रात अंधेरी आज की ,बादल बिजुरी होय ।
राह निहारे आस से , पिया बिसारे मोय ।
प्रियतम नही पास में , मन में गहरी पीर ।
पिया मिलन की आस में ,प्रिया होत अधीर ।
बात सुनाता आपनी , कहता अपनी बात ।
हर पतझड़ के बाद में ,आते नव तरु पात ।
डूबत रवि साँझ सँग,छोड़ धवल प्रकाश ।
नव प्रभा की आस में ,रिक्त रहे आकाश ।
...
बादल बरसी बादली , नीर नीर धरा होय ।
सागर फिर भी ना भरे,सरिता सागर खोय ।
बांट लई सारी धरा , अम्बर न बंटा जाए ।
मानव स्वार्थ से भरा , धरा रही थर्राए ।
रीत नही मन आज तो ,रही न कोई प्रीत ।
जग जीतेगा बाद में , पहले खुद को जीत ।
...
थम गई क्यों रात भी , होत नही अब भोर ।
दिनकर अब कब आएगा , कलरब होगा शोर ।
.
मोल नही अब जान का , रहा नही अब मोल ।
संकट है एक प्राण का , संकट की नही तोल ।
पद मिले एक लाभ का ,पेट गला भर जाए ।
घर बैठे ही आप से , धन वर्षा हो जाए ।
राज कोई ऐसा नही ,न रंक हो न फ़क़ीर ।
बाँटे दोनों हाथ से , मिटत न कोई पीर ।
रूठे थे जो बादरा , भर लाये अब नीर ।
पुलकित मानस मन भयो ,मिटी धरा की पीर ।
ताल सरोवर भर रहे , चल उठे जल प्रपात ।
हर्षित मन वसुधा हुआ ,सजी दुल्हन सी आज ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..