अभी पार नही की थी दहलीज़ ।
अंकुरित हो उठे अश्रु के बीज।
कुछ ना कह पाई मैं आज ।
बहाव में बह गई बस आज ।
सीने से लगा लिया एक बार ।
कठोरता की फिर हो गई हार ।
ममता लिए नयन झील हुए पार।
पिघला दिया ममता ने ज़ार- ज़ार।
हुआ सा था कुछ महसूस ।
उसकी ममता और सूझबूझ।
सदैव स्पष्ट रहेगी वो छवि ।
कुछ शब्द जी उठे सभी ।
महसूस हुई एक और पीर ।
अटके गले में अपने ही नीर ।
मुश्किल से किया उसे आज़ाद ।
रख ली उसने ममता की लाज।
..... "काव्या"@...
अंकुरित हो उठे अश्रु के बीज।
कुछ ना कह पाई मैं आज ।
बहाव में बह गई बस आज ।
सीने से लगा लिया एक बार ।
कठोरता की फिर हो गई हार ।
ममता लिए नयन झील हुए पार।
पिघला दिया ममता ने ज़ार- ज़ार।
हुआ सा था कुछ महसूस ।
उसकी ममता और सूझबूझ।
सदैव स्पष्ट रहेगी वो छवि ।
कुछ शब्द जी उठे सभी ।
महसूस हुई एक और पीर ।
अटके गले में अपने ही नीर ।
मुश्किल से किया उसे आज़ाद ।
रख ली उसने ममता की लाज।
..... "काव्या"@...