों में सागर जल अंजुली भर लूँ मैं ।
साथ तेरा जो हो खुद को सिकन्दर कर लूँ मैं ।
     .... विवेक ...

जीवन मृत्यु से हारा है


शांत निशा संग अँधियारा है
 दिनकर संग उजियारा है
 जीवनपथ पर चलते चलते
 जीवन मृत्यु से हारा है
    ..... विवेक ..

नहीं परवाह


नहीं परवाह मान की सम्मान की ।
फ़िक्र है मुझे बस स्वाभिमान की ।
मैं नहीं मांगता दुनियाँ से कुछ भी ,
उसे तो फ़िक्र है दोनों जहान की ।
...... विवेक .....

बुधवार, 20 अप्रैल 2016

शब्दों की मार


देखो यह शब्दों की मार ,
शब्दों से होते शब्दों पर वार ।
उलट पलट कर, पलट उलट कर ,
होते नित नये तीर तैयार ।
 व्यंग धनुष पर, भाषा के तरकश से ,
 यह तीर करें , नित नये प्रहार ।
 कभी शब्द बाण चलें ऐसे ,
 मधुवन से पुष्प झड़े जैसे ।
 कभी शब्द बाण बने ऐसे ,
 सावन की बदली बरसे जैसे ।
 कभी काम बाण बन मन हरते ऐसे,
 प्रणय मिलन की बेला आई जैसे ।
कभी शब्द बाण ने किया प्रहार,
 मन कांप गया, सागर में चढ़ा ज्वार ।
 कभी व्यंग धनुष ने संधान किया,
 तीक्ष्ण शब्द को कमान किया ।
छोड़ दिया फिर साध लक्ष्य को,
कर अग्नि वर्षा,मन घायल करने को।
 यह शब्दों की माया नगरी ,
 कभी बिखरी कभी संवरी ।
 शब्दों में ही बसती दुनियां ,
हमरी तुम्हरी, तुम्हरी हमरी ।
     ....विवेक....

गुरुवार, 24 मार्च 2016

यहाँ फ़ागुन की वो बयार नही


यहाँ फ़ागुन की वो बयार नही ।
बरसते रंगो से कोई प्यार नही।
देख हुरियारे करते हंसी ठिठोली,
सखियों की टोली नजर आती नही ।
--------
सजनी साथ नही भौजी पास नही ।
हम बसे बिदेश घर की आस नही ।
किस संग कैसे खेले होली अब,
सूना यहाँ सब रंगो का मधुमास नही।
----
यहाँ तो नया जमाना नया चलन ।
रंगो से होती सबको बड़ी जलन ।
मिला हाथ से हाथ कहा हेल्लो ,
आत्मीयता से गले लगाने का नही चलन ।
----
...... विवेक ......

बुधवार, 23 मार्च 2016

होली


अब की होली,तब की होली ,
  जब की होली,याद नहीं अब ।
 कब खेली थी, हमने तुम संग होली ?
भूल गए अब तुम,ओ हमजोली
इस होली तुम, किस की हो...लीं .
   ....विवेक..
ब्लॉग पोस्ट 23,/3/16
,

डोले मन कुछ बोले मन
श्याम संग झूमें राधा मन
भर पिचकारी मारें श्याम जी
तर होत राधा तन मन
.. विवेक ...
.
उस मौके को गवां न देना
रंग देना चाहे न रंग देना
जो आयें सामने होली पर हम
 बस जरा सा तुम मुस्कुरा देना

अपने ही रंग में मोहे रंग देना
 तू मुझे मुस्कुराते नयन देना
 जज़्ब कर लूंगा मुस्कुराहट को
 बस अपने अधरों पर थिरकन देना
 .
  जा होली जैसे ही हमने
 भौजी गाल गुलाल लगाई
 वो कुछ कुछ शरमाई
 यादो से आँख मिलाई
  हमसे आंख चुराई
.
न रहे ख़लिश कोई
अब की ऐसी होली हो
रंग भले न बरसें पानी संग
मन से मन की होली हो
रंग जाएँ फिर प्रेम रंग संग
प्रेम प्रीत संग होली हो
रंग भले न बरसें पानी संग
स्नेह रंग संग होली हो
 .
गोरे गोरे गाल .....
आज हुए लाल गुलाबी.....
ऐसी छाई खुमारी ......
झूम रही दुनिया सारी.....
आप सभी को ...
शुभ कामनाये ढेर सारी ...
हमारी .........
 

