गुरुवार, 23 जुलाई 2015

नई सुबह


जय पराजय से परे
सदा आगे बढ़ते चलें
अपराजित अनथक
नयी सुबह केआँचल तले
एक आस जगे उत्साह मिले
जीवन को नव आयाम मिलें
....विवेक....

बुधवार, 22 जुलाई 2015

क्यों रोती है माँ


देख क्या होती है माँ ।
बच्चों की खुशियों पर क्यों रोती है माँ ।।
दुनियाँ को ख़ुशी के नजर आये आँसू वो ।।
पर माँ को पल याद आये वो ।
धरा था जिस वक़्त गर्भ में ,
जना था वाजी लगा जान की ।।
नही की परवाह अपने प्राण की ।
सारे पल आज याद आये वो ।।
दुनियाँ को अपने दर्द कैसे बताये वो ।
बस अपनी आँखों से मोती बरसाये वो ।।
यह बात तब और भी गहरी होती है ।
जब वो बेटीओ की माँ होती है ।।
वो ताने याद आते है ,
जो बेटी जनने पर ।
दुनियाँ से बिन माँगे मिल जाते है ,
मिलते ही जाते है ।।
.....विवेक....

मंगलवार, 21 जुलाई 2015

दबा हुआ हूँ अहसासों से


दबा हुआ हूँ अहसासों से ;
कुछ अपनी ही साँसों से ।

हर पल घिसता हूँ पिसता हूँ ...!!
अपनी साँसों से भी डरता हूँ ....!!
न जीता हूँ ; न मरता हूँ .......!!
कुछ ज़िंदा अरमानों के बोझों से ।

जब चलता हूँ फिरता हूँ ....!!
सौ -सौ बार गिरता हूँ , ....!!
फिर उठकर चल पड़ता हूँ ....!!
लड़ता हूँ कर्ज़ों से कुछ फ़र्ज़ों से ।

चलता हूँ ,बस चलता हूँ ....!!
चलता ही रहता हूँ ............!!
अदा नही हुआ जीवन की रस्मों से ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@....


रात तो कट जाती है

रात तो कट जाती है।
 मौत ही नही आती है ।

आती भी दरवाज़े पर ,
दस्तक देकर चली जाती है ।

रस्में जिम्मेदारियों की और निभा ,
कह जाती , वक़्त अभी बाँकी है ।

पूरी नही लिखी तूने अपनी कहानी ,
आँख हड़बड़ाकर इतने में खुल जाती है ।

एक सिलसिला कल आज और कल का ,
ज़िन्दगी क्या है बात समझ आ जाती है ।

..
हर पल नव सृजन का बस ये सोचकर ,
 जिंदगी भी एक लुभाबनी कहानी है ।
 
जुट जाता है पूरे जोश-ओ-खरोश से ,
ज़िन्दगी की हर रस्म तो निभानी है । 
.
!!...विवेक दुबे"निश्चल"@....!

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...