शनिवार, 6 अक्तूबर 2018

काव्या मेरी बिटिया की रचना

अभी पार नही की थी दहलीज़ ।
अंकुरित हो उठे अश्रु के बीज।
कुछ ना कह पाई मैं आज ।
बहाव में बह गई बस आज ।

सीने से लगा लिया एक बार ।
कठोरता की फिर हो गई हार ।

ममता लिए नयन झील हुए पार।
पिघला दिया ममता ने ज़ार- ज़ार।

हुआ सा था कुछ महसूस  ।
उसकी ममता और सूझबूझ।

सदैव स्पष्ट रहेगी वो छवि ।
 कुछ शब्द जी उठे सभी ।

 महसूस हुई एक और पीर ।
अटके गले में अपने ही नीर ।

मुश्किल से किया उसे आज़ाद ।
 रख ली उसने ममता की लाज।

..... "काव्या"@...

बुधवार, 3 अक्तूबर 2018

मुक्तक

541
एक परपोषित वृक्ष लता सा ।
जीवन आश्रित देह सटा सा ।
पाता पोषण कण कण से ,
अस्तित्व हीन हो रहा बचा सा ।
...542
 कागज़ स्याह करता गया।
 लफ्ज़ निग़ाह करता गया ।
 गिराकर कुछ क़तरे अश्क़ के ,
 हर्फ़ हर्फ़ गुमराह करता गया।
... 543
खोजता रहा वो किताबों में ।
मिलता नही जो मिजाजों में ।
गिरा नही क़तरा जमीं पर ,
सूखता रहा अश्क़ निग़ाहों में ।
..544
यह ख्याल रहे ख़्याल से ।
अक़्स ढ़लते रहे निग़ाह से ।
खोजते रहे रौनकें जमाने में,
फिर भी रहे तंग दिल हाल से ।
...545
कोई तो कर्ज़ चुकाईये ।
अपना भी फ़र्ज़ निभाइये ।
टूटें ना ताने बाने सौहार्द के,
सौहार्द का मर्ज़ बढ़ाइये ।
....546
आशीषों के पथ चलकर ।
लक्ष्य सदा ही मिलते है । 
 तापित मरुभूमि पर भी ,
 "निश्चल" शीतल जल मिलते हैं ।
..547
कल के सफर की ख़ातिर ।
ख़्वाब फिर मेहमान हो जाए ।
वक़्त से वक़्त की ख़ातिर ,
वक़्त से इंतकाम हो जाए ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 3

वामा छंद

वामा छंद
221  122  211 2

वो शब्द बिछाता आज यहाँ ।
जो भाव सजाता साज यहाँ ।

सीधे चलते जाते पास यहीं ।
गाते मिलते आते आस यहीं।

संजो अभिलाषा साथ सभी ।
 लेता चल आशा साथ सभी ।

 भानू नभ छूता साँझ तभी ।
 चँदा सज पाता साँझ तभी ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 5(156)

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

एक कहानी लिख दो

मेरे गीतों में एक कहानी लिख दो ।
दिन बचपन के वो जवानी लिख दो ।

अलसाई सुबह सुरमई साँझ मंजर ,
जागतीं रातों की निशानी लिख दो ।

बिखेर कर गेसू-ऐ-आँचल सा मुझे ,
 हंसीं रातों की रवानी लिख दो ।

भिंगोकर ज़ज्बात निग़ाह से मेरी ।
यूँ कुछ हर बात सुहानी लिख दो ।

पिरोकर लफ्ज़ लफ्ज़ में अपने ,
 एक नज़्म तुम दीवानी लिख दो ।

 कह कर एक ग़जल पैगाम सी ,
"निश्चल" एक मेहरवानी लिख दो ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5

कर संघर्ष

कर संघर्ष परिस्थितियों से ,
ढाल अपने अनुसार उन्हें ।

चाहता है विजय जिन पर,
ले कर आ रण संग्राम उन्हें ।

  गढ़ सुगढ़ रक्षा कवच ,
  हर प्रहार से पहले ।

  कर ले सुरक्षित स्वयं को ,
  आते हर रोग से पहले ।

   है संकल्प दृण जीत का ।
 आधार सुरक्षा नींव का ।

 खींच रेखाएं चहुँ और ज्ञान से ।
 दूरकर तिमिर अज्ञान ज्ञान से ।

 रोक ले संकट पहले प्रयास से ।
 रख सुरक्षित मुश्किल इलाज़ से ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
डायरी 5(161)
Blog post 2/10/18


आदमी

आदमी को मारता आदमी ।
बेमौसम बहार सा आदमी ।
 दोष होना नही है लाज़मी ,
 चढ़ता बलि निर्दोष आदमी ।
...
कैसा आया आज सबेरा है।
दिन का अंधियारा गहरा है ।
 हर रहा आज प्राण वही ,
 रहता जिसका पहरा है ।
...
Up पुलिस बर्बरता पर दो शब्द

डायरी 5(160)

कुछ तैयारी कर लें

शब्दों की कुछ तैयारी कर लें ।
नज़्मों से थोड़ी यारी कर लें ।

सहज करें अपने गीतों को ,
आवाजें अपनी प्यारी कर लें ।

छोड़ें बातें सब जात धर्म की ,
मन मानवता को धारी कर लें ।

प्रेम प्यार गढ़ कर गीतों में ।
दुनियाँ अपनी न्यारी कर लें ।

 ना सूखे मन , मन के आगे ,
"निश्चल" मन फुलवारी कर लें ।

शब्दों की कुछ तैयारी कर लें ।
नज़्मों से थोड़ी यारी कर लें ।

...विवेक दुबे"निश्चल"@..

एक उम्र गुजरती है

यह ख्याल रहे ख़्याल से ।
अक़्स ढ़लते रहे निग़ाह से ।

खोजते रहे रौनकें जमाने में,
फिर भी तंग दिल रहे हाल से ।


एक उम्र गुजरती है ,
पलकों की पोर से ।

 ज़ज्बात पिरोती है ,
 अश्कों की डोर से ।

साँझ तले टूटते ख़्वाब है,
साथ चले थे जो भोर से ।

तिलिस्म सा ही रहा है ,
खींचता कोई छोर से ।

नाकाफी रहा साज-ए-नज़्म,
"निश्चल" चला दूर शोर से ।

...... विवेक दुबे"निश्चल"@..

डायरी 5(158)




कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...