मौन निमंत्रण


मौन निमन्त्रण देती बाला को
रूप सलोनी सी हाला को
पूरी की पूरी मधुशाला को
जाम रंग सा पी जाऊँ
हो कर मदहोश आज मैं
कुछ पल और जी जाऊँ
... विवेक ...
,

ज़र्रा ज़र्रा गुलाब हो
 हर सितारा आफताब हो
 छू ले जो एक नजर तेरी
  ज़िन्दगी तुझ पे निसार हो
,
, ... विवेक ...


प्रेम रंग के रंग सजा दे ।
 सजनी मोहे अंग लगा दे ।
 रंग दे मोहे अपने रंग में ,
 खुद को तू बिसरा दे ।
     .... विवेक ..

,

होली संग तर तन मन



 नयन बिलोकत खिलत कमल  ।
 नयनाभिराम वो सुखद पल ।
 अधर धरें मदमाती थिरकन ,
 याद रहें वो पल हर पल ।
,
 मृग नैना वो चंचल चंचल ।
 पुलकित पुष्पित कोमल तन ।
 फूले टेसू अंग अंग रची सुगन्ध ,
 अहसासों के महकत मकरन्द ।
,
यह पल हर पल पल पल ।
सज गया जो ज़ीवन पल ।
 रंग गया मन तन तन मन ,
 इस होली संग तर तन मन ।
.
   ...... विवेक ....
  ,

होरी खेलन आये तोरे द्वार


================+

गोरी होरी खेलन आये तोरे द्वार ,
 खोल मन नैनों के तू द्वार ।
 -------
अंग भर दे गाल गुलाल रंग से ,
नयनों की चितवन से ,
 रंगों की कर तू बौछार ।
 होरी खेलन आए तोरे द्वार ।
-----,
 रंग दे अपने गाल गुलाबी रंग से ,
 तर कर दे नैनों के काजल से ,
 इस सूने सूने से मन में ,
 कुछ रंग प्रीत के तू डार ।
 होरी खेलन आए तोरे द्वार ।
----
 तू मेरे हाथों में भी कुछ रंग दे ,
 मैं भी मल दूँ तेरे गालन पे ,
 चन्दा से रूप सलोने तन पे ,
 इन हाथो पे कर दे उपकार ।
 होरी खेलन आये तोरे द्वार ।
 ----
चितचोर मोहनी चितवन के ,
 मन से मन के मिलन से ,
 होरी के इस मौसम में ,
 टेसू सा केसरिया कर दूं श्रृंगार ।
 होरी खेलन आये तोरे द्वार ।
---
 उतरे न रंग इस तन मन से ,
 कर दे गौरी तू उपकार ,
 मन सा मन से कर के श्रृंगार ।
 होरी खेलन आये तोरे द्वार ।
  .... विवेक ....


होली बिशेष


---- सुबह होली विशेष ----
=============
उस मौके को गवां न देना ।
रंग देना चाहे न रंग देना ।
जो आयें सामने होली पर हम ,
बस जरा सी तुम मुस्कान देना।
---- ---- -----
अपने ही रंग में मोहे रंग देना ।
तूम मुझे मुस्कुराते नयन देना ।
जज़्ब कर लूंगा मुस्कुराहट को,
बस अपने अधरों पर थिरकन देना ।
.... विवेक .....

शनिवार, 19 मार्च 2016

कुछ भाव मन से मन के


न देखना अब कभी तू मुझे उन निगाहों से ।
छलकती थीं आहें कभी जिन निगाहों से ।
चैन छीन लिया बेचैनियाँ देकर तू ने मुझे ,
होने दे बर्वाद अब मुझे अपनी ही आहों से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@


यह क़तरा क़तरा अश्क़ समन्दर सा हुआ ।
अश्क़ मेरे ग़म में खुद क़तरा क़तरा हुआ ।।
   ....



----- यह रौनकें यादों की ------
 =======             ======
 भोर संग खुशियों सी छा जातीं है।
 साँझ ढले तन्हाईयाँ ले आतीं हैं ।
 सिमट जातीं हैं "विवेक" ख्वाबों में फिर ,
 ख़्यालों को ख्वाबों में सजातीं हैं ।
   ...


उलझ गया हूँ अपने ही चन्द सवालों मे ।
खोजता हूँ ज़वाब तेरे सवाल से जवाबों मे ।
 मिलते हैं हर बार फिर कुछ नए सवाल ,
मेरे सवाल के तेरे उन हर जवाबों मे ।



लगा कर नैन में काजल
न करो और क़ातिल इन्हें
और जुल्म यह
गाल पर काला तिल भी है
एक अदा ही कम नही
इंतज़ाम कयामत का
मुक़म्मल है
..


भटक रहा घायल मन ,
अपनों का प्रतिकार लिए ।
प्रण प्राण जिन्हें समर्पित ,
उनका ही तृस्कार लिए ।
     ....


यह मंजर बर्वादी के
यह तन्हाईओं के आलम
तू न चल साथ मेरे
करने दे मरहम मुझे
जख़्म मेरे मेरे तरीके से

आज तन्हा मैं हूँ कल तू भी होगा ।
 वक़्त तेरे हाथ से भी फिसला होगा ।
कर सको याद तब शायद तुम भी ,
 सांथ मेरे क्या आज गुजर रहा होगा ।
      .....


ज़माने से अक़्स क्या छुपाऊँ अपने ।
 क्यों न ऐब ज़माने को दिखाऊं अपने ।।
 दिये जिस ज़माने ने यह उजाले मुझे ।
 क्यों छुपाऊँ गुनाह उस ज़माने से अपने ।।
  ...




जमीं बिछा आसमां ओढ़ता मैं ।
 खुद को खुद से जोड़ता मैं ।
 बिता वक़्त अंधेरों में अक़्सर ।
 उजालों के राज खोलता मैं ।
 बयां कर नाकामियों के किस्से ।
 कामयाबियों को पीछे छोड़ता मैं ।
 खुद को खुद से जोड़ता मैं ।
  ...


वक़्त के साथ तुम भी वक़्त बन जाओगे ।
 वक़्त संग यादों में सिमट कर रह जाओगे ।

जो संग चल न सको तो साथ कैसा,
 यादों में भी कब तक याद तुम आओगे ।


सवाल करते उससे डरता है यह मन
हर ज़वाब उसका होता है एक प्रश्न।


इस हाजिर जवाबी से ही हार रहे ।
 उनकी निगाहों में बेइख़्तियार रहे ।।


लौट कर आयेंगे कहकर गए है वो
उम्मीद का दामन थाम लिया है हमने।
 .....


गुंजित कर दो धरती अम्बर ।
भारत माता के जयकारों से ।
नही चलेंगी अब चालें उनकी ।
कह दो माता के गद्दारों से ।
     ...


रोका तो न था तुझे कभी ।
तू ही सफ़र मुक़ाम किया।
     ....


हे पयोधी तू शांत निश्चल अचल ।
सरिता तू चंचल चल छल छल ।
इठलाती बल खाती बहती जाती ।
हो आस्तित्व हीन तुझ में मिल जाती ।
   ...


सरिता तुम बहती,निष्छल मन से।
संग ले अपने,अल्लड योवन को।
मिलने सागर के ,तन से ,मन से।
ज्यो व्याकुल सजनी,पिया मिलन को।
अपने तन मन के,समर्पण से।
 मिल सागर से,होने अर्पण को।
          .....विवेक दुबे "निश्चल"@.....


गुरुवार, 10 मार्च 2016

महिला दिवस


महिला दिवस पर दो शब्द मेरे
"================"
धरा है तू वसुंधरा है तू
अम्बिका जगदम्बिका है तू
तेरे बिन तो शिव को भी
न सत्कार स्वीकार हुआ
तेरी माया से ही
सम्पूर्ण ब्रम्हांड साकार हुआ।
===============
होंसला है तू आसरा है तू
सृजन है तू समर्पण है तू
शक्ति का कण कण है तू
बस और बस नमन है तू
.
.... विवेक ......

सोमवार, 7 मार्च 2016

मैं कहता हूँ


दुनिया करती है अंधेरों की बात,
 मैं कहता हूँ ।
कभी उजालों के जिक्र कर के देखो
.
अंधेरो में घात करते हैं हाथ को हाथ,
 मैं कहता हूँ ।
कभी उजालों में नजर मिला के देखो।
.
फ़िक्र है उन्हें कल की बहुत ,
 मैं कहता हूँ ।
जरा आज सजा कर देखो ।
    .... विवेक ....
.
.

रविवार, 6 मार्च 2016

इन शब्दों के सफ़र में


इन शब्दों के सफ़र में ...
 वो यादों की ख़लिश,
वो मुलाकातों की तपिश हो ।
 वो तन्हा तन्हा रात,
 वो यादों का सवेरा हो।
 लिख दूँ हर जज्बात ,
  हर बात में कशिश हो ।
हों वो खुशियों के पल ,
 वो रंजिशों के रंग हों ।
 शब्दों का यह सफ़र ,
  हर पल एक ग़ज़ल हो ।
 यूँ ज़िन्दगी के आस पास ,
 यूँ ज़िन्दगी के साथ साथ हो।
 इन शब्दों के सफ़र में ....
  ....विवेक....

मंगलवार, 1 मार्च 2016

देश बचाना होता है


न चले जब शास्त्र से काम
 तब शस्त्र उठाने होता हैं
 देश बचाना होता है
 धर्म बचाना होता है
 गीता को अपनाना होता है
 चाणक्य को जागना होता है
 बन राम धनुष उठाना होता है
 वीर शिवा सा बन जाना होता है
 परवाह नही तब प्राण की
 हर शत्रु से टकराना होता है
   .... विवेक .....

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

शत्रु का संहार करो



नही तनिक भी मेरी परवाह करो
 शत्रु आ छुपे जब मेरे पीछे तब
तुम पहले मुझ पर ही प्रहार करो
 करो करो बस शत्रु का संहार करो
    .... विवेक ....

बुधवार, 24 फ़रवरी 2016



         तुम मेरी प्रेरणा हो या नही ,

            यह नही जानता मै ।

           हाँ इतना पता है मुझे ,

            तुम से मैंने सीखा बहुत है ।

        .....विवेक ..... 
                                     

न सोचें हम कुछ न सोचो तुम कुछ


न हम सोचें अब कुछ
 न तुम सोचो अब कुछ
 होता है हो जाने दो
 एक गुलामी फिर आने दो
-----
जलता है देश जल जाने दो
 बंटता है समाज बंट जाने दो
 शकुनि की चलें चल जाने दो
 फिर खण्ड खण्ड हो जाने दो
-----
जीवित कंस हो जाने दो
 धृतराष्ट्र को स्वप्न सजाने दो
 आयें कृष्ण धरा पर फिर
 आने का एक बहाना दो
   ----
   ••••• विवेक ••••••

रविवार, 14 फ़रवरी 2016

नमन नमन तुम्हें नमन


( वीर जवान तुम्हे अर्पित श्रद्धा सुमन)
.
.
नहीं चली थी कोई गोली
फिर भी
वो सुहागन विधवा हो ली
खोया माँ ने लाल
अनाथ हुआ नौनिहाल
.
पूछो पूछो उनसे एक सवाल
अपनी सुख सुविधा पर
खूब लुटाते हो
अपने लिए हर सुख सुबिधा जुटाते हो
.
माँ के इन सच्चे बेटों को
तुम क्या इतना कर पाते हो
जो आज भी जुगाड़ से
अपने हथियार चलाते हैं
.
... विवेक ...
.
सज़ल नयन करते नमन
मेरे यह श्रद्धा सुमन
अर्पित करता मैं श्रद्धांजलि
नमन नमन कोटिशः नमन
.... विवेक ,...
February 11

हे माँ ज्ञानदा ऐसा वर दे


               
               


                  हे माँ ज्ञानदा ऐसा वर दे ।
                  हृदय ज्ञान प्रकाश से भर दे ।

          इस कलम में हो तेरा वास ।
          मेरे शब्दों में तू आशीष भर दे।

                         मार्ग सत्य पर चलता जाऊँ ।
                          सत्य से मैं न डिग पाऊँ ।

          लिख जाऊँ कुछ ऐसा ।
          शब्द अमर सा हो जाऊँ ।

                                             ....विवेक...

हे माँ ज्ञानदा


माँ ज्ञानदा ज्ञान दे ,
 शब्दों का वरदान दे ।
 कहूँ न अभिमान से ,
 कलम का स्वाभिमान दे ।
   .... विवेक ....

मधु मास आया है


मधु मास आया है
कलियों पर यौवन छाया है
 भंवरों से मिलने को
 आतुर कलीयों की काया है
--
आज मन बौराया है
 भंवरों ने प्रणय गान गया है
 धरा सजी दुल्हन सी
 देख गगन भी शरमाया है
----
 देख श्रंगार धरा का
 चन्दा ने खुद को पिघलाया है
 पुष्पित सुरभित आज धरा
 चन्दा ने प्रणय रस बरसाया है
    ---
   ..... विवेक ....


शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

जीवन की परिभाषा


मन समझे मन की भाषा ।
 नयन पढ़ें नैनों की भाषा ।
  न कोई आशा न अभिलाषा।
 ज़ीवन की इतनी सी परिभाषा।
       ......  विवेक ...

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

मंज़िले बैचेन है तेरे आगमन को


थक न तू हार न तू
अपने हुनर को न बिसार तू
होंसलों को कांधे से न उतार तू
तू चाँद है अम्बर का
तू सूरज है नील गगन का
तू झोंका है मस्त पवन का
तू नीर है सागर के तन का
चल चला चल न रोक
अपने कदम को
मन्ज़िलें बेचैन तेरे आगमन को
....विवेक...

ख़ुशी माँ की


क्या चीज़ है यह आँसू ,,
गम में छलक पड़ते है ,,,
ख़ुशी में ढलक पड़ते है ,,,,
/
/
/
( छोटी बेटी का 12th bio. school top 90% आने पर माँ की ख़ुशीयाँ ढलक पड़ी )
/
/
/
""जननी ही संस्कारो की भी जनक होती है ,
मिले जो संस्कारो का शुभ फल
तो ख़ुशी आँखों से वयां होती है
बरसते है ख़ुशी के मोती
जुवान चुप, बात आँखों से वयां होती है
सच है माँ तो बस माँ होती है ""
May 25, 2015 at 1:37pm ·

शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

खुशियों के गीत लिखूं


खुशियों के गीत लिखूं ।
............. यादों के संगीत लिखूं ।
 विरह भरी वो रात लिखूं ।
 ........मधुर मिलन की याद लिखूं ।
.
 स्वप्न संजोती साँझ लिखूं ।
.... भुंसारे की अलसाई आँख लिखूं ।
 अहसासों के हर अहसास लिखूं।
..............खासों में तू खास लिखूं ।
.
 तुझ पर फिर एक गीत लिखूं ।
 ......हृदय बसा हर एहसास लिखूं।
 स्वप्न सलोनी वो याद लिखूं।
 ......... प्रियतम से फ़रियाद लिखूं।
.
 तुझको मन मीत लिखूं ।
...............कैसी यह प्रीत लिखूं।
 खुशियों के गीत लिखूं  ।
..............यादों के संगीत लिखूं  ।
   ....विवेक...
 ब्लॉग पोस्ट 17/1/16

शनिवार, 16 जनवरी 2016

खेल उसका

   किस ने क्या खोया क्या पाया
   यह कोई न जान पाया
    यह तो बस जाना उसने
     जिसने मुझे बनाया
      तुझे बनाया
     अपनी सत्ता का
      खेल रचाया
    ... विवेक ...
     
..

कभी गुलशन सी गुलज़ार ज़िंदगी

कभी गुलशन सी गुलज़ार ज़िंदगी ।
कभी लगती एक त्यौहार ज़िंदगी ।
कभी मुहँ मांगी मुराद ज़िंदगी ।
कभी आँसू से सरोबार ज़िंदगी ।
कभी गम का समन्दर ज़िंदगी ।
कभी अपनों का प्यार ज़िंदगी ।
कभी रिश्तों का दुलार ज़िंदगी ।
कभी रिश्तों की दुत्कार ज़िंदगी ।
एक यह भी ज़िंदगी ।
एक वो भी ज़िंदगी ।
एक आह ज़िंदगी ।
एक वाह ज़िंदगी ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@....
 

यह मन उदगार भरे


यह मन उदगार भरे
          नैनन संग व्योपार करें
जो मन उलझन आन पड़े
         निर्झर नैनन उदगार बहें
 जो खुशियों संग आन मिलें
            नैनन नीर उदगार झरें
यह मन उदगार भरे...
                        ...विवेक...



सब कुछ कहतीं आंखे


आशा के गीत सुनाती आँखें ।
खुशियों के भाव सजतीं आँखें ।

 सोच खुश हो जातीं आँखें ।
 जो कुछ पा जातीं आँखें  ।

 मोती फ़ूल झराती आँखें।
 सब कह जातीं आँखे ।

 यादों मे खो जातीं आँखे ।
भर तर हो जातीं आँखे ।

 खुशियों से मुस्काती आँखे ।
 जब स्वप्न सजाती आँखे ।

 ठेस लगी सुनी हो जातीं आँखें ।
 निराशा बादल से बरस जातीं आँखें ।

 यह आँखे तेरी आँखे ।
 यह आँखे मेरी आँखें ।
      ....विवेक दुबे"निश्चल"@..
   

लिखो लिखो एक गीत लिखो


लिखो लिखो एक गीत लिखो
 लिखो निग़ाहें प्रियतम की
  या प्रियतम मन मीत लिखो
 लिखो लिखो एक गीत लिखो
  लिख दो आहें प्रियतम की
   या प्रियतम की प्रीत लिखो
 लिखो लिखो एक गीत लिखो
  लिखो विरह वेदना प्रियतम की
  या प्रियतम संग मधु मास लिखो
  लिखो लिखो एक गीत लिखो
 लिख दो तुम वो गुजरे पल
  आये नहीं थे जो कल
  आज मधुर मिलन की आस लिखो
  मधुर चांदनी संग अहसास लिखो
  लिखो लिखो एक गीत लिखो
      ...विवेक...
  ...
ब्लॉग पोस्ट 16/1/16

शुक्रवार, 15 जनवरी 2016

ओढ़ कर निकलता हूँ घर से


ओढ़ कर निकलता हूँ घर से
 जिम्मेवारियों का कफ़न
 यूं तो हमें भी खूब आता है
 शायरी का यह फ़न
 मज़बूर हूँ घर देखूं या
 मुशायरे करूं
 हमने अक़्सर शायरो को
 फ़ांके करते देखा है
  पैर में हैं टूटी चप्पल
  कांधे पर एक थैला है
 शायर कल भी अकेला था
 वो तो आज भी अकेला है
 पडतें है तब उसे बड़ी शान से
 जब वो दुनियां को अलविदा बोला है
        .....विवेक....®

तृष्णा मन की

 तृष्णा मन की आज,
 उजागर कर दी,आँखों ने ।
         सकल ब्रम्हांड सरीखी,
         झलकी इन आँखों से ।
.
 प्रारम्भ शून्य अंत शून्य है ,
  तुझमे ही रहना है ।
 बस तुझमे ही तो खोना है ।
.
  मिथ्या सब कुछ है यह ,
  जगत सपन सलोना है ।

         निकल शून्य से फिर,
         शून्य ही फिर होना है ।
        .....विवेक.....


शब्दों की मार


देखो यह शब्दों की मार ,
शब्दों से होते शब्दों पर वार ।
उलट पलट कर, पलट उलट कर ,
होते नित नये तीर तैयार ।
 व्यंग धनुष पर, भाषा के तरकश से ,
 यह तीर करें , नित नये प्रहार ।
 कभी शब्द बाण चलें ऐसे ,
 मधुवन से पुष्प झड़े जैसे ।
 कभी शब्द बाण बने ऐसे ,
 सावन की बदली बरसे जैसे ।
 कभी काम बाण बन मन हरते ऐसे,
 प्रणय मिलन की बेला आई जैसे ।
कभी शब्द बाण ने किया प्रहार,
 मन कांप गया, सागर में चढ़ा ज्वार ।
 कभी व्यंग धनुष ने संधान किया,
 तीक्ष्ण शब्द को कमान किया ।
छोड़ दिया फिर साध लक्ष्य को,
कर अग्नि वर्षा,मन घायल करने को।
 यह शब्दों की माया नगरी ,
 कभी बिखरी कभी संवरी ।
 शब्दों में ही बसती दुनियां ,
हमरी तुम्हरी, तुम्हरी हमरी ।
     ....विवेक....

मंगलवार, 12 जनवरी 2016

देखो उस घाटी को


देखो उस माटी को
उस फूलों की घाँटी को
देवो की उस थाती को
खिलते थे गुलशन कदम कदम
अब चलतीं गोलियां दन दन
उजड़ी बगिया सूने आँगन
बेघर हुए सारे ब्रम्हाण
आँखे मूंदे सारे दल
काठ की हांड़ी दाल चढ़ी
स्वार्थ की रोटी खूब पकी
अब न जागे फिर कब जागेंगे
क्या उनका हक़ दिलवा पाएंगे
तू फूल कमल तुझसे क्या चाहेंगे
वो वापस घर कब जायेंगे
....विवेक....

कौन हूँ मैं


अनन्त अंतरिक्ष को खोजता मैं।
 कौन हूँ क्यों हूँ यही बार सोचता मैं।
 इस स्वार्थ से परे भी है क्या कुछ,
 यही प्रश्न खुद से खुद पूछता मैं।
     ....विवेक..©

तृष्णा मन की

 तृष्णा मन की आज,
 उजागर कर दी, नयनों ने ।
         सकल ब्रम्हांड सरीखी,
         झलकी इन नयनों से ।
.
 प्रारम्भ शून्य अंत शून्य है ,
     तुझमे ही रहना है ।
 बस तुझमे ही तो खोना है ।
.
  मिथ्या सब कुछ है यह ,
  जगत सपन सलोना है ।
         निकल शून्य से फिर,
         शून्य ही फिर होना है ।
        .....विवेक दुबे"निश्चल"@..



वक़्त बदलते देखा है


हाँ वक़्त बदलते देखा है ।
सूरज को ढ़लते देखा है ।
 चन्दा को घटते देखा है ।
 तारों को गिरते देखा है ।
 हाँ वक़्त बदलते देखा है ।
 हिमगिरि पिघलते देखा है ।
 सावन को जलते देखा है ।
 सागर को जमते देखा है ।
 नदियां को थमते देखा है ।
 हाँ वक़्त बदलते देखा है ।
 खुशियों को छिनते देखा है ।
 खुदगर्जी का मंजर देखा है ।
 अपनों को बदलते देखा है ।
 हाँ वक़्त बदलते देखा है ।
 नही कोई दस्तूर जहां ,
  ऐसा दिल भी देखा है ।
 नजरों का वो मंजर देखा है ।
 उतरता पीठ में खंजर देखा है ।
 हाँ वक़्त बदलते देखा है ।
    .....विवेक....

कड़े फैसले


आज कड़े फैसले लेने होंगे,
कुछ अनचाहे निर्णय लेने होंगे।
करते जो छद्म वार ,बार बार हम पर ।
मांद में घुस कर, वो भेड़िये खदेड़ने होंगे ।
आज कड़े फैसले .....
 अब न समझो ,न समझाओ।
 अब तो ,आर पार हो जाओ।
 जाकर दुश्मन के द्वार,
 ईंट से ईंट बजा आओ।
 आज कड़े....
 कितना खोयें अब हम,
 अपनी माँ के लालों को।
 कितना पोछें और सिंदूर हम,
 अपनी बहनों के भालों से।
 सूनी आँखे ,सुना बचपन,
 ढूंढ रही पापा आएंगे कल।
 देखो उस अबोध बच्ची को,
 कांधा देती शहीद पिता की अर्थी को।
 आज कड़े ....
यूं चाय पान से कोई माना होता ।
तब धनुष राम ने न ताना होता ।
चक्र कृष्ण ने भांजा होता ।
बन जाओ राम कृष्ण तुम भी।
 जागो अब भी ,चेतो अब भी देर नहीं
 उठा धनुष चढ़ा प्रत्यंचा, दे टंकार कहो ,
 दुश्मन तेरी अब खैर नहीं ।
 आज कड़े फैसले लेने होंगे ....
    ....विवेक......



विवेकानन्द


देव दूत वो आया था
शांति सन्देश संग लाया था
अतीत गौरबशाली आर्य सभ्यता का
वर्तमान में लाया था
दे कर शून्य की व्याख्या
जगत को सत्य दिखाया था
परम हंस को वो शिष्य नरेंद्र
विवेकानंद कहलाया था
शत शत नमन
युग पुरुष विवेकानन्द।
.   .....विवेक.....

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...